Saturday, November 10, 2012

Murli [10-11-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे-बाप का फरमान है स्वदर्शन चक्र फिराते अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाओ, इससे विकर्म विनाश होंगे, सिर से पापों का बोझा उतर जायेगा'' 
प्रश्न:- इस पुरुषोत्तम संगमयुग की विशेषतायें कौन-कौन सी हैं? 
उत्तर:- यह संगमयुग ही कल्याणकारी युग है - इसमें ही आत्मा और परमात्मा का सच्चा मेला लगता है जिसे कुम्भ का मेला कहते हैं। 2- इस समय ही तुम सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बनते हो। 3- इस संगम पर तुम दु:खधाम से सुखधाम में जाते हो। दु:खों से छूटते हो। 4- इस समय तुम्हें ज्ञान सागर बाप द्वारा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का पूरा ज्ञान मिलता है। नई दुनिया के लिए नया ज्ञान बाप देते हैं। 5- तुम सांवरे से गोरा बनते हो। 
गीत:- इस पाप की दुनिया से..... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) स्वदर्शन चक्र फिराते पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। मौत सिर पर है इसलिए सबसे ममत्व निकाल देना है। 
2) बाप से वर्सा लेने के लिए पूरा श्रीमत पर चलना है। आत्म-अभिमानी बन सपूत बच्चा बनना है। 
वरदान:- तपस्या द्वारा सर्व कमजोरियों को भस्म करने वाले फर्स्ट नम्बर के राज्य अधिकारी भव 
फर्स्ट जन्म में फर्स्ट नम्बर की आत्माओं के साथ राज्य अधिकार प्राप्त करना है तो जो भी कमजोरियां हैं उन्हें तपस्या की योग अग्नि में भस्म करो। मन-बुद्धि को एकाग्र करना अर्थात् एक ही संकल्प में रह फुल पास होना। अगर मन-बुद्धि जरा भी विचलित हो तो दृढ़ता से एकाग्र करो। व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति ही सम्पूर्णता को समीप लायेगी। 
स्लोगन:- समय को गिनती करने वाले नहीं लेकिन बाप के वा स्वयं के गुणों की गिनती कर सम्पन्न बनो।