Monday, November 26, 2012

Murli [2611-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हारा धन्धा है सबका भला करना, पहले अपना भला करो फिर दूसरों का भला करने के लिए सेवा करो'' 
प्रश्न:- ब्राह्मण बनने के बाद भी वैल्युबुल जीवन बनने का आधार क्या है? 
उत्तर:- वाचा और कर्मणा सेवा। जो वाचा या कर्मणा सेवा नहीं करते हैं - उनके जीवन की कोई वैल्यु नहीं। सेवा से सबकी आशीर्वाद मिलती है। जो ईश्वरीय सेवा नहीं करते वह अपना टाइम, एनर्जी सब वेस्ट करते हैं, उनका पद कम हो जाता है। 
गीत:- तुम्हीं हो माता..... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) अन्दर बाहर साफ रहना है। बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है। सच्ची दिल से सेवा करनी है। 
2) अपना टाइम सफल करना है। सर्व की आशीर्वादें लेने के लिए वाचा व कर्मणा सेवा जरूर करनी है। रहमदिल बनना है। सबका कल्याण करने का धन्धा करते रहना है। 
वरदान:- आत्मिक वृत्ति, दृष्टि से दु:ख के नाम-निशान को समाप्त करने वाले सदा सुखदायी भव 
ब्राह्मणों का संसार भी न्यारा है तो दृष्टि-वृत्ति सब न्यारी है। जो चलते-फिरते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहते हैं उनके पास दु:ख का नाम-निशान नहीं रह सकता क्योंकि दु:ख होता है शरीर भान से। अगर शरीर भान को भूलकर आत्मिक स्वरूप में रहते हैं तो सदा सुख ही सुख है। उनका सुखमय जीवन सुखदायी बन जाता है। वे सदा सुख की शैया पर सोते हैं और सुख स्वरूप रहते हैं। 
स्लोगन:- खुद को देखो और खुद की कमियों को भरो तब खुदा का प्यार मिलेगा।