19-01-2014 (AM Rewised - 05-06-1977)
अलौकिक जीवन का कर्तव्य ही है - विकारी को निर्विकारी बनाना
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में हर सेकण्ड सुखमय स्थिति का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण पवित्र आत्मा भव
पवित्रता को ही सुख-शान्ति की जननी कहा जाता है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता दु:ख अशान्ति का
स्लोगन:- साधनों का प्रयोग करते साधना को बढ़ाना ही बेहद की वैराग्य वृत्ति है।
अलौकिक जीवन का कर्तव्य ही है - विकारी को निर्विकारी बनाना
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में हर सेकण्ड सुखमय स्थिति का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण पवित्र आत्मा भव
पवित्रता को ही सुख-शान्ति की जननी कहा जाता है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता दु:ख अशान्ति का
अनुभव कराती है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर सेकण्ड सुखमय स्थिति में रहने वाले। चाहे दु:ख का नज़रा
भी हो लेकिन जहाँ पवित्रता की शक्ति है वहाँ दु:ख का अनुभव नहीं हो सकता। पवित्र आत्मायें मास्टर
सुखकर्ता बन दु:ख को रूहानी सुख के वायुमण्डल में परिवर्तन कर देती हैं।
स्लोगन:- साधनों का प्रयोग करते साधना को बढ़ाना ही बेहद की वैराग्य वृत्ति है।