Saturday, June 30, 2018

01-07-18 प्रात:मुरली

01-07-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 14-12-83 मधुबन

प्रभु परिवार - सर्वश्रेष्ठ परिवार
आज बापदादा अपने श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार को देख रहे हैं। ब्राह्मण परिवार कितना ऊंचे ते ऊंचा परिवार है। उसको सभी अच्छी तरह से जानते हो? बापदादा ने सबसे पहले परिवार के प्यारे सम्बन्ध में लाया। सिर्फ श्रेष्ठ आत्मा हो, यह ज्ञान नहीं दिया लेकिन श्रेष्ठ आत्मा, बच्चे हो। तो बाप और बच्चे के सम्बन्ध में लाया। जिस सम्बन्ध में आने से आपस में भी पवित्र सम्बन्ध भाई-बहन का जुटा। जहाँ बापदादा, भाई-बहन का सम्बन्ध जुटा तो क्या हो गया! प्रभु परिवार। कभी स्वप्न में भी ऐसे भाग्य को सोचा था कि साकार रूप से डायरेक्ट प्रभु परिवार में वारिस बन वर्से के अधिकारी बनेंगे? वारिस बनना सबसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ भाग्य है। कभी सोचा था कि स्वयं बाप हम बच्चों के लिए हमारे समान साकार रूपधारी बन बाप और बच्चे का वा सर्व सम्बन्धों का अनुभव करायेंगे? सकार रूप में प्रभु पालना लेंगे, यह कभी संकल्प में भी नहीं था। लेकिन अभी अनुभव कर रहे हो ना! यह सब अनुभव करने का भाग्य तब प्राप्त हुआ जब प्रभु परिवार के बने। तो कितने ऊंचे परिवार के अधिकारी बच्चे बने। कितनी पवित्र पालना में पल रहे हो! कैसे अलौकिक प्राप्तियों के झूलें में झूल रहे हो! यह सब अनुभव करते हो ना। परिवार बदल गया। युग बदल गया। धर्म, कर्म सब बदल गया। युग परिवर्तन होने से दु:ख के संसार से सुखों के संसार में आ गये। साधारण आत्मा से पुरुषोत्तम बन गये। 63 जन्म कीचड़ में रहे और अभी कीचड़ में कमल बन गये। प्रभु परिवार में आना अर्थात् जन्म-जन्मान्तर के लिए तकदीर की लकीर श्रेष्ठ बन जाना। प्रभु परिवार, परिवार अर्थात् वार से परे हो गये। कभी भी प्रभु बच्चों पर वार नहीं हो सकता। प्रभु परिवार का बने, सदा के लिए सर्व प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो गये। ऐसे मास्टर सर्वशक्तिमान बन गये जो प्रकृति भी आप प्रभु बच्चों की दासी बन सेवा करेगी। प्रकृति आप प्रभु परिवार को श्रेष्ठ समझ आपके ऊपर जन्म जन्मान्तर के लिए चंवर (पंखा) झुलाती रहेगी। श्रेष्ठ आत्माओं के स्वागत में, रिगार्ड में चंवर झुलाते हैं ना। प्रकृति सदाकाल के लिए रिगार्ड देती रहेगी। प्रभु परिवार से अभी भी सर्व आत्माओं को स्नेह है। उसी स्नेह के आधार पर अभी तक गायन और पूजन करते रहते हैं। प्रभु परिवार के चरित्रों का अभी भी कितना बड़ा यादगार शास्त्र भागवत, प्यार से सुनते और सुनाते रहते हैं। प्रभु परिवार का शिक्षक और गाडली स्टूडेन्ट लाइफ का, पढ़ाई का यादगार शास्त्र गीता कितने पवित्रता से विधिपूर्वक सुनते और सुनाते हैं। प्रभु परिवार का यादगार आकाश में भी सूर्य, चन्द्रमा और लकी सितारों के रूप में मनाते और पूजते रहते हैं। प्रभु परिवार बाप के दिलतख्तनशीन बनते, ऐसा तख्त सिवाए प्रभु परिवार के और किसको भी प्राप्त हो नहीं सकता। प्रभु परिवार की यही विशेषता है। जितने भी बच्चे हैं सब बच्चे तख्तनशीन बनते हैं। और कोई भी राज्य परिवार में सब बच्चे तख्तनशीन नहीं होते हैं। लेकिन प्रभु के बच्चे सब अधिकारी हैं। इतना श्रेष्ठ और बड़ा तख्त सारे कल्प में देखा, जिसमें सभी समा जाएं? प्रभु परिवार ऐसा परिवार है जो सभी स्वराज्य अधिकारी होते। सभी को राजा बना देता। जन्म लेते ही स्वराज्य का तिलक बापदादा सभी बच्चों को देते हैं। प्रजा तिलक नहीं देते, राज्य तिलक देते हैं। महिमा भी राज्य तिलक की है ना। राज-तिलक दिवस विशेष मनाया जाता है। आप सबने अपना राज तिलक दिवस मनाया है या अभी मनाना है? मना लिया है ना! खुशी की निशानी, भाग्य की निशानी, संकट दूर होने की निशानी, तिलक होता है। जब कोई किसी कार्य पर जाते हैं, कार्य सफल रहे उसके लिए परिवार वाले तिलक लगाकर भेजते हैं। आप सबको तो तिलक लगा हुआ है ना। तिलकधारी, तख्तधारी, विश्व-कल्याण के ताजधारी बन गये हो ना। भविष्य का ताज और तिलक इसी जन्म के प्राप्ति की प्रालब्ध है। विशेष प्राप्ति का समय वा प्राप्तियों की खान प्राप्त होने का समय अभी है। अभी नहीं तो भविष्य प्रालब्ध भी नहीं। इसी जीवन का गायन है दाता के बच्चों को, वरदाता के बच्चों को अप्राप्त नहीं कोई वस्तु। भविष्य में फिर भी एक अप्राप्ति तो होगी ना। बाप का मिलन तो नहीं होगा ना। तो सर्व प्राप्तियों का जीवन ही ईश्वरीय परिवार है। ऐसे परिवार में पहुंच गये हो ना। समझते हो ना ऐसे ऊंचे परिवार के हैं! जिसकी महिमा करें तो अनेक रात दिन बीत जाएं। देखो, भक्तों को कीर्तन गाते-गाते कितने दिन और रात बीत जाते हैं। अभी तक भी गा रहे हैं। तो ऐसा नशा और खुशी सदा रहती है? मैं कौन! यह पहेली सदा याद रहती है? विस्मृति-स्मृति के चक्र में तो नहीं आते हो ना! चक्र से तो छूट गये ना। स्वदर्शन चक्रधारी बनना अर्थात् अनेक हद के चक्करों से छूट जाना। ऐसे बन गये हो ना। सभी स्वदर्शन चक्रधारी हो ना। मास्टर हो ना! तो मास्टर सब जानते हैं! रोज़ अमृतवेले मैं कौन - यह स्मृति में रखो तो सदा समर्थ रहेंगे। अच्छा!

बापदादा बेहद के परिवार को देख रहे हैं। बेहद का बाप बेहद के परिवार को बेहद की याद-प्यार देते हैं।

सदा श्रेष्ठ परिवार के नशे में रहने वाले प्रभु परिवार के महत्व को जान महान बनने वाले, सर्व प्राप्तियों के भण्डार श्रेष्ठ राज्य भाग्य प्राप्त करने वाले प्रभु रत्नों को याद-प्यार और नमस्ते।

(ग्याना के अंकल और आंटी से) सर्विसएबुल बच्चों को बापदादा मिलन के साथ स्वागत कर रहे हैं। जितना पल-पल याद करते आये हो उसके रिटर्न में बापदादा नयनों की पलकों में समाए हुए बच्चों का स्वागत कर रहे हैं। एक बाप के गुण गाने वाले बच्चों को देख बापदादा भी बच्चों की विशेषता के गुण गाते हैं। निशदिन, निशपल, गीत गाते रहते हो ना। जब बच्चे गीत गाते तो बाप क्या करते? जब कोई अच्छा गीत गाता है तो सुनने वाले क्या करते हैं? न चाहते हुए भी नाचने लग जाते हैं। चाहे नाचना आवे या न आवे लेकिन बैठे-बैठे भी नाचने लग जाते हैं। तो बच्चे जब स्नेह के गीत गाते हैं तो बापदादा भी खुशी में नाचते हैं ना इसीलिए शंकर डांस बहुत मशहूर है। सेवा भी तो नाचना है ना। जिस समय सर्विस करते हो उस समय मन क्या करता है? नाचता है ना। तो सेवा करना भी नाचना ही है। अच्छा

बापदादा सदा बच्चों की विशेष विशेषता को देखते हैं। जन्मते ही विशेष 3 तिलक बापदादा द्वारा मिले हैं। कौन से? ताज, तख्त तो हैं ही लेकिन 3 तिलक विशेष हैं। एक स्वराज्य का तिलक तो मिला ही है। दूसरा जन्मते ही सर्विसएबल का तिलक मिला। तीसरा जन्मते ही सर्व परिवार के, बापदादा के स्नेही और सहयोगीपन का तिलक। तीनों तिलक जन्मते ही मिले ना। तो त्रिमूर्ति तिलकधारी हो। ऐसे विशेष सेवाधारी सदा अपने को समझते हो। अनेक आत्माओं को उमंग - उत्साह दिलाने के निमित्त बनने की सेवा ड्रामा में मिली हुई है। अच्छा। जितना बच्चे बाप को याद करते हैं, उतना बाप भी तो याद करते हैं। सबसे ज्यादा अखण्ड अविनाशी बाप की याद है। बच्चे और कार्य में भी बिजी हो जाते हैं लेकिन बाप का तो काम ही यह है। अमृतवेले से लेकर सबको जगाने का काम शुरू करते हैं। देखो कितने बच्चों को जगाना पड़ता है और फिर देश-विदेश में, एक स्थान पर भी नहीं हैं। फिर भी बच्चे पूछते सारा दिन क्या करते!

बच्चों के बाद फिर भक्तों को करते, फिर साइंस वालों को प्रेरणा देते। सभी बच्चों की देख-रेख तो करनी पड़े। चाहे ज्ञानी हैं, चाहे अज्ञानी हैं लेकिन कई प्रकार से सहयोगी तो हैं ना। कितने प्रकार के बच्चों की सेवा है। सबसे ज्यादा बिज़ी कौन हैं? सिर्फ अन्तर यह है, शरीर का बन्धन नहीं है। अभी कुछ टाइम तो आप सब भी बाप समान बनेंगे ही। मूलवतन में रहेंगे। यह भी आशा सभी को पूरी होगी। अच्छा-

मधुबन निवासियों के साथ - मधुबन निवासियों की महिमा तो जानते ही हो। जो मुधबन की महिमा है वही मधुबन निवासियों की महिमा है। हर पल समीप साकार में रहना इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है। दर पर बैठे हो, घर में बैठे हो, दिल पर बैठे हो। मधुबन निवासियों को मेहनत करने की आवश्यकता नहीं, योग लगाने की आवश्यकता है क्या! योग लगा हुआ ही रहता है। लगे हुए को लगाने की आवश्यकता नहीं। स्वत:योगी, निरन्तर योगी। जैसे ट्रेन में इंजन लगी हुई है, सभी डिब्बे पट्टे पर हैं तो स्वत: चलते रहते हैं, चलाना नहीं पड़ता है। ऐसे आप भी मधुबन के पट्टे पर हो, इंजन लगी हुई है तो स्वत: चलते रहेंगे। मधुबन निवासी अर्थात् मायाजीत। माया आने की कोशिश करेगी लेकिन जो बाप की कशिश में रहते हैं वह सदा मायाजीत रहेंगे। माया की कोशिश दूर से ही समाप्त हो जायेगी। सेवा तो सभी बहुत अच्छी करते हैं। सेवा के लिए एक एग्जैम्पुल हो। कोई कहाँ भी चारों ओर सेवा में थोड़ा भी नीचे ऊपर करते हैं तो सभी मधुबन वालों का ही दृष्टान्त देते हैं। मधुबन में कितनी अथक सेवा प्यार से घर समझकर करते हैं, यह सभी मानते हैं। जैसे सेवा में सभी नम्बरवन हो, 100 मार्क्स ली हैं, ऐसे सब सब्जेक्ट में भी 100 मार्क्स चाहिए। आप लोग बोर्ड पर लिखते हो ना हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस तीनों ही मिलती हैं। तो यह भी सब सबजेक्ट में मार्क्स चाहिए। सबसे ज्यादा सुनते मधुबन वाले हैं। पहला-पहला ताज़ा माल तो मधुबन वाले खाते हैं। दूसरे तो एक टर्न में एक बारी विशेष ब्रह्मा भोजन खाते। आप तो रोज़ खाते। सूक्ष्म भोजन, स्थूल भोजन सब गर्म, ताजा मिलता है। अच्छा -

