मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - अब तुम्हारी सुनवाई होती है, बाप तुम्हें दु:ख से निकाल सुख
प्रश्न:- सदा योगयुक्त रहने तथा श्रीमत पर चलने की आज्ञा बार-बार हर बच्चे को क्यों मिलती है?
उत्तर:- क्योंकि अभी अन्तिम विनाश का दृश्य सामने है। करोड़ों मनुष्य मरेंगे, नैचुरल
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) लाइट हाउस बन सबको रास्ता बताना है। बुद्धि हद से निकाल बेहद में रखनी है।
2) अब वापस घर जाना है इसलिए इस वानप्रस्थ अवस्था में सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ
वरदान:- परमात्म लगन से स्वयं को वा विश्व को निर्विघ्न बनाने वाले तपस्वीमूर्त भव
एक परमात्म लगन में रहना ही तपस्या है। इस तपस्या का बल ही स्वयं को और विश्व को
स्लोगन:- बिखरे हुए स्नेह को समेट कर एक बाप से स्नेह रखो तो मेहनत से छूट जायेंगे।
में ले जाते हैं, अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, वापस घर जाना है''
प्रश्न:- सदा योगयुक्त रहने तथा श्रीमत पर चलने की आज्ञा बार-बार हर बच्चे को क्यों मिलती है?
उत्तर:- क्योंकि अभी अन्तिम विनाश का दृश्य सामने है। करोड़ों मनुष्य मरेंगे, नैचुरल
कैलेमिटीज होंगी। उस समय स्थिति एकरस रहे, सब दृश्य देखते भी मिरूआ मौत मलूका
शिकार..ऐसा अनुभव हो, उसके लिए योगयुक्त बनना पड़े। श्रीमत पर चलने वाले योगी
बच्चे ही मौज में रहेंगे। उनकी बुद्धि में रहेगा कि हम तो पुराना शरीर छोड़ अपने स्वीट
होम में जायेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) लाइट हाउस बन सबको रास्ता बताना है। बुद्धि हद से निकाल बेहद में रखनी है।
स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
2) अब वापस घर जाना है इसलिए इस वानप्रस्थ अवस्था में सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ
करना है। अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है।
वरदान:- परमात्म लगन से स्वयं को वा विश्व को निर्विघ्न बनाने वाले तपस्वीमूर्त भव
एक परमात्म लगन में रहना ही तपस्या है। इस तपस्या का बल ही स्वयं को और विश्व को
सदा के लिए निर्विघ्न बना सकता है। निर्विघ्न रहना और निर्विघ्न बनाना ही आपकी सच्ची
सेवा है, जो अनेक प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओं को मुक्त कर देती है। ऐसे सेवाधारी
बच्चे तपस्या के आधार पर बाप से जीवनमुक्ति का वरदान लेकर औरों को दिलाने के निमित्त
बन जाते हैं।
स्लोगन:- बिखरे हुए स्नेह को समेट कर एक बाप से स्नेह रखो तो मेहनत से छूट जायेंगे।