Friday, February 27, 2015

मुरली 27 फरवरी 2015

“मीठे बच्चे - पास विद् ऑनर होना है तो बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं न भटके, एक बाप की याद रहे, देह को याद करने वाले ऊंच पद नहीं पा सकते”    प्रश्न:-    सबसे ऊंची मंजिल कौन-सी है? उत्तर:- आत्मा जीते जी मरकर एक बाप की बने और कोई याद न आये, देह-अभिमान बिल्कुल छूट जाये - यही है ऊंची मजिल। निरन्तर देही-अभिमानी अवस्था बन जाये-यह है बड़ी मंजिल। इसी से कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करेंगे। गीत : - तू प्यार का सागर है..  धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. किसी भी देहधारी से लगाव नहीं रखना है। शरीर को याद करना भी भूतों को याद करना है, इसलिए किसी के नाम-रूप में नहीं लटकना है। अपनी देह को भी भूलना है। 2. भविष्य के लिए अविनाशी कमाई जमा करनी है। सेन्सीबुल बन ज्ञान की पॉइंट्स को बुद्धि में धारण करना है। जो बाप ने समझाया है वह समझकर दूसरों को सुनाना है। वरदान:- तड़फती हुई आत्माओं को एक सेकण्ड में गति-सद्गति देने वाले मास्टर दाता भव !    जैसे स्थूल सीजन का इन्तजाम करते हो, सेवाधारी सामग्री सब तैयार करते हो जिससे किसी को कोई तकलीफ न हो, समय व्यर्थ न जाए। ऐसे ही अब सर्व आत्माओं की गति-सद्गति करने की अन्तिम सीजन आने वाली है, तड़फती हुई आत्माओं को क्यू में खड़ा करने का कष्ट नहीं देना है, आते जाएं और लेते जाए, इसके लिए एवररेडी बनो। पुरूषार्थी जीवन में रहने से ऊपर अब दातापन की स्थिति में रहो। हर संकल्प, हर सेकण्ड में मास्टर दाता बन करके चलो। स्लोगन:-  हजूर को बुद्धि में हाजिर रखो तो सर्व प्राप्तियां जी हजूर करेंगी।    ओम् शांति;