नई तैयारी क्या कर रहे हो? घर को तो अच्छा प्यार से सजा रहे हो। मधुबन की यह विशेषता है, हर बार कोई न कोई नई एडीशन हो जाती है। जैसे स्थूल में नवीनता देखते, ऐसे चैतन्य में भी हर बार नवीनता देख वर्णन करें कि इस बार विशेष मधुबन में इस प्राप्ति की लहर देखी। भिन्न-भिन्न लहरें हैं ना। कभी विशेष आनन्द की लहर हो, कभी प्यार की, कभी ज्ञान के विशेषताओं की.. हरेक को यही लहर दिखाई दे। जैसे सागर की लहरों में कोई जाता तो लहराना ही पड़ता, नहीं तो डूब जायेगा। तो यह लहरें स्पष्ट दिखाई दें। इस कानफ्रेन्स में विशेष क्या करेंगे? वी.आई.पीज़. आयेंगे, पेपर वाले आयेंगे, वर्कशाप होंगी, यह तो होगा लेकिन आप सब विशेष क्या करेंगे? जैसे स्थूल दिलवाड़ा है उसकी विशेषता क्या है? हरेक कमरे की डिज़ाइन अलग-अलग वैरायटी है। हर कमरे की अपनी-अपनी विशेषता है। इसलिए यह मन्दिर सब मन्दिरों से न्यारा है। मूर्तियां तो औरों में भी होती हैं लेकिन इस मन्दिर में जहाँ जाओ वहाँ विशेष कारीगरी है। ऐसे चैतन्य दिलवाड़ा मन्दिर में भी हर मूर्तियों की विशेषता अपनी-अपनी दिखाई दे। जिसको देखें, उसकी एक दो से आगे विशेष विशेषता दिखाई दे। जैसे वहाँ कहते कमाल है बनाने वाले की। ऐसे यहाँ एक-एक की विशेषता की कमाल वर्णन करें। आप लोग इस बात की मीटिंग करो। कोई बड़ी बात नहीं है, कर सकते हो। जैसे सतयुग में देवतायें सिर्फ निमित्तमात्र टीचर द्वारा थोड़ा-सा सुनेंगे लेकिन स्मृति बहुत तेज़ होगी, याद करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसे सुना हुआ ही है, वह सिर्फ फ्रेश हो रहा है। मधुबन वालों के लिए हुआ पड़ा है। सिर्फ थोड़ा-सा दृढ़ संकल्प का इशारा है बस। संकल्प भी बहुत अच्छे-अच्छे करते हो लेकिन उसमें दृढ़ता को बार-बार अन्डरलाइन करो। अच्छा!
वरदान:-
दिलाराम बाप की याद द्वारा तीनों कालों को अच्छा बनाने वाले इच्छा मुक्त भव
जिन बच्चों की दिल में एक दिलाराम बाप की याद है वह सदा वाह-वाह के गीत गाते रहते हैं, उनके मन से स्वप्न में भी ''हाय'' शब्द नहीं निकल सकता क्योंकि जो हुआ वह भी वाह, जो हो रहा है वह भी वाह और जो होना है वह भी वाह। तीनों ही काल वाह-वाह है अर्थात् अच्छे ते अच्छा है। जहाँ सब अच्छा है वहाँ कोई इच्छा उत्पन्न नहीं हो सकती क्योंकि अच्छा तब कहेंगे जब सब प्राप्तियां हैं। प्राप्ति सम्पन्न बनना ही इच्छा मुक्त बनना है।
स्लोगन:-
संस्कारों को ऐसा शीतल बना लो जो जोश वा रोब के संस्कार इमर्ज ही न हों।
 

30-06-18 Murli

30/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, continue to say "Baba, Baba" from your hearts and there will be unlimited happiness. This is not just something to say, but let there be this continual remembrance internally and all your sorrow and suffering will be removed.
Question:
When some children say, "Baba, my mind is confused, I have problems", what teaching does Baba give to show them how to stay in happiness?
Answer:
Baba says: Children, these words that you say are wrong. It is wrong to say, "My mind is confused." When the intellect's yoga with the Father breaks, the intellect wanders and there is unhappiness. This is why Baba shows you a method: Keep your chart. Continue to say "Baba, Baba" internally. Take shrimat at every step and your confusion will finish.
Song:
Dweller of the Forest, your name is the support of my life!  
Om Shanti
Incorporeal God speaks to you incorporeal children. Through whom does incorporeal God speak? Through this body that He has taken on loan. It has been explained that the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, doesn't have a bodily name. All human souls have bodily names and they are called by those names. Here, the incorporeal Father says to the incorporeal children: Forget those bodies. You souls have to shed those bodies and come to Me. You must no longer take birth in this land of death. Those physical parents bring you into relationships with bodies - “This one is your so-and-so” - whereas the Father from beyond says: I am the Incorporeal. I am called the Supreme Father, the Supreme Soul. You too are incorporeal souls. I have taken the support of this body, whereas you have your own bodies. This body I take is on loan. Now, remember Me, your Father. I am the incorporeal Father of you souls. Say, "Baba, Baba." Sometimes, some children say: My mind is confused. My mind is unhappy. Oh! but why do you use the word ‘mind’? Say, "Why do I forget Baba? Why do I forget Baba who makes me worthy of heaven?” Renounce the consciousness of the body and become soul conscious. Baba says: You now have to return home. Remember Me. Incorporeal Baba says to incorporeal souls: Continue to say, "Baba, Baba." That One is the Father whereas the mother is incognito. A mother is definitely needed with the Father. No one in the world knows that the Father creates the mouth-born creation through this one and that that is why He is called the Father. So, where is the mother? Jagadamba would not be called the mother. Jagadamba is the instrument to look after everyone because this one cannot look after everyone as he is a male. This is why there is Jagadamba. Her mother is also this one; Brahma is the senior mother. All of you are Brahma Kumars and Kumaris. They speak of the Mother and Father, and so the Father sits here and explains. This is not the task of a sage or holy man. The Father establishes heaven. Maya Ravan begins to change it into hell. The Father gives happiness and Maya causes sorrow. This is a play about happiness and sorrow, and it is about Bharat. Bharat was like a diamond. It has now become like a shell. There was the pure household religion in Bharat and there are its images. There used to be the kingdom of Lakshmi and Narayan, but no one knows when it was established. They say that the duration of a cycle is hundreds of thousands of years. It has been explained to you children that 5000 years ago it was the kingdom of Lakshmi and Narayan. There were Lakshmi and Narayan the First, the Second, the Third etc. There were eight in the dynasty. Then there were twelve in the moon dynasty. There are the dynasties: the dynasty of Mughals, the dynasty of Sikhs. It has been explained to you children that 5000 years ago there was just the one kingdom of Lakshmi and Narayan in Bharat. There used to be the World Almighty Authority Government. Only the Father creates that. This is what the people of Bharat ask for. Now, there is no kingdom; there is no king nor queen. This is the temporary rule of people over people. There is no happiness in this. As time goes by, there will continue to be more sorrow. This is called happiness like a mirage. In the scriptures there is the example of Draupadi and Duryodhan. In fact, it was not like that. They sat and made up all of those stories. This kingdom is like a mirage. They (the people of Bharat) got their kingdom and yet they continue to be even more unhappy. There wasn't as much sorrow at the time of the British Government. Everything was very cheap. Everything now is so expensive! Famine, torrential rainfall, earthquakes etc. will all come in front of you. People will be desperate for water. You children are now sacrificing your bodies, minds and wealth in the service of making Bharat into heaven. You help the Father. The Father then establishes the one World Almighty Authority Government, the one kingdom. After the cries of distress, there will be cries of victory. You are to see with your eyes in a practical way the visions you had of destruction. The Father sits here and explains: Consider yourselves to be souls. You are the children of Baba. Therefore, continue to say "Baba, Baba!" When you say, "My mind is confused” or “My mind is unhappy", remove the word ‘mind’. How can there be happiness if you don't remember Baba? You become unhappy because of not knowing yourself. Why do you use the word ‘mind’? Oh! can you not remember the Father? Is it that you forget the Father? Do you ever say of your physical father that you can’t remember him? Even little children are taught: This is your mother and father. Here, the unlimited Father says: Remember Me and I will take you to heaven. You simply have to belong to Baba. The Father says: Continue to follow My directions. You have to show your account to the Father. A father is aware of how much his children earn. So, the Father, too, will only know when you tell Him. The Father quickly tells you: I am making you into the masters of Paradise. Baba says: I am the Bestower. I have come to give to you. Also use everything you have in a worthwhile way because this is how you now have to create your future. You will receive the huge sovereignty of Paradise to the extent that you use everything in a worthwhile way. There is the account of give and take; you exchange everything. In return for the old, He gives you everything new. He is a first-class Customer. Give with one hand and take with the other. There is a saying: Lord, let my first customer be such that the earning from that customer is enough. The Father comes to make you into a complete master of the world. The Father says: All of this wealth and property is to turn to dust. Therefore renounce it. Forget all your bodily relations, including your own body, and consider yourself to be a trustee. All of this has been given by God; it is all His. However, you have to perform actions for the livelihood of your body. If Baba is aware of everything He can continue to advise you. Some ask: “Baba, should I buy a car?” OK, if you have the money, you may buy a car. “Baba, I want to build a building.” OK, you may build it. Baba will continue to advise you. If you have money, build many buildings, travel by aeroplane; experience a lot of happiness. Baba only gives directions to the children. Some ask about getting their daughter married. If she is unable to follow the path of knowledge, get her married. The father (Brahma) would always give right directions. If he gives wrong directions, Shiv Baba is responsible. He is also Dharamraj. This is not a common spiritual gathering. This is the Godfatherly University. The Father advises you: Children, become the masters of heaven. Follow shrimat. Become soul conscious. The names there are so beautiful. There are no names such as ‘Mr. Basarmal’ etc. there. There, the names are those such as Ramachandra, Krishnachandra. They also receive the title Shri because they are elevated. Here, they continue to give the title Shri Shri to cats and dogs etc. The Father explains: This is a dirty old world. It is all to be destroyed. You now have to follow My shrimat. The Shrimad Bhagawad Gita is the main one. However, there are innumerable Vedas and scriptures. The Father establishes all three religions: Brahmin, deity and warrior. Then Abraham establishes his own religion. His scripture is such-and-such. Achcha, which religion are the Vedas a scripture of? They don't know anything. The Vedas are not the scripture of the sannyas religion. If their scripture is the Vedas, they should just study that. So, why do they take up the Gita? Christians are sensible: they would never take up a scripture of another religion. The people of Bharat make many people their gurus. Baba has explained that when a group of four or five people come, you should explain to each one individually, just as you used to sit with each one individually in Pakistan. By explaining to each one individually, you would be able to feel each one’s pulse. Get each one to fill in a form because the illness of each one is different. A surgeon would call each patient individually, feel the pulse and give medicine after seeing each one. Have the faith: I am a soul. It is the soul that listens. It is the soul that becomes impure. To say that souls are immune to the effect of action is a lie. Whatever actions a soul performs, he receives the fruit of that accordingly. People say: This one has performed such actions. Now, Baba is teaching us such good actions that we will remain happy for 21 births. There is the philosophy of karma. In the golden age, actions become neutral. There are no sins committed there. Maya, who makes you commit sin, doesn’t exist there. The kingdom is being established and so you would definitely receive the inheritance. You have to reach your karmateet stage. There are the sins of many births on your head. Your sins cannot be absolved by your bathing in the Ganges or by chanting or doing tapasya. Sins can only be absolved with the fire of yoga. At the end, everyone's karmic accounts will be settled, numberwise. If they are not settled, there will have to be punishment. They have to be settled by having remembrance of the Father. It is because you don't remember the Father that you souls wilt. The Father says: If you don't remember Me, Maya will attack you. Remember Me as much as possible. If you remember Me for a minimum of eight hours, you will pass. Keep your chart. Storms come when you don't consider yourself to be a soul and remember the Father. It is remembered: Receive happiness by having constant remembrance. You have to remember internally. You have to remain silent. You don't have to say "Rama, Rama" or "Shiva, Shiva". Your sorrow and suffering will be removed by having remembrance and you will become free from disease. This is a straightforward matter. You are slapped by Maya when you forget the Father. The Father says: You may live at home with your family. Continue to ask Baba for advice at every step so that you don’t do anything sinful. If your daughter doesn't follow the path of knowledge, you have to give something to her. If a son is unable to remain pure, he can earn his own income; he can go and get married. Some have big fights over their father's property. They don’t give their full news. They are stepchildren, whereas real ones will definitely tell Baba. How can the Father know unless you give Him your news? If your face is cheerful here, you will remain constantly cheerful there too. In the Birla temple, there is a first-class picture of Lakshmi and Narayan. However, people don’t know when they came. Where did that kingdom of Bharat go? You can go and explain to them. At first, there was satopradhan, unadulterated devotion. Then, later, devotion became adulterated, rajo and then tamopradhan. Earlier, they used to say that God is infinite. Now they say that all are God. That is called a tamo intellect. Therefore, you shouldn't say that you can't focus your mind. Why do you say this? Your condition becomes like that when you forget the Father. Remember the Father and your mercury of happiness will remain high. By remembering the Father, there is a huge income. Remember the Father the whole night. Become conquerors of sleep. You have been singing: I will surrender to you. He says: I have come. Therefore constantly remember Me. He is the Father of me, the soul. You have to remember Him. All attachment to this one should be broken. Become a destroyer of attachment and connect your intellect to the One and you will become strong. I now have to go to the new home. Why should I have attachment to the old world? When a new house is being built, the heart is removed from the old one. The Father says: Everything, including this body, is old. Now remember the Father and your inheritance. Through this study, we will become princes and princesses in the golden age. Baba gives the practical fruit in a second. This is a college for becoming princes and princesses. It is not a college where princes and princesses study. You have to become that here. Then, having become princes, you will surely become kings. Achcha.

