Thursday, November 8, 2012

Murli [8-11-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - अब श्रीमत पर मन और बुद्धि को भटकाना बंद करो, एक बाप से सम्बन्ध जोड़ बुद्धियोग लगाओ तो सब बंधन समाप्त हो जायेंगे'' 
प्रश्न: बाप संगम पर तुम्हें कौन सा पुरुषार्थ कराते हैं, जो सारे कल्प में नहीं होता है? 
उत्तर: बंधनों से बुद्धियोग निकाल सम्बन्ध से बुद्धियोग जोड़ने का पुरुषार्थ अभी बाप तुम्हें कराते हैं। इस समय ही एक तरफ तुम्हें सम्बन्ध खींचता तो दूसरे तरफ बंधन। यह युद्व चलती रहती है। आसुरी बंधन से ईश्वरीय सम्बन्ध में आने का यही समय है क्योंकि ईश्वर को यथार्थ रूप से तुम अभी जानते हो। ईश्वर को सर्वव्यापी कहने से सम्बन्ध ज़ुड़ने के बजाए टूट जाता है, बुद्धि विपरीत हो जाती है इसलिए जब यथार्थ पहचान मिली तो सम्बन्ध में आने का पुरुषार्थ करो। 
गीत:- धीरज धर मनुआ ... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) मृत्युलोक के बंधनों में रहते सुख के सम्बन्ध को याद करना है। अपने को आत्मा समझ मन-बुद्धि को भटकाने से छुड़ाना है। 
2) पुरानी दुनिया खत्म होनी है इसलिए इससे ममत्व मिटा देना है। सब भ्रमों से बुद्धियोग निकालने के लिए श्रीमत पर चलना है। 
वरदान: कल्प-कल्प के विजय की नूंध को स्मृति में रख सदा निश्चिंत रहने वाले निश्चयबुद्धि विजयी भव 
निश्चयबुद्धि बच्चे व्यवहार वा परमार्थ के हर कार्य में सदा विजय की अनुभूति करते हैं। भल कैसा भी साधारण कर्म हो, लेकिन उन्हें विजय का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है। वे कोई भी कार्य में स्वयं से दिलशिकस्त नहीं होते क्योंकि निश्चय है कि कल्प-कल्प के हम विजयी हैं। जिसका मददगार स्वयं भगवान है उसकी विजय नहीं होगी तो किसकी होगी, इस भावी को कोई टाल नहीं सकता! यह निश्चय और नशा निश्चिंत बना देता है। 
स्लोगन: सदा खुशी की खुराक द्वारा तन्दरुस्त, खुशी के खजाने से सम्पन्न खुशनुम: बनो।