Tuesday, February 3, 2015
मुरली 03 फरवरी 2015
“मीठे बच्चे - तुम्हें अपार खुशी होनी चाहिए कि हम अभी पुराना कपड़ा छोड़ घर जायेंगे फिर नया कपड़ा नई दुनिया में लेंगे”
प्रश्न:-
ड्रामा का कौन-सा राज अति सूक्ष्म समझने का है?
उत्तर:-
यह ड्रामा जूँ मिसल चलता रहता है, टिक-टिक होती रहती है । जिसकी जो एक्ट चली वह फिर हूबहू 5 हजार वर्ष के बाद रिपीट होगी, यह राज बहुत सूक्ष्म समझने का है । जो बच्चे इस राज को यथार्थ नहीं समझते तो कह देते ड्रामा में होगा तो पुरूषार्थ कर लेंगे, वह ऊंच पद नहीं पा सकते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. ऊंच पद पाने के लिए बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना । अन्धों को रास्ता दिखाना । बेहद की घड़ी को सदा याद रखना है ।
2. यज्ञ की सम्भाल करने के लिए सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बनना है । पैसे आदि जो हैं उन्हें सफल कर बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना है ।
वरदान:-
बाप की छत्रछाया के अनुभव द्वारा विघ्न-विनाशक की डिग्री लेने वाले अनुभवी मूर्त भव !
जहाँ बाप साथ है वहाँ कोई कुछ भी कर नहीं सकता । यह साथ का अनुभव ही छत्रछाया बन जाता है । बापदादा बच्चों की सदा रक्षा करते ही हैं । पेपर आते हैं आप लोगों को अनुभवी बनाने के लिए इसलिए सदैव समझना चाहिए कि यह पेपर क्लास आगे बढ़ाने के लिए आ रहे हैं । इससे ही सदा के लिए विघ्न विनाशक की डिग्री और अनुभवी मूर्त बनने का वरदान मिल जायेगा । यदि अभी कोई थोड़ा शोर करते वा विघ्न डालते भी हैं तो धीरे- धीरे ठण्डे हो जायेंगे ।
स्लोगन:-
जो समय पर सहयोगी बनते हैं उन्हें एक का पदमगुणा फल मिल जाता है ।
ओम् शांति |