To the sweetest beloved long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from BapDada and sweetest Mama. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Sacrifice your body, mind and wealth in serving Bharat to make it into heaven. Become a full helper of the Father.
2. Remain cheerful here. Don’t wilt in any situation. End all your sorrow and suffering through having remembrance of the Father.
Blessing:
May you be a constant yogi and a constant server and serve with your activity and your face.
Constantly maintain the awareness that you are one out of a handful of multimillion souls who know the Father and who have found Him. Maintain this happiness and your face will become a mobile centre for service. People will continue to receive the Father’s introduction from your cheerful face. BapDada considers every child to be so worthy and capable. So, while moving along, while eating and drinking and by doing the service of giving the Father’s introduction through your behaviour and face, you will easily become a constant yogi and a constant server.
Slogan:
Those who remain constantly unshakeable and immovable like Angad cannot be shaken even by the enemy, Maya.
 

30-06-18 प्रात:मुरली

30-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - दिल से बाबा-बाबा कहते रहो तो अपार खुशी रहेगी, यह मुख से कहने की बात नहीं, अन्दर में सिमरण चलता रहे तो सब कलह-क्लेष मिट जायेंगे"
प्रश्नः-
कई बच्चे कहते - बाबा, मेरा मन मूँझता है, उलझन रहती है, तो बाबा उन्हें कौनसी शिक्षा देते हुए खुशी में रहने की युक्ति बताते हैं?
उत्तर:-
बाबा कहते - बच्चे, तुम यह शब्द ही राँग बोलते हो। ‘मन मूँझता है'- यह कहना ही ग़लत है। बाप से बुद्धियोग टूटता है तब बुद्धि भटक जाती है। उदासी आ जाती है इसलिए बाबा युक्ति बताते - अपना चार्ट रखो, अन्दर में बाबा-बाबा सिमरण करते रहो। हर कदम पर श्रीमत लो तो उलझन समाप्त हो जायेगी।
गीत:-
बनवारी रे, जीने का सहारा........  
ओम् शान्ति।
निराकार भगवानुवाच, निराकार बच्चों प्रति। निराकार भगवानुवाच किस द्वारा? इस लोन लिए हुए तन द्वारा। समझाया गया है - निराकार परमपिता परमात्मा का कोई शारीरिक नाम नहीं है। बाकी जो भी मनुष्यमात्र हैं उनका शारीरिक नाम पड़ता है। उस नाम से बुलाया जाता है। यहाँ फिर निराकार बाप निराकार बच्चों को कहते हैं कि इस शरीर को भूल जाओ। तुम आत्माओं को यह शरीर छोड़ मेरे पास आना है। अभी तुमको इस मृत्युलोक में जन्म नहीं लेना है। वह लौकिक माँ-बाप शारीरिक सम्बन्ध में लाते हैं - यह तुम्हारा फलाना है... और पारलौकिक बाप कहते हैं - हम निराकार हैं, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। तुम भी निराकार आत्मा हो। इस शरीर का आधार लिया है। तुम्हारा अपना शरीर है। हमारा यह शरीर उधार लिया हुआ है। अभी तुम मुझ बाप को याद करो। मैं तुम आत्माओं का निराकार बाप हूँ। ‘बाबा-बाबा' अक्षर बोलो। कभी-कभी कोई बच्चे कहते हैं - हमारा मन मूँझता है, मन को खुशी नहीं है। अरे, मन अक्षर क्यों कहते हो? बोलो - बाबा, हमको क्यों भूल जाता है! बाबा जो हमको स्वर्ग के लिए लायक बनाते हैं, उनको हम क्यों भूलते हैं! शरीर का भान छोड़ देही-अभिमानी बनो। बाबा कहते हैं - अब तुमको वापिस आना है, मुझे याद करो। निराकार बाबा निराकार आत्माओं को कहते हैं - ‘बाबा-बाबा' करते रहो। यह बाप है और माता फिर है गुप्त। फादर के साथ माता तो जरूर चाहिए ना। दुनिया में कोई को पता नहीं - बाप इनके द्वारा मुख वंशावली बनाते हैं, तब उनको फादर कहते हैं। फिर मदर कहाँ? जगत अम्बा को नहीं कहेंगे। जगत अम्बा तो निमित्त है सम्भालने लिए क्योंकि यह मेल होने के कारण सम्भाल न सके इसलिए जगत अम्बा है। उनकी भी माँ यह है। ब्रह्मा बड़ी माँ है। यह सब हैं - ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। वह कहते हैं मात-पिता। तो यह बाप बैठ समझाते हैं। यह कोई साधू-सन्त का काम नहीं।

बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। माया रावण नर्क बनाने लग पड़ती है। बाप सुख देते हैं, माया दु:ख देती है। यह है ही सुख-दु:ख का खेल और है भारत के लिए। भारत हीरे जैसा था। अब कौड़ी जैसा बन पड़ा है। भारत में पवित्र गृहस्थ धर्म था, जिन्हों के चित्र हैं। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था परन्तु वह कब स्थापन हुआ - यह कोई जानते नहीं। कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। तुम बच्चों को समझाया जाता है - 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। फिर लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड चलते हैं। आठ गद्दियाँ चलती हैं। फिर चन्द्रवंशी में 12 चलती हैं। डिनायस्टी होती है ना। मुगलों की डिनायस्टी, सिक्खों की डिनायस्टी....। बच्चों को समझाया जाता है - 5000 वर्ष पहले भारत में एक ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी गवर्मेन्ट थी। वह बाप ही बनाते हैं। भारतवासी माँगते भी यह हैं। अभी तो राजाई है नहीं, न किंग-क्वीन हैं। यह है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य, क्षण-भंगुर का, इनमें कोई सुख नहीं। जितना समय पास होता जाता, दु:ख जास्ती होता जायेगा, इनको मृगतृष्णा समान सुख कहा जाता है। शास्त्रों में द्रोपदी और दुर्योधन का एक मिसाल भी है। वास्तव में ऐसे है नहीं। यह सब बातें बैठ बनाई हैं। है यह रूण्य (मरुस्थल) के पानी मिसल राज्य। राज्य मिला है तो और ही दु:खी होते जाते हैं। ब्रिटिश गवर्मेन्ट के समय इतना दु:ख नहीं था। बहुत सस्ताई थी। अभी तो हर चीज़ की कितनी महंगाई हो गई है! फैमन (अकाल), मूसलाधार बरसात, अर्थ-क्वेक आदि यह सब सामने आयेंगे। मनुष्य पानी के लिए हैरान होंगे। अभी तुम बच्चे अपना तन-मन-धन भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में स्वाहा करते हो। बाप को मदद करते हो। बाप फिर वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी, वन गवर्मेन्ट, वन राज्य स्थापन करते हैं। हाहाकार के बाद फिर जयजयकार होना है। जो विनाश का साक्षात्कार किया है, वह प्रैक्टिकल इन आंखों से देखना है। तो बाप बैठ समझाते हैं - तुम अपने को आत्मा समझो। बाबा के बच्चे हैं, बाबा-बाबा करते रहो। मन मूँझता है, मन में खुशी नहीं है, यह ‘मन' अक्षर निकाल दो। बाबा को याद नहीं करेंगे तो फिर खुशी कैसे होगी? अपने आपको न जानने के कारण ही दु:खी होते हैं। तुम ‘मन' अक्षर क्यों कहते हो? अरे, तुमको बाप याद नहीं पड़ता! बाप को भूल जाते हो क्या! लौकिक बाप के लिए कभी कहते हो क्या - हमको याद नहीं पड़ता है? छोटे बच्चे को भी सिखलाया जाता है - यह माँ-बाप है। यह बेहद का बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग में ले जाऊंगा। सिर्फ बाबा का बनना है। बाप कहते हैं मेरी मत पर चलते रहो। बाप को तो पोतामेल भी बताना पड़े ना। बाप को अपने बच्चों का पता रहता है ना - यह कितनी कमाई करता है? तो बाप को जब बतायेंगे तब तो पता पड़े। बाप तो झट बताते हैं - तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाता हूँ।

बाबा कहते हैं - मैं तो दाता हूँ, तुमको देने लिए आया हूँ। तुम भी अपना सब कुछ सफल करने वाले हो इसलिए भविष्य के लिए अब बनाना है। जो जितना सफल करेंगे उन्हें उतनी बड़ी वैकुण्ठ की बादशाही भी मिलेगी। लेन-देन का हिसाब है। एक्सचेन्ज करते हैं। पुराने के बदले सब नया देते हैं। यह तो फर्स्ट क्लास ग्राहक है। एक हाथ दो, दूसरे हाथ लो। एक कहावत है ना - सुबह का सांई.... बाप तो एकदम विश्व का मालिक बनाने आते हैं। बाप कहते हैं - यह सब कुछ धन माल आदि धूल में मिल जाना है। इनको छोड़ो। देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो, अपने को ट्रस्टी समझो। यह सब ईश्वर का दिया हुआ है। उनका ही है। बाकी शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। बाबा को मालूम होगा तो राय देते रहेंगे। कहते हैं - बाबा मोटर लूँ? अच्छा, पैसा है तो भल मोटर लो। मकान बनाना है? अच्छा, भल बनाओ। राय देते रहेंगे। पैसा है तो खूब मकान बनाओ, एरोप्लेन में घूमो, भल सुख लो। बच्चों को ही मत देंगे ना। कन्या की शादी के लिए पूछते हैं। अगर ज्ञान में नहीं चल सकती तो भल करा दो। बाप (ब्रह्मा) हमेशा राइट डायरेक्शन देंगे। अगर राँग दिया तो रेस्पान्सिबुल बाबा (शिवबाबा) है। वह तो फिर धर्मराज भी है ना। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। बाप राय देते हैं - बच्चे स्वर्ग के मालिक बनो, श्रीमत पर चलो, देही-अभिमानी बनो। वहाँ के नाम भी कितने सुन्दर होते हैं! बसरमल आदि नाम वहाँ होते नहीं। वहाँ रामचन्द्र, कृष्णचन्द्र आदि नाम होते हैं। श्री का टाइटिल भी मिलता है क्योंकि श्रेष्ठ हैं ना! यहाँ तो कुत्ते-बिल्ली सबको श्री-श्री का टाइटिल देते रहते हैं। तो बाप समझाते हैं - यह पुरानी छी-छी दुनिया है। यह सब खत्म हो जाना है। अभी तुम मेरी श्रीमत पर चलो। श्रीमत भगवत गीता है मुख्य। बाकी वेद-शास्त्र आदि तो अनेक हैं।

बाप ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय - तीनों धर्म स्थापन करते है। फिर इब्राहिम अपना धर्म स्थापन करते हैं। उनका शास्त्र फलाना। अच्छा, वेद किस धर्म का शास्त्र है? कुछ भी पता नहीं! सन्यास धर्म का शास्त्र कोई वेद नहीं है। अगर वेद शास्त्र है तो वही पढ़ें। फिर गीता क्यों उठाते? क्रिश्चियन लोग सयाने हैं। दूसरे धर्म का शास्त्र कभी नहीं लेंगे। भारत-वासी तो सबको गुरू करते रहेंगे। बाबा ने समझाया था - जब कोई 4-5 इकट्ठे आयें तो हरेक को अलग-अलग समझाना चाहिए। जैसे पाकिस्तान में तुम अलग-अलग बैठते थे। अलग-अलग समझाने से उनकी नब्ज का पता पड़ेगा। फार्म भराना है क्योंकि हरेक की बीमारी अलग-अलग है। सर्जन एक-एक को बुलाकर नब्ज देखकर दवा देते हैं।

निश्चय करना है हम आत्मा हैं। आत्मा ही सुनती है। आत्मा ही पतित बनती है। आत्मा को निर्लेप कहना - यह तो झूठ बात है। आत्मा जैसा कर्म करती है, वैसा फल मिलता है। कहते हैं ना - इनके कर्म ऐसे किये हुए हैं। अभी बाबा हमको कर्म ऐसा अच्छा सिखलाते हैं जो 21 जन्म हम सुखी रहेंगे। कर्मों की गति है ना। सतयुग में तो कर्म अकर्म हो जाता है। विकर्म कोई होता नहीं। विकर्म कराने वाली माया ही नहीं होती। राजधानी स्थापन होती है तो जरूर तुम वर्सा तो पायेंगे। कर्मातीत अवस्था को पाना है। जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं। गंगा स्नान वा जप-तप आदि करने से विकर्म विनाश नहीं हो सकते। विकर्म विनाश योग अग्नि से ही होते हैं। अन्त में सबका हिसाब-किताब चुक्तू होगा, नम्बरवार। चुक्तू नहीं होगा तो सजा खानी पड़ेगी। चुक्तू करना है बाप की याद से। याद नहीं करते हैं, तब आत्मा मुरझाती है। बाप कहते हैं - मेरे को याद नहीं करेंगे तो माया वार करेगी। जितना हो सके याद करो। कम से कम 8 घण्टे तक याद रहेगी तो तुम पास हो जायेंगे। चार्ट रखो। तूफान तब आते हैं जब अपने को आत्मा समझ बाप को याद नहीं करते हो। गाते भी हैं - सिमर-सिमर सुख पाओ। अन्दर सिमरना है। चुप रहना है। राम-राम वा शिव-शिव कहना नहीं है। याद से तुम्हारे कलह-क्लेष मिट जायेंगे। तुम निरोगी बन जायेंगे। सीधी बात है। बाप को भूलने से ही माया का थप्पड़ लगता है। बाप कहते हैं - रहो भी भल गृहस्थ व्यवहार में। कदम-कदम पर बाबा से राय पूछते रहो। कहाँ पाप का काम न हो जाये। कन्या ज्ञान में नहीं आती है तो उनको देना ही पड़े। बच्चा अगर पवित्र नहीं रह सकता तो अपना कमा सकते हैं। वो जाकर शादी करें। कई फिर बाप की मिलकियत पर बड़ा झगड़ा करते हैं। पूरा समाचार नहीं देते हैं। वह हुए सौतेले। मातेले जरूर बतायेंगे। बाप को समाचार नहीं देंगे तो बाप कैसे जानें?

