Friday, February 13, 2015

मुरली 14 फरवरी 2015

“मीठे बच्चे - तुम्हें भगवान पढ़ाते हैं, तुम्हारे पास हैं ज्ञान रत्न, इन्हीं रत्नों का धंधा तुम्हें करना है, तुम यहां ज्ञान सीखते हो, भक्ति नहीं |”    प्रश्न:- मनुष्य ड्रामा की किस वन्डरफुल नूँध को भगवान की लीला समझ उसकी बड़ाई करते हैं? उत्तर:- जो जिसमें भावना रखते, उन्हें उसका साक्षात्कार हो जाता है तो समझते हैं यह भगवान ने साक्षात्कार कराया लेकिन होता तो सब ड्रामा अनुसार है । एक ओर भगवान की बड़ाई करते, दूसरी ओर सर्वव्यापी कह ग्लानि कर देते हैं । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. गुप्त नशे में रहकर सर्विस करनी है । ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो दिल खाती रहे । अपनी जांच करनी है कि हम कितना याद में रहते हैं? 2. सदा यही फिक्र रहे कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊँच पद पायें । कोई भी विकर्म करके, झूठ बोलकर अपना नुकसान नहीं करना है । वरदान:- कलियुगी दुनिया के दुःख अशान्ति का नजारा देखते हुए सदा साक्षी व बेहद के वैरागी भव !    इस कलियुगी दुनिया में कुछ भी होता है लेकिन आपकी सदा चढ़ती कला है । दुनिया के लिए हाहाकार है और आपके लिए जयजयकार है । आप किसी भी परिस्थिति से घबराते नहीं क्योंकि आप पहले से ही तैयार हो । साक्षी होकर हर प्रकार का खेल देख रहे हो । कोई रोता है, चिल्लाता है, साक्षी होकर देखने में मजा आता है । जो कलियुगी दुनिया के दुख अशान्ति का नजारा साक्षी होकर देखते हैं वह सहज ही बेहद के वैरागी बन जाते हैं । स्लोगन:- कैसी भी धरनी तैयार करनी है तो वाणी के साथ वृत्ति से सेवा करो ।