Friday, November 9, 2012

Murli [9-11-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - यह अनादि खेल बना हुआ है, इसमें हर एक पार्टधारी का पार्ट अपना-अपना है, एक का पार्ट दूसरे से नहीं मिल सकता, यह भी कुदरत है'' 
प्रश्न:- भक्तिमार्ग में गंगाजल को इतना मान क्यों देते हैं? भक्तों की इतनी प्रीत गंगाजल से क्यों? 
उत्तर:- क्योंकि तुम बच्चे अभी ज्ञान जल (अमृत) से सद्गति को पाते हो, तुम्हारी प्रीत ज्ञान से है, जिससे तुम ज्ञान गंगा बन जाते हो इसलिए भक्तों ने फिर पानी को इतना मान दिया है। वैष्णव लोग हमेशा गंगा जल ही काम में लाते हैं। परन्तु पानी से कोई सद्गति नहीं होती। सद्गति तो ज्ञान से होती है। ज्ञान सागर बाप तुम्हें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। आत्मा को पावन बनाने का साधन पानी नहीं, उसके लिए तो ज्ञान और योग का इन्जेक्शन चाहिए जो एक बाप के पास ही है। 
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) साक्षी हो हर एक पार्टधारी का पार्ट देखना है। बाप से 21 जन्मों का वर्सा लेने के लिए पूरा पुरुषार्थ करना है। 
2) आत्मा को सच्चा सोना (कंचन) बनाने के लिए इस अन्तिम जन्म में पवित्र बन बाप को याद करना है। सच्ची कमाई करनी है। 
वरदान:- एक पास शब्द की स्मृति द्वारा किसी भी पेपर में फुल पास होने वाले पास विद आनर भव 
किसी भी पेपर में फुल पास होने के लिए उस पेपर के क्वेश्चन के विस्तार में नहीं जाओ, ऐसा नहीं सोचो कि यह क्यों आया, कैसे आया, किसने किया? इसके बजाए पास होने का सोचकर पेपर को पेपर समझकर पास कर लो। सिर्फ एक पास शब्द स्मृति में रखो कि हमें पास होना है, पास करना है और बाप के पास रहना है तो पास विद आनर बन जायेंगे। 
स्लोगन:- स्वयं को परमात्म प्यार के पीछे कुर्बान करने वाले ही सफलतामूर्त बनते हैं।