यहाँ तुम्हारा चेहरा हर्षितमुख होगा तब वहाँ भी तुम सदा हर्षितमुख रहेंगे। बिरला मन्दिर में लक्ष्मी-नारायण का कितना फर्स्टक्लास चित्र है! परन्तु जानते नहीं कि यह कब आये थे? अभी वह भारत का राज्य कहाँ गया? तुम जाकर समझा सकते हो। पहले थी सतोप्रधान अव्यभिचारी भक्ति। फिर बाद में व्यभिचारी रजो, तमोप्रधान भक्ति होती है। आगे तो परमात्मा को बेअन्त कहते थे। अभी कहते हैं सब ईश्वर ही ईश्वर हैं, इसको तमो बुद्धि कहा जाता है।

तो ऐसे नहीं कहना चाहिए कि हमारा मन नहीं लगता। यह तुम क्या कहते हो! बाप को भूलने से ही यह हाल होता है। बाप को याद करो तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। बाप को याद करने से बड़ी भारी कमाई है। सारी रात बाप को याद करो। नींद को जीतने वाले बनो। गाते आये हो - बलिहार जाऊं। अब कहते हैं - मैं आया हूँ, तो मामेकम् याद करो ना। मुझ आत्मा का बाप वह है, उनको याद करना है। इनसे ममत्व मिट जाना चाहिए। नष्टोमोहा बन एक के साथ बुद्धि लगानी है तो पक्के हो जायेंगे। मुझे अब नये घर जाना है। पुराने घर से क्या ममत्व रखें। नया मकान बनाया जाता है तो फिर पुराने से दिल हट जाती है ना। बाप कहते हैं - देह सहित सब कुछ यह पुराना है। अब बाप और वर्से को याद करो। इस पढ़ाई से हम प्रिन्स-प्रिन्सेज जाकर बनेंगे सतयुग में। सेकेण्ड में बाबा प्रत्यक्षफल देते हैं। यह है प्रिन्स प्रिन्सेज बनने का कॉलेज। प्रिन्स-प्रिन्सेज का कॉलेज नहीं। यहाँ बनना है। फिर प्रिन्स के बाद राजा तो जरूर बनेंगे। अच्छा।

बापदादा, मीठी-मीठी मम्मा का सिकीलधे बच्चों को याद, प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में अपना तन-मन-धन स्वाहा करना है। बाप का पूरा पूरा मददगार बनना है।
2) यहाँ हर्षितमुख रहना है। किसी भी बात में मुरझाना नहीं है, बाप की याद से सब कलह-क्लेष मिटा देने हैं।
वरदान:-
अपनी चलन और चेहरे द्वारा सेवा करने वाले निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी भव
सदा इस स्मृति में रहो कि बाप को जानने और पाने वाली कोटों में कोई हम आत्मायें हैं, इसी खुशी में रहो तो आपके यह चेहरे चलते फिरते सेवाकेन्द्र हो जायेंगे। आपके हर्षित चेहरे से बाप का परिचय मिलता रहेगा। बापदादा हर बच्चे को ऐसा ही योग्य समझते हैं। तो चलते फिरते, खाते पीते अपनी चलन और चेहरे द्वारा बाप का परिचय देने की सेवा करने से सहज ही निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
जो अंगद समान सदा अचल अडोल एकरस रहते हैं, उन्हें माया दुश्मन हिला भी नहीं सकती।
 

Friday, June 29, 2018

29-06-18 Murli

29/06/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, the sweetest Father has come to make you sweet. You have to become as sweet as the deities and make others sweet.
Question:
Which children receive the blessing of remaining constantly happy?
Answer:
Those who value the jewels of knowledge. Each jewel is one that makes you a multimillionaire. You children have to imbibe these jewels and become rup and basant. If only jewels constantly continue to emerge from your lips, you can become constantly happy. The Father is pleased to see the children who become sweet and He gives them the blessing of remaining constantly happy. You children become ever wealthy and ever healthy through this blessing.
Song:
You have come into my heart.  
Om Shanti
This is such a sweet song. Although the film industry composed this song, they don't know anything. You sweet children are playing parts in this unlimited play. The unlimited Father is now playing a part in the unlimited drama, personally in front of you. You children only see sweet Baba in front of you. Souls see one another with their eyes (organs of the body). The souls that are sitting personally in front and for whom Baba says: "Sweet children" also know that. Baba says: I have come to make all the children very sweet. Maya has made you very bitter. Only the Father comes and explains this. You used to be so sweet. When you go to the temples, you consider the deities to be so sweet. You look at the deities with such sweet vision. You wait in anticipation for the temple to open so that you can have a sight of the sweet deities. Although they are made of stone, you understand that they were sweet when they existed. You go to the Shiva Temple. He is the sweetest. He definitely also existed in the past. The sweetest of all, the sweetest Father of all, must definitely have come in Bharat. All those who are in the temples existed in the past. They must definitely have done something when they existed. It would only be the children who know the sweetest Father. Therefore, it would definitely be said that the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is the sweetest of all. There is a lot of praise of Shiv Baba in Bharat in particular and the whole world in general. Many say: Shiva Kashi Vishwanath Ganga (Shiva, the One who resided at Kashi, the Lord of the World who brought the Ganges). They even go and reside there. This Baba has also gone around everywhere. People praise Shiva so much. The Father knows that all of you are sweet children. You are children of the family. Each one of you receives your part, numberwise. However, everyone’s vision would go to the hero and heroine. They sing: “You are the mother and father” to those who are the hero and heroine in this drama. You children know that you are sitting personally in front of that mother and father. You are not in front of the world. This is incognito. They have completely lost all name and trace of this one. They just have the image, but you can’t tell anything from that. There are many worshippers of Shiva, but they don’t have the full introduction. You know that Shiv Baba is the sweetest and that no one can be as sweet as He is. If that sweetest Father didn’t come, how would this impure world become pure? At this time, no one except you children are sweet. They say “Shivohum” (I am God). However, God is the sweetest. He is the Resident of the supreme abode. How can you say “Shivohum” (I am God) in this impure world? God is the Creator and the Purifier. All devotees remember God. It isn’t that all devotees are God. Only incorporeal Shiva is said to be the sweetest. You will go to sweetest heaven through sweetest Baba. A dynasty is being created. Sweetest Baba is making us most beloved and sweet. Whatever someone is like, he will make others the same as himself. He says: I am incorporeal. You souls are also incorporeal. A Shivalingam is worshipped in the Shiva Temple. When they create a sacrificial fire, they create saligrams and Shiva. They then worship those. Big merchants create sacrificial fires. They make a lingam of Rudra Shiva and also make saligrams. Brahmin priests carry out the worship. Now, you Brahmins were worthy of worship and then became worshippers. They make a big lingam of Shiva and small saligrams and worship those. That is called the sacrificial fire of Rudra. So, that is worshipping clay. They make idols etc. of clay as a memorial. The worshippers then sit and worship them. Bharat was worthy of worship. There was no worshipping in the golden and silver ages. For half the cycle there is knowledge and for half the cycle there is devotion. It is remembered: You are worthy of worship and you are a worshipper. Then, they say: All are God. They believe that God was worthy of worship and that God became a worshipper. That is called the Ganges flowing backwards. Everyone calls out to the Father: Oh God! Oh Purifier! Oh Merciful One! To call out means to invoke. For half the cycle on the path of devotion, devotees make invocations. In heaven, you will be the masters. The Father says: I am making you the sweetest. God, the Father, is so sweet, so lovely. Shiva is the Innocent Lord. They would not even mention the name of Shankar. Shiva is incorporeal and Shankar is subtle and so saying that both of them are one and the same is wrong. When human beings go to anyone’s temple, they only worship the incorporeal One. They have mixed everyone up. They sing praise of Rama and Narayan. There is a vast difference between Rama and Narayan. They have put all of them together. No one knows who Vyas was. In fact, you are the true Vyas, the children of Sukhdev. Baba sits here and gives you the knowledge of easy yoga and tells us that we are the true Vyas, the children of Sukhdev. We are Brahmins. He sits here and teaches us easy Raja Yoga in a practical way through which we change from human beings into deities. They go in front of the deities and sing: “We are sinners, degraded and bitter”. They are very sweet. This Lakshmi and Narayan have taken 84 births. The same applies to you. Only you receive this knowledge. Lakshmi and Narayan will not have this knowledge there. There, we don’t make anyone into deities through this knowledge. So, what will we do there? Here, you are so useful. We are now the children of sweetest Baba. We will then become Shri Lakshmi and Narayan. You know that we are becoming the sweetest through the sweetest Father. Shiv Baba is Shri Shri, the sweetest of all. We also become sweet through Him. We cannot call ourselves Shri Shri. This is something to be understood. To the extent that you become bodiless and soul conscious and remember the sweet Father, to that extent you will become sweet. Become soul conscious and remember the Father and the inheritance. Don’t forget this main thing. If you remember Me, you will become as sweet as I am. So, how much should you remember such a Father who makes you like this! It is as though Baba is a mountain of sweetness. It is said: Receive happiness by remembering Him. This is not a rosary of which you have to turn the beads. You don’t have to turn the beads of a rosary. You simply have to remember Me. No one knows in whose memory the rosary is created. They simply continue to say, “Rama, Rama!” and turn the beads of a rosary. You now understand that you are the children of Rama, Shiv Baba, and that this is why we remember Him. To turn the beads of a rosary is a sign of being a worshipper. We remember Baba a great deal. We become ever healthy and free from disease by having remembrance. Baba repeatedly tells you: Consider yourself to be bodiless and remember Me and your boat will go across. There aren’t any human beings with 10 or 20 arms or an elephant’s trunk, nor can deities be born by someone sneezing. When you hear all of those things now, you wonder what all of that is. All of that is the paraphernalia of the path of devotion. In the golden age, none of those things will exist. Devotion lasts for half the cycle. Knowledge doesn’t last for half the cycle. Only the reward of knowledge lasts for half the cycle. You receive the inheritance for 21 births through knowledge, just as you receive the inheritance of devotion. Devotion is at first satopradhan and it then goes through the stages of sato, rajo and tamo. That too is like an inheritance you receive from the Father. So, first of all, you are satopradhan, and then you go through the stages of sato, rajo and tamo. The inheritance of knowledge is also satopradhan, sato, rajo and tamo. These things have to be understood. First of all, you souls have to understand that you are children of the most beloved Father. The Father has entered this body. How could He speak the murli without a body? The incorporeal world is the silence world. Then there is the ‘movie’ (subtle region) and then this is the ‘talkie’. There are the three worlds. You listen to everything new. No one else in the world can know this. You souls know that you come from the silence world. That place is called Brahmand because we are residents of that place. Souls reside there in an egg-shaped form. However, they are not like that. If you say that He is a star, how could a star be worshipped? How could you place fruit, flowers or milk on it? The name “Shiva” is fine. It isn’t that because He is the Father, He is big and we souls are small. “Supreme” means the Soul that resides in the supreme abode and is the most beloved. You know that you now have to follow the Father’s shrimat. Baba, the sweetest of the sweet, comes and makes us most sweet. When a soul becomes sweet, he receives a sweet body. The Father says: Simply remember the Seed and the tree. The Father, the Seed, is up above. He is the Seed of the tree. This is the foundation. Other twigs and branches emerge from this. This isn’t in the intellect of anyone in the whole world. Baba says: Beloved children, the incorporeal Father is speaking through this body. You listen with those ears. It is souls that imbibe. When the Sun of Knowledge rises, the darkness of ignorance is dispelled. There is the dark night. Human beings think that it will get darker still. However, this is extreme darkness. Human beings don’t know this. You now know the Creator and the beginning, the middle and the end of creation, whereas sannyasis say that He is infinite. God, Your ways and means are unique! You understand that God Himself comes and grants liberation and salvation. You know that you will become Narayan from an ordinary man and Lakshmi from an ordinary woman by following shrimat. The intoxication is so great! There is one aim and objective. You might become a barrister, but you would become that, numberwise. This is why you have to follow the mother and father. You know that the mother and father make effort and claim number one, and so you should also make effort. You also become just as sweet. Children gain the throne of their parents. When the children have grown up and become seniors, the parents come down. That is like you gaining the throne of your parents. You children have to become very lovely and very sweet. Only jewels should always emerge from your lips. You are rup and basant. They sat and made up a story. These are jewels of knowledge. Baba knows the jewellery business very well. The jewellery business is considered to be the highest of all. These are jewels of knowledge. Each jewel is imbibed. Through these, you become multimillionaires countless times over. Your palaces will be built of golden bricks and studded with diamonds and jewels. You will remain very happy there. You will become ever healthy and ever wealthy. It is as though Baba is giving you a blessing. The sweeter you become, the happier the Father will be. In a school, teachers know the students. That One is the unlimited Father, Teacher and Satguru. You children are now sitting in front of Baba and so the murli that emerges is likewise. However, Baba doesn’t let knowledgeable souls remain here. He says: Go outside and serve to change human beings into deities. Make those who have become the most bitter and most diseased free from disease. The average lifespan now is 40 to 45 years. The lifespan of a yogi soul is very long. Krishna is called a great soul, Yogeshwar. When it was his kingdom, the average lifespan was 150 years. Now people have become diseased. There is an account, but people don’t know this. The vessel of the intellect that was golden has reached this condition because it is filled with poison. Baba is now pouring the nectar of knowledge into it and making it golden. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become the sweetest like the Father. Never let bitter words emerge from your lips. Always speak sweetly.
2. Understand the value of the invaluable jewels of knowledge that the Father gives us and imbibe them very well.
Blessing:
May you grant a vision of your blissful life with your balance and become worthy of receiving everyone’s blessings.
Balance is the greatest art. When you have a balance of remembrance and service, you will continue to receive the Father’s blessings. With a balance in every aspect, you will easily become number one. It is your balance that will grant many souls a vision of your blissful life. While keeping a balance in your awareness at all times, continue to experience all attainments and you yourself will continue to move forward and also enable all souls to move forward.
Slogan:
A mahavir is one who makes all difficulties easy and turns a mountain into a mustard seed (rai) or cotton wool (rui).
 

