Thursday, November 29, 2012

Murli [29-11-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप समान खुदाई खिदमतगार बन आसुरी सोसायटी को दैवी सोसायटी बनाने की सेवा करो, सर्विस का शौक रखो'' 
प्रश्न:- कई बच्चे पुरानी दुनिया को भुलाते भी नहीं भूल पाते हैं, उसका कारण क्या है? 
उत्तर:- उनका कर्मबन्धन बहुत कड़ा है। अगर नई दुनिया में बुद्धियोग नहीं लगता है। बुद्धि बार-बार पुरानी दुनिया तरफ भागती रहती है, तो कहा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है अर्थात् कर्म ही इनके खोटे हैं। 
प्रश्न:- कौन सा स्वाद आ जाए तो तुम सर्विस के बिगर रह नहीं सकते? 
उत्तर:- रहमदिल बनने का स्वाद। जिसे ज्ञान का स्वाद आया है, वही रहमदिल बनना जानते हैं। रहमदिल बच्चे सर्विस के बिगर रह नहीं सकते। 
गीत:- तू प्यार का सागर है...... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) आप समान बनाने की सेवा करनी है। कोई ऐसी करतूत नहीं करनी है, जिसकी सज़ा खानी पड़े। बहुत-बहुत मीठा बनने का पुरुषार्थ करना है। 
2) बाप हमें चल और अचल (मुक्ति और जीवनमुक्ति) प्रापर्टी का मालिक बनाते हैं - इसी खुशी और नशे में रहना है। 
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में अलौकिक मौजों का अनुभव करने वाले कर्मों की गुह्य गति के ज्ञाता भव 
ब्राह्मण जीवन मौज की जीवन है लेकिन मौज में रहने का अर्थ यह नहीं कि जो आया वह किया, मस्त रहा। यह अल्पकाल के सुख की मौज वा अल्पकाल के सम्बन्ध-सम्पर्क की मौज सदाकाल की प्रसन्नचित स्थिति से भिन्न है। जो आया वह बोला, जो आया वह किया-हम तो मौज में रहते हैं, ऐसे अल्पकाल के मनमौजी नहीं बनो। सदाकाल की रूहानी अलौकिक मौज में रहो-यही यथार्थ ब्राह्मण जीवन है। मौज के साथ कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भी बनो। 
स्लोगन:- अहम् और वहम में आने के बजाए सर्व पर रहम करो।