मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-ज्ञान के ठण्डे छींटे डाल तुम्हें हरेक को शीतल बनाना है,
प्रश्न:- बाप ने तुम्हें ज्ञान का कलष क्यों दिया है?
उत्तर:- ज्ञान का कलष मिला है पहले स्वयं को शीतल बनाकर फिर सर्व को शीतल
गीत:- जो पिया के साथ है....
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) बुद्धियोग सदा एक बाप में लगा रहे। पुराने घर, पुरानी दुनिया में बुद्धि न जाए।
2) बाप की सर्व शिफ्तें (गुण) स्वयं में धारण करना है। हर आत्मा पर ज्ञान के छींटे
वरदान:- सदा सेफ्टी की लकीर के अन्दर परमात्म छत्रछाया का अनुभव करने वाले मायाजीत भव
''बाप और आप'' यही सेफ्टी की लकीर है, यह लकीर ही परमात्म छत्रछाया है। जो इस
स्लोगन:- दिव्य गुणों के सर्व अलंकारों से सज़े सजाये रहो तो अहंकार आ नहीं सकता।
तुम हो ज्ञान बरसात करने वाली शीतल देवियाँ''
प्रश्न:- बाप ने तुम्हें ज्ञान का कलष क्यों दिया है?
उत्तर:- ज्ञान का कलष मिला है पहले स्वयं को शीतल बनाकर फिर सर्व को शीतल
बनाने के लिए। इस समय हरेक काम अग्नि में जल रहा है। उन्हें काम चिता से उतार
ज्ञान चिता पर बिठाना है। आत्मा जब पवित्र शीतल बने तब देवता बन सके, इसलिए
तुम्हें हर रूह को ज्ञान इन्जेक्शन लगाकर पवित्र बनाना है। तुम्हारी यह रूहानी सेवा है।
गीत:- जो पिया के साथ है....
धारणा के लिए मुख्य सार :-
1) बुद्धियोग सदा एक बाप में लगा रहे। पुराने घर, पुरानी दुनिया में बुद्धि न जाए।
ऐसी एकाग्रचित अवस्था बनानी है।
2) बाप की सर्व शिफ्तें (गुण) स्वयं में धारण करना है। हर आत्मा पर ज्ञान के छींटे
डाल उनकी तपत बुझाए शीतल बनाना है।
वरदान:- सदा सेफ्टी की लकीर के अन्दर परमात्म छत्रछाया का अनुभव करने वाले मायाजीत भव
''बाप और आप'' यही सेफ्टी की लकीर है, यह लकीर ही परमात्म छत्रछाया है। जो इस
छत्रछाया की लकीर के अन्दर है उसके पास माया आने की हिम्मत भी नहीं रख सकती।
फिर मेहनत क्या होती, रूकावट क्या होती, विघ्न क्या होता - इन शब्दों से अविद्या हो जायेगी।
सदा सेफ रहेंगे, बाप की दिल में समाये रहेंगे - यही सबसे सहज और तीव्रगति में जाने का वा
मायाजीत बनने का पुरुषार्थ है।
स्लोगन:- दिव्य गुणों के सर्व अलंकारों से सज़े सजाये रहो तो अहंकार आ नहीं सकता।