29-06-18 प्रात:मुरली

29-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - स्वीटेस्ट बाप आया है, स्वीट बनाने, तुम्हें देवताओं समान स्वीट बनना और बनाना है"
प्रश्नः-
सदा सुखी बनने का वरदान किन बच्चों को प्राप्त होता है?
उत्तर:-
जिन्हें ज्ञान रत्नों की वैल्यू है। एक-एक रत्न पद्मपति बनाने वाला है। तुम बच्चे इन रत्नों को धारण कर रूप बसन्त बनो। मुख से सदैव रत्न निकलते रहें तो सदा सुखी बन जायेंगे। जो बच्चे मीठा बनते हैं, उन्हें बाप भी देखकर खुश होते हैं और सदा सुखी बनने का वरदान देते हैं। तुम बच्चे इसी वरदान से एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बन जाते हो।
गीत:-
आ गये दिल में तू ...  
ओम् शान्ति।
कितना मीठा गीत है। भल बनाया फिल्म वालों ने है, परन्तु वे तो कुछ भी जानते नहीं। तुम मीठे बच्चे इस बेहद के नाटक में पार्ट बजा रहे हो। बेहद के ड्रामा में बेहद का बाप भी अब पार्ट बजा रहे हैं सम्मुख। तुम बच्चों को स्वीट बाबा ही नज़र आता है। आत्मा इन नयनों से (शरीर के आरगन्स से) एक-दो को देखती है। आत्मा भी जो सम्मुख बैठी है, वह जानती है, जिसके लिए बाबा कहते हैं स्वीट चिल्ड्रेन। बाबा कहते हैं मैं सब बच्चों को बहुत स्वीट बनाने आया हूँ। माया ने तुमको बहुत कड़ुआ बना दिया है। यह बाप ही आकर समझाते हैं, तुम कितने स्वीट थे। बरोबर तुम जब मन्दिरों में जाते हो तो देवताओं को कितना स्वीट समझते हो। देवताओं को कितनी मीठी नज़र से देखते हो। कहाँ मन्दिर खुले तो स्वीट देवताओं का दर्शन करें। बनावट तो भल पत्थर की है, परन्तु समझते हैं यह स्वीट होकर गये हैं। शिव के मन्दिर में जाते हैं, वो भी बहुत स्वीटेस्ट हैं। जरूर होकर गये हैं। स्वीटेस्ट ते स्वीटेस्ट, मीठे से मीठा बाप जरूर भारत में ही आया होगा। मन्दिरों में जो भी हैं वो सब होकर गये हैं। जरूर कुछ करके गये हैं। स्वीटेस्ट बाप को जानने वाले बच्चे ही होंगे। तो जरूर कहेंगे निराकार परमपिता परमात्मा सबसे स्वीटेस्ट है।

भारत में खास, दुनिया में आम शिवबाबा की महिमा तो बहुत है। शिव काशी विश्व नाथ गंगा - ऐसे बहुत कहते हैं। वहाँ जाकर रहते भी हैं। यह बाबा भी सब तरफ चक्र लगाकर आये हैं। मनुष्य शिव की कितनी महिमा करते हैं! बाप जानते हैं यह सब स्वीट चिल्ड्रेन हैं। घर के बच्चे हैं। सबको नम्बरवार अपना पार्ट मिलता है, परन्तु सबकी नज़र हीरो-हीरोइन पर ही जायेगी। अब इस ड्रामा में जो हीरो-हीरोइन हैं उन्हों के लिए गाते हैं तुम मात-पिता....। अभी तुम बच्चे जानते हो उस मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। दुनिया के सम्मुख तो नहीं हैं। यह है गुप्त। इनका नाम-निशान बिल्कुल ही गुम कर दिया है। सिर्फ चित्र हैं परन्तु उनसे कोई पता नहीं पड़ता। शिव के पुजारी तो बहुत होते हैं। लेकिन पूरा परिचय नहीं है। तुम जानते हो शिवबाबा है स्वीटेस्ट, उन जैसा स्वीट कोई हो नहीं सकता। वह स्वीटेस्ट बाप न आये तो यह पतित दुनिया पावन कैसे बनें। इस समय तुम बच्चों के सिवाए कोई भी स्वीट नहीं है। भल अपने को शिवोहम्, भगवान कहते रहते हैं। लेकिन भगवान तो इतना स्वीटेस्ट है, वह तो परमधाम में रहने वाला है, तुम फिर इस पतित दुनिया में कैसे कहते हो - शिवोहम्, हम भगवान हैं! भगवान तो रचयिता, पतित-पावन है। भगवान को सभी भक्त याद करते हैं। ऐसे नहीं, सब भक्त भगवान हैं। निराकार शिव को ही स्वीटेस्ट कहेंगे। स्वीटेस्ट बाबा द्वारा ही स्वीटेस्ट स्वर्ग में जायेंगे। यह डिनायस्टी रची जा रही है। स्वीटेस्ट बाबा हमको मोस्ट बिलवेड स्वीट बना रहे हैं। जो जैसा होगा ऐसा बनायेगा ना। कहते हैं मैं निराकार हूँ। तुम आत्मायें भी निराकार हो। शिव के मन्दिर में शिवलिंग की पूजा होती है ना। यज्ञ रचते तो सालिग्राम और शिव बनाते हैं। उनकी पूजा करते हैं। बहुत बड़े-बड़े सेठ लोग यज्ञ रचते हैं। रुद्र शिव का भी लिंग बनाते हैं और सालिग्राम भी बनाते हैं। ब्राह्मण लोग पूजा करते हैं। तुम ब्राह्मण ही पूज्य थे फिर पुजारी बने हो। शिव का लिंग बड़ा, सालिग्राम छोटा बनाकर पूजा करते हैं। उसका नाम ही है रुद्र यज्ञ। तो यह हो गई मिट्टी की पूजा। बुत आदि मिट्टी के बनाते हैं यादगार के लिए। फिर पुजारी बैठ पूजा करते हैं। भारत पूज्य था। सतयुग-त्रेता में पुजारीपन नहीं था। आधा कल्प है ज्ञान, आधा कल्प है भक्ति। गाया भी जाता है आप-ही पूज्य और आप-ही पुजारी। फिर कहते हैं सब भगवान हैं। समझते हैं भगवान ही पूज्य था, भगवान ही पुजारी बनता है, इसको उल्टी गंगा कहा जाता है। बाप को तो सब बुलाते हैं - हे भगवान, हे पतित-पावन, हे रहमदिल, पुकारना माना आह्वान करना। भक्ति मार्ग में आधा कल्प भक्त लोग आह्वान करते हैं। स्वर्ग में तो तुम मालिक होंगे। बाप कहते हैं तुमको बहुत स्वीटेस्ट बना रहा हूँ। गॉड फादर कितना मीठा, कितना प्यारा शिव भोला भगवान है। शंकर का तो नाम ही नहीं डालेंगे। शिव निराकार, शंकर आकारी - दोनों को मिलाना तो ग़लत है ना। मनुष्य कोई के भी मन्दिर में जायेंगे तो पूजा एक ही निराकार की करेंगे। सबको मिला देते हैं। अचतम् केशवम्, श्री राम नारायणम्.... अब राम कहाँ, नारायण कहाँ। सबको इकट्ठा कर दिया है।

व्यास कौन था - यह कोई भी नहीं जानते। वास्तव में सच्चे व्यास सुखदेव के तुम बच्चे हो। बाबा बैठ सहज योग की नॉलेज सुनाते हैं और उस सुखदेव के हम बच्चे हैं सच्चे-सच्चे व्यास। हम ब्राह्मण हैं। हमको प्रैक्टिकल में बैठ सहज राजयोग सिखलाते हैं, जिससे हम मनुष्य से देवता बनते हैं। देवताओं के आगे जाकर गाते हैं हम पापी, नीच, कड़ुवे हैं। वह तो बहुत मीठे हैं ना। इन लक्ष्मी-नारायण ने ही 84 जन्म लिए हैं। ततत्वम्। यह नॉलेज तुमको ही मिलती है। लक्ष्मी-नारायण में वहाँ यह नॉलेज नहीं होगी। हम वहाँ यह नॉलेज देकर किसी को देवता नहीं बनाते हैं। तो बाकी क्या काम करें? यहाँ तो कितने काम हैं। अभी हम स्वीटेस्ट बाबा के बच्चे हैं, फिर श्री लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। तुम जानते हो हम स्वीटेस्ट फादर से स्वीटेस्ट बनते हैं। शिवबाबा है श्री श्री मीठे ते मीठा। उनसे हम भी मीठे बनते हैं। हम अपने को श्री श्री नहीं कह सकते। यह समझने की बातें हैं। तुम जितना अशरीरी, देही-अभिमानी बनेंगे और मीठे बाप को याद करेंगे उतना मीठा बनेंगे। देही-अभिमानी बन बाप और वर्से को याद करना है। यह एक मुख्य बात न भूलो। मुझे याद करेंगे तो मेरे जैसा मीठा बन जायेंगे। तो ऐसा बनाने वाले बाप को कितना याद करना चाहिए। बाबा मिठास का तो जैसे एक पहाड़ है। कहते हैं ना - सिमर-सिमर सुख पाओ। कोई सिमरणी नहीं सिमरनी है। माला नहीं फेरनी है। सिर्फ याद करना है। कोई को भी यह पता नहीं है कि यह माला किसकी याद में बनी हुई है। सिर्फ राम-राम करते रहते, माला फेरते रहते हैं। अभी तुम समझते हो राम शिव बाबा के हम बच्चे हैं इसलिए सिमरण करते हो। माला फेरना तो पुजारीपन का चिन्ह है। हम बाबा को बहुत याद करते हैं। याद से ही हम एवरहेल्दी, निरोगी बन जाते हैं। बाबा बार-बार कहते हैं अपने को अशरीरी समझ मुझे याद करो तो बेड़ा पार है। बाकी कोई 10-20 भुजा या सूंढ़ वाला मनुष्य नहीं होता। न कोई छींकने से देवता निकल आयेंगे। यह बातें अब सुनते हैं तो समझते हैं यह सब क्या है! यह सब है भक्तिमार्ग की सामग्री। सतयुग में यह कुछ भी होगी नहीं। भक्ति आधा कल्प चलती है। ज्ञान कोई आधा कल्प नहीं चलता है। ज्ञान की प्रालब्ध आधा कल्प चलती है। ज्ञान से 21 जन्म का वर्सा मिलता है। तो जैसे वह भक्ति का वर्सा मिलता है। भक्ति पहले सतोप्रधान थी। फिर सतो, रजो, तमो हो जाती है। जैसे यह भी बाप से वर्सा मिलता है। तो फिर पहले सतोप्रधान, फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। ज्ञान का वर्सा भी सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो होता है। यह समझने की बातें हैं। पहले तो समझना है - हम आत्मा मोस्ट बिलवेड बाप के बच्चे हैं। बाप इस जिस्म में आये हैं। जिस्म बिगर मुरली कैसे सुना सकेंगे। निराकारी दुनिया तो है साइलेन्स वर्ल्ड फिर है मूवी, यह टाकी। तीन लोक हैं ना। एक-एक बात तुम नई सुनते हो। दुनिया में और कोई जान न सके। तुम जानते हो हम आत्मायें साइलेन्स वर्ल्ड से आती हैं। वहाँ की रहवासी हैं, इसलिए उनका नाम ब्रह्माण्ड रखा हुआ है। अण्डे मिसल आत्मायें रहती हैं। परन्तु ऐसे है थोड़ेही। अगर स्टार कहें तो स्टार की पूजा कैसे हो! फल, फूल, दूध आदि उन पर कैसे ठहर सके। नाम तो शिव ठीक है। ऐसे नहीं कि वह बाप बड़ा, हम आत्मायें छोटी हैं। परम माना परमधाम की रहने वाली आत्मा जो मोस्ट बिलवेड है।

