मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-तुम रूप बसन्त हो, तुम्हें बाप की याद में भी रहना है तो
प्रश्न:- तुम बच्चे कलियुगी गोवर्धन पर्वत को उठाने के लिए कौन-सी अंगुली देते हो?
उत्तर:- पवित्रता की। पवित्रता की प्रतिज्ञा करना ही जैसे अंगुली देना है। पवित्रता नहीं है
गीत:- आने वाले कल की तुम तकदीर हो.....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा हर्षित, खुशमिज़ाज़ रहना है। कभी भी रोना नहीं है। जीते जी सबसे छुट्टी ले लेनी है।
2) अपने शान्ति स्वधर्म में स्थित रहना है। ज्ञान और योग से तीखा जाना है। ध्यान की आश नहीं रखनी है।
वरदान:- किनारा करने के बजाए स्वयं को एडजेस्ट करने वाले सहनशीलता के अवतार भव
कई बच्चों में सहनशक्ति की कमी होती है इसलिए कोई छोटी सी बात भी होती है तो चेहरा बहुत
स्लोगन:- परमार्थ के आधार से व्यवहार को सिद्ध करना - यही योगी का लक्षण है।
ज्ञान-रत्नों का बीज भी बोना है, भारत का श्रृंगार भी करना है''
प्रश्न:- तुम बच्चे कलियुगी गोवर्धन पर्वत को उठाने के लिए कौन-सी अंगुली देते हो?
उत्तर:- पवित्रता की। पवित्रता की प्रतिज्ञा करना ही जैसे अंगुली देना है। पवित्रता नहीं है
तो भारत का हाल देखो क्या हो चुका है। पवित्रता है तो पीस-प्रासपर्टी सब है इसलिए
श्रीमत पर आग और कपूस इकट्ठे रहते भी पवित्र बनना है (प्रवृत्ति में रहते पवित्र बनना है)।
घरबार का सन्यास नहीं करना है।
गीत:- आने वाले कल की तुम तकदीर हो.....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा हर्षित, खुशमिज़ाज़ रहना है। कभी भी रोना नहीं है। जीते जी सबसे छुट्टी ले लेनी है।
किसी का भी चिन्तन नहीं करना है।
2) अपने शान्ति स्वधर्म में स्थित रहना है। ज्ञान और योग से तीखा जाना है। ध्यान की आश नहीं रखनी है।
वरदान:- किनारा करने के बजाए स्वयं को एडजेस्ट करने वाले सहनशीलता के अवतार भव
कई बच्चों में सहनशक्ति की कमी होती है इसलिए कोई छोटी सी बात भी होती है तो चेहरा बहुत
जल्दी बदल जाता है, फिर घबराकर या तो स्थान को बदलने की सोचेंगे या जिनसे तंग होंगे उनको
बदल देंगे, अपने को नहीं बदलेंगे, लेकिन दूसरों से किनारा कर लेंगे इसलिए स्थान अथवा दूसरे को
बदलने के बजाए स्वयं को बदल लो, सहनशीलता का अवतार बन जाओ। सबके साथ स्वयं को एडजेस्ट
करना सीखो।
स्लोगन:- परमार्थ के आधार से व्यवहार को सिद्ध करना - यही योगी का लक्षण है।