Wednesday, November 21, 2012

Murli [21-11-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे, विकारों को दान देने के बाद भी याद में रहने का पुरुषार्थ जरूर करना है क्योंकि याद से ही आत्मा पावन बनेंगी'' 
प्रश्न:- तख्तनशीन बनने वा रूद्र माला में पिरोने की विधि क्या है? 
उत्तर:- बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनो। सभी पर ज्ञान जल के छींटे डाल शीतल बनाने की सेवा करो। किसी को भी दु:ख देने की बातें छोड़ दो। कोई भी विकर्म नहीं करो। अच्छे मैनर्स धारण करो। अपना टाइम बाप की याद में सफल करो तो बाप के दिलतख्तनशीन बन रूद्र माला में पिरो जायेंगे। अगर कोई अपना टाइम वेस्ट करता है तो मुफ्त अपना पद भ्रष्ट करता है। झूठ बोलना, भूल करके छिपाना, किसी की दिल को दु:खाना - यह सब पाप हैं, जिसकी 100 गुणा सज़ा मिलेगी। 
गीत:- न वह हमसे ज़ुदा होंगे... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) पावन बनने के लिए जब तक जीना है, माया के विघ्नों की परवाह नहीं करनी है। 
2) सभी पर ज्ञान के छीटें डाल शीतल बनाने की सेवा करनी है, किसी की दिल को कभी भी दु:खाना नहीं है। बाप समान दु:ख हर्ता, सुख कर्ता बनना है। 
वरदान:- सदा सत के संग द्वारा कमजोरियों को समाप्त करने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी भव 
कोई भी कमजोरी तब आती है जब सत के संग से किनारा हो जाता है और दूसरा संग लग जाता है इसलिए भक्ति में कहते हैं सदा सतसंग में रहो। सतसंग अर्थात् सदा सत बाप के संग में रहना। आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है क्योंकि समीप का संबंध है। तो सदा सतसंग में रह कमजोरियों को समाप्त करने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी बनो। 
स्लोगन:- सदा प्रसन्न रहना है तो प्रशन्सा सुनने की इच्छा का त्याग कर दो।