तुम जानते हो अब हमको बाबा की श्रीमत पर चलना है। बहुत मीठे ते मीठा बाबा आकर हमको मोस्ट स्वीट बनाते हैं। आत्मा स्वीट बनेंगी तो शरीर भी स्वीट मिलेगा। बाप कहते हैं सिर्फ बीज और झाड़ को याद करो। बीज बाप ऊपर में है। वह है वृक्षपति। यह है फाउण्डेशन। फिर इनसे और टाल टालियाँ निकलती हैं। दुनिया में कोई की बुद्धि में यह नहीं है। बाबा कहते हैं - लाडले बच्चे, निराकार बाप इस शरीर द्वारा बोलते हैं। तुम इन कानों से सुनते हो। आत्मा ही धारण करती है। ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश। अंधियारी रात होती है ना। मनुष्य समझते हैं इससे भी अजुन अंधियारा होगा। यह है ही घोर अंधियारा। मनुष्य यह नहीं जानते। अभी तुम रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को जान गये हो। जिसके लिए सन्यासी कहते हैं बेअन्त है। ईश्वर तुम्हारी गत मत न्यारी है। तुम तो समझते हो ईश्वर ही आकर गति सद्गति करते हैं। तुम जानते हो श्रीमत से हम सो नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। कितना भारी नशा है! एम ऑब्जेक्ट तो एक होती है ना। बैरिस्टर बनेंगे, परन्तु नम्बरवार तो बनेंगे ना इसलिए फालो फादर मदर। जानते हो मदर फादर पुरुषार्थ कर नम्बरवन में जाते हैं तो हम भी पुरुषार्थ करें। हम भी इतना स्वीटेस्ट बनें। बच्चे माँ-बाप के तख्त पर जीत पाते हैं ना। वह बड़े हो जायेंगे तो मात-पिता नीचे उतरेंगे। तो जैसे तुम मात-पिता के तख्त पर जीत पाते हो।

तुम बच्चों को बहुत प्यारा, बहुत मीठा बनना है। तुम्हारे मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। रूप बसन्त तुम हो। उन्होंने तो एक कहानी बैठ बनाई है। यह है ज्ञान रत्न। जवाहरात को तो बाबा अच्छी रीति जानते हैं। सबसे ऊंच जवाहरात का धन्धा गिना जाता है। यह भी ज्ञान रत्न हैं। एक-एक रत्न की धारणा होती है। इससे तुम अनगिनत पदमपति बनते हो। तुम्हारे महलों में कैसे सोने की ईटें, हीरे जवाहरात लगते हैं! बड़े सुखी रहेंगे। एवर हेल्दी, एवर वेल्दी बनेंगे। यह जैसे बाबा वरदान देते हैं। जितना मीठा बनेंगे, उतना बाप खुश होगा। स्कूल में टीचर स्टूडेण्ट को जानते हैं ना। यह तो बेहद का बाप-टीचर-सतगुरू है। अभी तुम बच्चे सामने बैठे हो तो मुरली भी ऐसी निकलती है। परन्तु फिर ज्ञानी तू आत्मा को बाबा यहाँ रहने नहीं देते। कहते हैं - जाओ, जाकर मनुष्य से देवता बनाने की सेवा करो। जो कड़ुवे ते कड़ुवे, प्लेगी बहुत रोगी हो गये हैं, उनको निरोगी बनाओ। अभी तो एवरेज आयु 40-45 वर्ष होगी। योगी की आयु बहुत बड़ी होती है। कृष्ण को महात्मा, योगेश्वर कहते हैं। उनका जब राज्य था तब एव-रेज आयु 150 वर्ष थी। अब रोगी बन गये हैं। हिसाब तो है ना। परन्तु मनुष्य जानते नहीं। बुद्धि रूपी बर्तन जो सोने का था, उसमें विष (जहर) भरने से यह हाल हो गया है। अब बाबा ज्ञान अमृत डाल सोने का बनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान स्वीटेस्ट बनना है। मुख से कभी कड़ुवे वचन नहीं निकालने हैं, सदैव मीठा बोलना है।
2) बाप हमको जो अमूल्य ज्ञान रत्न दे रहे हैं, उनकी वैल्यू को समझ अच्छी रीति धारण करना है।
वरदान:-
बैलेन्स द्वारा ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार कराने वाले सर्व की ब्लैसिंग के पात्र भव
बैलेन्स सबसे बड़ी कला है। याद और सेवा का बैलेन्स हो तो बाप की ब्लैसिंग मिलती रहेगी। हर बात के बैलेन्स से सहज ही नम्बरवन बन जायेंगे। बैलेन्स ही अनेक आत्माओं के आगे ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार करायेगा। बैलेन्स को सदा स्मृति में रखते हुए सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते रहो तो स्वयं भी आगे बढ़ते रहेंगे और अन्य आत्माओं को भी आगे बढ़ायेंगे।
स्लोगन:-
महावीर वह है जो हर मुश्किल को सहज कर, पहाड़ को राई व रुई बना दे।
 

Thursday, June 28, 2018

28-06-18 Murli

28-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - जैसे बाप को सभी पर तरस आता, ऩफरत नहीं आती, ऐसे तुम बच्चे भी किसी से नफरत मत करो, रहमदिल बनो।"
प्रश्नः-
रहमदिल बाप का सारे विश्व के प्रति एक ही प्लैन है, वह कौन सा?
उत्तर:-
सभी मनुष्य आत्माओं को तत्वों सहित पतित से पावन बनाना, मुक्ति और जीवन्मुक्ति का वर्सा देना। यह एक ही प्लैन बाप का है। तुम बच्चे बाप के मददगार हो। तुम्हें पहले अपने पर रहम करना है। श्रीमत पर चल अपने को पावन बनाना है। फिर सभी को विकारों रूपी गन्दगी से निकालने की सेवा करनी है।
गीत:-
कौन आया मेरे मन के द्वारे...  
ओम् शान्ति।
कौन आया? बाप आया। किसके पास? बच्चों के पास। बच्चे किसके पास आये हैं? बाप कहते हैं मेरे पास। अब तुम सम्मुख बैठे हो। जानते हो बाप बहुत रहमदिल है। बाप जानते हैं कि इन हमारे बच्चों को माया ने बहुत दु:खी पतित किया है। यह बच्चे नहीं जानते। बाप जानते हैं तो बाप को तरस पड़ता है ना। ऩफरत नहीं आयेगी। बाप कहते हैं मैंने तुमको सुख के सम्बन्ध में भेजा था। पांच हजार वर्ष की बात है। फिर ड्रामा अनुसार माया ने तुमको दु:खी किया। पहले तुम सतोप्रधान थे, फिर रजो, तमो में आये हो। यह मैं जानता हूँ। तुम मेरे बच्चे हो। मुझे ही आना होता है तुम बच्चों को पावन बनाने, राज्य-भाग्य देने। बच्चे भी समझते हैं बरोबर बाप आया है। प्रेम का सागर, शान्ति का सागर है। हमको सुख-शान्ति की दुनिया में ले जाते हैं। बाप जानते हैं यह माया ही सबका बड़े ते बड़ा दुश्मन है इसलिए मैं आया हूँ। परन्तु हूँ मैं विचित्र इसलिए मुझे पहचानते नहीं। आगे समझते थे कि कृष्ण ने आकर राजयोग सिखाया, स्वर्ग का मालिक बनाया था। परन्तु कब और कैसे बनाया - यह नहीं जानते। अभी बाप को बहुत रहम आता है क्योंकि जानते हैं बच्चे माया अर्थात् 5 भूतों के वश हो पड़े हैं। परवश हैं, उनको अब लिबरेट करता हूँ। बाप कहते हैं बच्चे अब मेरे कारण वा इस भारत अथवा सारे युनिवर्स के कारण तुम मेरी मत पर चलो। मुझे याद करो और रहम दिल भी बनो। सबको बाप का परिचय दो। जज लोग भी गॉड का कसम उठवाते हैं। परन्तु क्यों? यह कोई नहीं जानते। गॉड है कौन? सिर्फ गॉड कह देते हैं। फादर शब्द भी है। जब कसम उठवाते हैं तो उनको समझ में ही नहीं आता है। कह देते हैं गॉड फादर का कसम उठाओ। परन्तु फादर को तो जानते ही नहीं। अब तुम बच्चे जानते हो वह गॉड फादर है। कसम उठाते हैं क्योंकि समझते हैं अगर हम कुछ उल्टा कर्म करेंगे तो बाप सज़ा देंगे। जैसे घर में बच्चे उल्टा काम करते हैं तो उनको डर रहता है बाप थप्पड़ न मारे। वह कसम गॉड का उठाते हैं। परन्तु जानते नहीं कि गॉड कौन है? कैसे सज़ा देंगे? क्रिश्चियन लोग बाइबिल उठायेंगे। कोई गीता उठायेंगे। समझते हैं गीता का भगवान कृष्ण था। तो कृष्ण को सामने रख क्षमा मांगते हैं। समझते हैं अगर हम झूठ बोलेंगे तो वह दण्ड देंगे। अब ट्रूथ तो बाप को कहेंगे। क्राइस्ट को सारी दुनिया ट्रूथ नहीं कहती। सदा ट्रूथ तो है गॉड फादर परन्तु उसको जानते नहीं। जब बाप आये बच्चों को जन्म दे, तब बच्चे बाप को जानें। अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा ने अपना बनाया है। इस माता द्वारा रचा है। उनको आदि देव भी कहा जाता है। वास्तव में आदि देवी भी है। अगर मम्मा को आदि देवी कहें तो उनसे बड़ी आदि देवी यह हो जाती है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। जो विशालबुद्धि हैं वही इन बातों को समझ सकते हैं। कहते भी हैं बाप पतित को पावन बनाने वाला है। अच्छा, पावन दुनिया कौन सी है? क्या मुक्ति को पावन दुनिया कहें वा जीवन्मुक्ति को पावन दुनिया कहें? यह कोई जानते नहीं हैं। गाते तो बहुत हैं। उन्हों की बुद्धि में सिर्फ यह है कि परमात्मा आता है। परन्तु उनका रूप आदि नहीं जानते। फिर कहते हैं सर्वव्यापी है।

बाप बहुत रहमदिल है, प्यार का सागर है। तो बच्चों को भी रहम करना चाहिए। प्यार करना चाहिए। बाप बहुत रहम करते हैं, उनको कहा जाता है मर्सीफुल। बाप कहते हैं तत्वों सहित सारी सृष्टि पर मैं मर्सीफुल हूँ। नॉलेजफुल हूँ। प्यार में भी फुल हूँ। बहुत प्यारा बनाता हूँ। जैसे श्रीकृष्ण कितना प्यारा है! उनके घराने में सब प्यारे हैं। वास्तव में डिनायस्टी हमेशा राजा की कही जाती है। किंग एडवर्ड की राजाई कहेंगे। प्रिन्स आफ वेल्स की नहीं कहेंगे। प्रिन्स फिर किंग हो जाता है। तो यह भी ऐसे है। क्रिश्चियन का कनेक्शन कृष्ण की राजधानी से बहुत है। वह क्रिश्चियन लोग कृष्ण की राजधानी से बहुत कमाते हैं। पहले कृष्ण की राजधानी को अपने हाथ में ले लेते हैं। फिर देते हैं। कृष्ण की कहें अथवा लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी ना। अब वे क्रिश्चियन कृष्ण को विश्व की राजधानी दे देंगे। कितना वण्डरफुल राज़ है! अब वो ही कृष्ण की राजधानी को मदद भी दे रहे हैं। आखरीन सारी राजधानी कृष्ण को देकर जाते हैं इसलिए कृष्ण के मुख में मक्खन दिया है। ऐसे नहीं, मक्खन का कोई गोला है। दो बन्दर आपस में लड़ते हैं तो माखन कृष्ण को मिल जाता है। भाई नहीं लड़ते हैं, बन्दर लड़ते हैं। पांच विकार भी बन्दर में मशहूर हैं। अभी तुम कृष्ण की डिनायस्टी बना रहे हो। विश्व के मालिकपने का माखन तुमको मिलना है। लेन-देन का अथवा कर्मों का हिसाब-किताब कैसा है! क्रिश्चियन के भी कर्म देखो, राजधानी लेकर फिर वापस देना है। आपस में कितना लड़ते हैं! राजाई का मक्खन फिर भी तुमको मिलना है। तुम प्रिन्स-प्रिन्सेज बन जाते हो। तुम बच्चों को भी बड़ा रहमदिल प्यार का सागर बनना है। ऩफरत नहीं लानी है। दुनिया में तो एक दो के लिए ऩफरत रखते हैं। यथा राजा-रानी तथा प्रजा नम्बरवार ऩफरत रखते हैं। आपस में लड़ेंगे-मरेंगे।

बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं, इसमें घृणा की कोई बात नहीं। यह तो ड्रामा बना हुआ है। हर एक मनुष्य अपने को नीच पापी कहते हैं। मन्दिरों में जाकर अपने ऊपर ऩफरत करते हैं। महात्मा को पवित्र समझ उनके चरणों में गिरते हैं। आप पावन हो हम पतित हैं। इन सब बातों को तो बाप ही जानते हैं।

मनुष्य गॉड फादर के नाम पर कसम उठवाते हैं लेकिन वह भी झूठा कसम हो जाता क्योंकि गॉड फादर को जानते नहीं। अगर गॉड फादर कह कसम उठायें तो बुद्धि में आये कि उनसे तो हमको वर्सा मिलना चाहिए। स्वर्ग क्या होता है, यह किसी को पता नहीं है। अरे तुम तो कहते हो फलाना मरा, स्वर्गवासी हुआ। तो कहाँ गया। कुछ भी समझते नहीं। बाप को कोई के लिए भी ऩफरत नहीं है। सबके लिए प्यार है।

अभी तुम बच्चे सम्मुख हो। बच्चों को ख़ास, बाकी जनरल समझाते हैं। तुम बच्चों को पढ़ाकर जीवन्मुक्ति देता हूँ और सबको मुक्तिधाम में ले जाते हैं। मेरा सब पर प्यार है। उस गवर्मेन्ट के तो अनेक प्लैन्स बनते रहते हैं। बाबा कहते हैं मेरा एक ही प्लैन है। पतित मनुष्य को पावन देवी-देवता बनाना। मनुष्य कहते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर उनको न जानने के कारण कह देते हम ही पतित-पावन हैं। तो बाप समझाते हैं पहले तो बड़े ते बड़े चीफ जस्टिस की सर्विस करो। उन्हें समझाना चाहिए आत्मा का बाप तो एक है, उनका कसम तुम क्यों उठवाते हो? क्या कसम उठाने समय कृष्ण याद आता है? क्रिश्चियन से पूछो कि क्राइस्ट याद आता है या गॉड फादर? जानते हो कि पाप करेंगे तो दण्ड भोगना पड़ेगा। परन्तु बाप दण्ड कभी नहीं देता। वह करनकरावनहार है। धर्मराज द्वारा सजा दिलाते हैं। गॉड तो मोस्ट बिलवेड बाप है। वह झूठे कलंक लगाते हैं कि बाप ही सुख-दु:ख देते हैं। तो क्या बेरहम हैं? गाते भी हैं मर्सीफुल। बाप कहते हैं मैं कैसे बेरहमी करुँगा। माया ने तुम्हारे पर बेरहमी की है। मैं तो उनसे छुड़ाता हूँ। माया ने तुमको श्रापित किया है। यह भी खेल है। सुखधाम को दु:खधाम होना ही है। भारत ही सुख-धाम था, अब दु:खधाम है। बाबा फिर सुखधाम का मालिक बनाते हैं। परन्तु ऐसे थोड़ेही दु:खधाम का मालिक खुद ही बनायेंगे। बच्चे कहते हैं बाबा प्यार का सागर है। बाबा आपकी श्रीमत पर चल हम अपने को पावन बनायेंगे। अपने पर रहम करेंगे। जितना टीचर से पढ़ेंगे उतना अपने ऊपर रहम करेंगे। नहीं तो नापास हो पड़ेंगे। अब तुम्हारी बुद्धि में अच्छी रीति नॉलेज है। तुम जानते हो नॉलेजफुल, मर्सीफुल, पतित से पावन बनाने वाला एक ही बाप है। तो उनकी मत पर चलना पड़े। अपनी मत माना रावण की मत। श्रीमत पर न चल अपनी मत पर वा किसी मनुष्य की मत पर चलते हैं तो धोखा खा लेते हैं। श्रीमत पर कदम-कदम चलें तो बेड़ा पार है। चढ़ाई बहुत ऊंची है। माया के तूफान किस्म-किस्म से आते हैं। परन्तु बाप को कोई पर ऩफरत नहीं है। बच्चों को भी ऐसा बनना चाहिए। अजामिल जैसे पापी तो सभी हैं। एक गीत में भी है ना कि मैं एक छोटा सा बच्चा हूँ। जैसे कहते हैं ना कि मैं एक मास का बच्चा हूँ। पुराने बच्चे तो आपके बहुत हैं जिनको आप पावन बना रहे हो। तो मुझ छोटे बच्चे को भी पावन बनाओ। तो कहते हैं कि श्रीमत पर चलो तो पुराने से भी अच्छी रीति आगे जा सकते हो। लिफ्ट भी तो मिलती है। देरी से आने से तुमको शक्तियों से योगदान मिलता है। शक्तियाँ भी नम्बरवार हैं। ऐसे नहीं कहा जाता है कि तुम शक्तियों से बुद्धियोग लगाओ। नहीं, शक्तियों से तुम शंखध्वनि सुनो। बुद्धियोग बाबा से लगाना है। बाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। ढिंढोरा पिटवाना है। यहाँ कोई अन्धश्रद्धा की बात नहीं। कॉलेज में कोई अन्धश्रद्धा नहीं हो सकती। यह है गॉड फादरली युनिवर्सिटी। नॉलेजफुल गॉड फादर बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है कि हम मनुष्य से देवता बनेंगे। वह मनुष्य से बैरिस्टर बनते हैं तो बुद्धियोग बैरिस्टर के साथ रहता है। डॉक्टर के साथ नहीं रहता। यह भी कॉलेज है, न कि अन्धश्रद्धा। एम ऑब्जेक्ट है। गॉड फादर हमको पढ़ाते रहते हैं। गीता में भी भगवानुवाच है परन्तु भगवान कौन है? - यह गीता वाले भी नहीं जानते। यह ब्रह्मा भी कहते हैं - हम भी गीता पढ़ते थे। अभी के मनुष्य शास्त्रों को मानते नहीं। गीता को उठाने से उनकी बुद्धि चली जाती है कृष्ण की तरफ। उनको सब धर्म वाले नहीं मानेंगे। गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी शिवबाबा की गाई हुई। गॉड फादर कहते हैं वह है स्वर्ग का रचयिता। तो बाप से तुमको स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए या फादर के घर जाना है! भगवान पास जाना चाहते हैं। सब मुक्ति ही चाहते हैं। वह लोग जीवन्मुक्ति से क्या जानें। बाप कहते हैं मैं तो पढ़ाता हूँ। मैं फिर सर्वव्यापी कैसे होऊंगा। सर्वव्यापी कहने से मुख ही मीठा नहीं होता। तो बच्चे, यह बातें अच्छी रीति धारण करो और बहुत मीठे बनो। कोई से ऩफरत नहीं करनी चाहिए। सर्जन लोग होते हैं, किसको कैसी भी गन्दी बीमारी होती है तो भी उनको तरस पड़ता है और शफा देते हैं। समझते भी हैं कुछ खराब काम किया है, उसका यह कर्मभोग है। बाप कहते हैं माया की प्रवेशता होने से मनुष्यों से विकर्म ही होते हैं और पतित बन जाते हैं। पांच विकारों को खराब समझते हैं तब तो सन्यासी भी भागते हैं। पवित्रता का मान बहुत है। यह तो समझते हो हम पहले देवताओं को नमन करते हैं, पीछे सन्यासियों को किया है क्योंकि वे भी पावन बनते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अच्छी रीति पढ़कर, श्रीमत पर चल पावन बन अपने आप पर रहम करना है। कभी भी बेरहमी नहीं बनना है।
2) किसी से भी ऩफरत या घृणा नहीं करनी है। बाप समान प्यार का सागर बनना है।
वरदान:-
प्रवृत्ति में रहते भी समर्पित हो सेवा की धुन में रहने वाले बापदादा के दिलतख्तनशीन भव
जो बच्चे प्रवृत्ति में रहते भी समर्पित हैं उनके सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। उनका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिलने से अच्छा फल निकलता है ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत होता है। ऐसे सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में रहते समर्पित हो चलने वाले बच्चे बापदादा के दिलतख्त नशीन बनते हैं।
स्लोगन:-
कम से कम समय में संकल्पों को मोड़ने और ब्रेक लगाने की युक्ति सीख लो तो बुद्धि की शक्ति व्यर्थ नहीं जा सकती।
 

28-06-18 प्रात:मुरली

28-06-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - जैसे बाप को सभी पर तरस आता, ऩफरत नहीं आती, ऐसे तुम बच्चे भी किसी से नफरत मत करो, रहमदिल बनो।"
प्रश्नः-
रहमदिल बाप का सारे विश्व के प्रति एक ही प्लैन है, वह कौन सा?
उत्तर:-
सभी मनुष्य आत्माओं को तत्वों सहित पतित से पावन बनाना, मुक्ति और जीवन्मुक्ति का वर्सा देना। यह एक ही प्लैन बाप का है। तुम बच्चे बाप के मददगार हो। तुम्हें पहले अपने पर रहम करना है। श्रीमत पर चल अपने को पावन बनाना है। फिर सभी को विकारों रूपी गन्दगी से निकालने की सेवा करनी है।
गीत:-
कौन आया मेरे मन के द्वारे...  
ओम् शान्ति।
कौन आया? बाप आया। किसके पास? बच्चों के पास। बच्चे किसके पास आये हैं? बाप कहते हैं मेरे पास। अब तुम सम्मुख बैठे हो। जानते हो बाप बहुत रहमदिल है। बाप जानते हैं कि इन हमारे बच्चों को माया ने बहुत दु:खी पतित किया है। यह बच्चे नहीं जानते। बाप जानते हैं तो बाप को तरस पड़ता है ना। ऩफरत नहीं आयेगी। बाप कहते हैं मैंने तुमको सुख के सम्बन्ध में भेजा था। पांच हजार वर्ष की बात है। फिर ड्रामा अनुसार माया ने तुमको दु:खी किया। पहले तुम सतोप्रधान थे, फिर रजो, तमो में आये हो। यह मैं जानता हूँ। तुम मेरे बच्चे हो। मुझे ही आना होता है तुम बच्चों को पावन बनाने, राज्य-भाग्य देने। बच्चे भी समझते हैं बरोबर बाप आया है। प्रेम का सागर, शान्ति का सागर है। हमको सुख-शान्ति की दुनिया में ले जाते हैं। बाप जानते हैं यह माया ही सबका बड़े ते बड़ा दुश्मन है इसलिए मैं आया हूँ। परन्तु हूँ मैं विचित्र इसलिए मुझे पहचानते नहीं। आगे समझते थे कि कृष्ण ने आकर राजयोग सिखाया, स्वर्ग का मालिक बनाया था। परन्तु कब और कैसे बनाया - यह नहीं जानते। अभी बाप को बहुत रहम आता है क्योंकि जानते हैं बच्चे माया अर्थात् 5 भूतों के वश हो पड़े हैं। परवश हैं, उनको अब लिबरेट करता हूँ। बाप कहते हैं बच्चे अब मेरे कारण वा इस भारत अथवा सारे युनिवर्स के कारण तुम मेरी मत पर चलो। मुझे याद करो और रहम दिल भी बनो। सबको बाप का परिचय दो। जज लोग भी गॉड का कसम उठवाते हैं। परन्तु क्यों? यह कोई नहीं जानते। गॉड है कौन? सिर्फ गॉड कह देते हैं। फादर शब्द भी है। जब कसम उठवाते हैं तो उनको समझ में ही नहीं आता है। कह देते हैं गॉड फादर का कसम उठाओ। परन्तु फादर को तो जानते ही नहीं। अब तुम बच्चे जानते हो वह गॉड फादर है। कसम उठाते हैं क्योंकि समझते हैं अगर हम कुछ उल्टा कर्म करेंगे तो बाप सज़ा देंगे। जैसे घर में बच्चे उल्टा काम करते हैं तो उनको डर रहता है बाप थप्पड़ न मारे। वह कसम गॉड का उठाते हैं। परन्तु जानते नहीं कि गॉड कौन है? कैसे सज़ा देंगे? क्रिश्चियन लोग बाइबिल उठायेंगे। कोई गीता उठायेंगे। समझते हैं गीता का भगवान कृष्ण था। तो कृष्ण को सामने रख क्षमा मांगते हैं। समझते हैं अगर हम झूठ बोलेंगे तो वह दण्ड देंगे। अब ट्रूथ तो बाप को कहेंगे। क्राइस्ट को सारी दुनिया ट्रूथ नहीं कहती। सदा ट्रूथ तो है गॉड फादर परन्तु उसको जानते नहीं। जब बाप आये बच्चों को जन्म दे, तब बच्चे बाप को जानें। अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा ने अपना बनाया है। इस माता द्वारा रचा है। उनको आदि देव भी कहा जाता है। वास्तव में आदि देवी भी है। अगर मम्मा को आदि देवी कहें तो उनसे बड़ी आदि देवी यह हो जाती है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। जो विशालबुद्धि हैं वही इन बातों को समझ सकते हैं। कहते भी हैं बाप पतित को पावन बनाने वाला है। अच्छा, पावन दुनिया कौन सी है? क्या मुक्ति को पावन दुनिया कहें वा जीवन्मुक्ति को पावन दुनिया कहें? यह कोई जानते नहीं हैं। गाते तो बहुत हैं। उन्हों की बुद्धि में सिर्फ यह है कि परमात्मा आता है। परन्तु उनका रूप आदि नहीं जानते। फिर कहते हैं सर्वव्यापी है।

बाप बहुत रहमदिल है, प्यार का सागर है। तो बच्चों को भी रहम करना चाहिए। प्यार करना चाहिए। बाप बहुत रहम करते हैं, उनको कहा जाता है मर्सीफुल। बाप कहते हैं तत्वों सहित सारी सृष्टि पर मैं मर्सीफुल हूँ। नॉलेजफुल हूँ। प्यार में भी फुल हूँ। बहुत प्यारा बनाता हूँ। जैसे श्रीकृष्ण कितना प्यारा है! उनके घराने में सब प्यारे हैं। वास्तव में डिनायस्टी हमेशा राजा की कही जाती है। किंग एडवर्ड की राजाई कहेंगे। प्रिन्स आफ वेल्स की नहीं कहेंगे। प्रिन्स फिर किंग हो जाता है। तो यह भी ऐसे है। क्रिश्चियन का कनेक्शन कृष्ण की राजधानी से बहुत है। वह क्रिश्चियन लोग कृष्ण की राजधानी से बहुत कमाते हैं। पहले कृष्ण की राजधानी को अपने हाथ में ले लेते हैं। फिर देते हैं। कृष्ण की कहें अथवा लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी ना। अब वे क्रिश्चियन कृष्ण को विश्व की राजधानी दे देंगे। कितना वण्डरफुल राज़ है! अब वो ही कृष्ण की राजधानी को मदद भी दे रहे हैं। आखरीन सारी राजधानी कृष्ण को देकर जाते हैं इसलिए कृष्ण के मुख में मक्खन दिया है। ऐसे नहीं, मक्खन का कोई गोला है। दो बन्दर आपस में लड़ते हैं तो माखन कृष्ण को मिल जाता है। भाई नहीं लड़ते हैं, बन्दर लड़ते हैं। पांच विकार भी बन्दर में मशहूर हैं। अभी तुम कृष्ण की डिनायस्टी बना रहे हो। विश्व के मालिकपने का माखन तुमको मिलना है। लेन-देन का अथवा कर्मों का हिसाब-किताब कैसा है! क्रिश्चियन के भी कर्म देखो, राजधानी लेकर फिर वापस देना है। आपस में कितना लड़ते हैं! राजाई का मक्खन फिर भी तुमको मिलना है। तुम प्रिन्स-प्रिन्सेज बन जाते हो। तुम बच्चों को भी बड़ा रहमदिल प्यार का सागर बनना है। ऩफरत नहीं लानी है। दुनिया में तो एक दो के लिए ऩफरत रखते हैं। यथा राजा-रानी तथा प्रजा नम्बरवार ऩफरत रखते हैं। आपस में लड़ेंगे-मरेंगे।

बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं, इसमें घृणा की कोई बात नहीं। यह तो ड्रामा बना हुआ है। हर एक मनुष्य अपने को नीच पापी कहते हैं। मन्दिरों में जाकर अपने ऊपर ऩफरत करते हैं। महात्मा को पवित्र समझ उनके चरणों में गिरते हैं। आप पावन हो हम पतित हैं। इन सब बातों को तो बाप ही जानते हैं।

मनुष्य गॉड फादर के नाम पर कसम उठवाते हैं लेकिन वह भी झूठा कसम हो जाता क्योंकि गॉड फादर को जानते नहीं। अगर गॉड फादर कह कसम उठायें तो बुद्धि में आये कि उनसे तो हमको वर्सा मिलना चाहिए। स्वर्ग क्या होता है, यह किसी को पता नहीं है। अरे तुम तो कहते हो फलाना मरा, स्वर्गवासी हुआ। तो कहाँ गया। कुछ भी समझते नहीं। बाप को कोई के लिए भी ऩफरत नहीं है। सबके लिए प्यार है।

अभी तुम बच्चे सम्मुख हो। बच्चों को ख़ास, बाकी जनरल समझाते हैं। तुम बच्चों को पढ़ाकर जीवन्मुक्ति देता हूँ और सबको मुक्तिधाम में ले जाते हैं। मेरा सब पर प्यार है। उस गवर्मेन्ट के तो अनेक प्लैन्स बनते रहते हैं। बाबा कहते हैं मेरा एक ही प्लैन है। पतित मनुष्य को पावन देवी-देवता बनाना। मनुष्य कहते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर उनको न जानने के कारण कह देते हम ही पतित-पावन हैं। तो बाप समझाते हैं पहले तो बड़े ते बड़े चीफ जस्टिस की सर्विस करो। उन्हें समझाना चाहिए आत्मा का बाप तो एक है, उनका कसम तुम क्यों उठवाते हो? क्या कसम उठाने समय कृष्ण याद आता है? क्रिश्चियन से पूछो कि क्राइस्ट याद आता है या गॉड फादर? जानते हो कि पाप करेंगे तो दण्ड भोगना पड़ेगा। परन्तु बाप दण्ड कभी नहीं देता। वह करनकरावनहार है। धर्मराज द्वारा सजा दिलाते हैं। गॉड तो मोस्ट बिलवेड बाप है। वह झूठे कलंक लगाते हैं कि बाप ही सुख-दु:ख देते हैं। तो क्या बेरहम हैं? गाते भी हैं मर्सीफुल। बाप कहते हैं मैं कैसे बेरहमी करुँगा। माया ने तुम्हारे पर बेरहमी की है। मैं तो उनसे छुड़ाता हूँ। माया ने तुमको श्रापित किया है। यह भी खेल है। सुखधाम को दु:खधाम होना ही है। भारत ही सुख-धाम था, अब दु:खधाम है। बाबा फिर सुखधाम का मालिक बनाते हैं। परन्तु ऐसे थोड़ेही दु:खधाम का मालिक खुद ही बनायेंगे। बच्चे कहते हैं बाबा प्यार का सागर है। बाबा आपकी श्रीमत पर चल हम अपने को पावन बनायेंगे। अपने पर रहम करेंगे। जितना टीचर से पढ़ेंगे उतना अपने ऊपर रहम करेंगे। नहीं तो नापास हो पड़ेंगे। अब तुम्हारी बुद्धि में अच्छी रीति नॉलेज है। तुम जानते हो नॉलेजफुल, मर्सीफुल, पतित से पावन बनाने वाला एक ही बाप है। तो उनकी मत पर चलना पड़े। अपनी मत माना रावण की मत। श्रीमत पर न चल अपनी मत पर वा किसी मनुष्य की मत पर चलते हैं तो धोखा खा लेते हैं। श्रीमत पर कदम-कदम चलें तो बेड़ा पार है। चढ़ाई बहुत ऊंची है। माया के तूफान किस्म-किस्म से आते हैं। परन्तु बाप को कोई पर ऩफरत नहीं है। बच्चों को भी ऐसा बनना चाहिए। अजामिल जैसे पापी तो सभी हैं। एक गीत में भी है ना कि मैं एक छोटा सा बच्चा हूँ। जैसे कहते हैं ना कि मैं एक मास का बच्चा हूँ। पुराने बच्चे तो आपके बहुत हैं जिनको आप पावन बना रहे हो। तो मुझ छोटे बच्चे को भी पावन बनाओ। तो कहते हैं कि श्रीमत पर चलो तो पुराने से भी अच्छी रीति आगे जा सकते हो। लिफ्ट भी तो मिलती है। देरी से आने से तुमको शक्तियों से योगदान मिलता है। शक्तियाँ भी नम्बरवार हैं। ऐसे नहीं कहा जाता है कि तुम शक्तियों से बुद्धियोग लगाओ। नहीं, शक्तियों से तुम शंखध्वनि सुनो। बुद्धियोग बाबा से लगाना है। बाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। ढिंढोरा पिटवाना है। यहाँ कोई अन्धश्रद्धा की बात नहीं। कॉलेज में कोई अन्धश्रद्धा नहीं हो सकती। यह है गॉड फादरली युनिवर्सिटी। नॉलेजफुल गॉड फादर बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है कि हम मनुष्य से देवता बनेंगे। वह मनुष्य से बैरिस्टर बनते हैं तो बुद्धियोग बैरिस्टर के साथ रहता है। डॉक्टर के साथ नहीं रहता। यह भी कॉलेज है, न कि अन्धश्रद्धा। एम ऑब्जेक्ट है। गॉड फादर हमको पढ़ाते रहते हैं। गीता में भी भगवानुवाच है परन्तु भगवान कौन है? - यह गीता वाले भी नहीं जानते। यह ब्रह्मा भी कहते हैं - हम भी गीता पढ़ते थे। अभी के मनुष्य शास्त्रों को मानते नहीं। गीता को उठाने से उनकी बुद्धि चली जाती है कृष्ण की तरफ। उनको सब धर्म वाले नहीं मानेंगे। गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणी शिवबाबा की गाई हुई। गॉड फादर कहते हैं वह है स्वर्ग का रचयिता। तो बाप से तुमको स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए या फादर के घर जाना है! भगवान पास जाना चाहते हैं। सब मुक्ति ही चाहते हैं। वह लोग जीवन्मुक्ति से क्या जानें। बाप कहते हैं मैं तो पढ़ाता हूँ। मैं फिर सर्वव्यापी कैसे होऊंगा। सर्वव्यापी कहने से मुख ही मीठा नहीं होता। तो बच्चे, यह बातें अच्छी रीति धारण करो और बहुत मीठे बनो। कोई से ऩफरत नहीं करनी चाहिए। सर्जन लोग होते हैं, किसको कैसी भी गन्दी बीमारी होती है तो भी उनको तरस पड़ता है और शफा देते हैं। समझते भी हैं कुछ खराब काम किया है, उसका यह कर्मभोग है। बाप कहते हैं माया की प्रवेशता होने से मनुष्यों से विकर्म ही होते हैं और पतित बन जाते हैं। पांच विकारों को खराब समझते हैं तब तो सन्यासी भी भागते हैं। पवित्रता का मान बहुत है। यह तो समझते हो हम पहले देवताओं को नमन करते हैं, पीछे सन्यासियों को किया है क्योंकि वे भी पावन बनते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अच्छी रीति पढ़कर, श्रीमत पर चल पावन बन अपने आप पर रहम करना है। कभी भी बेरहमी नहीं बनना है।
2) किसी से भी ऩफरत या घृणा नहीं करनी है। बाप समान प्यार का सागर बनना है।
वरदान:-
प्रवृत्ति में रहते भी समर्पित हो सेवा की धुन में रहने वाले बापदादा के दिलतख्तनशीन भव
जो बच्चे प्रवृत्ति में रहते भी समर्पित हैं उनके सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। उनका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिलने से अच्छा फल निकलता है ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत होता है। ऐसे सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में रहते समर्पित हो चलने वाले बच्चे बापदादा के दिलतख्त नशीन बनते हैं।
स्लोगन:-
कम से कम समय में संकल्पों को मोड़ने और ब्रेक लगाने की युक्ति सीख लो तो बुद्धि की शक्ति व्यर्थ नहीं जा सकती।