सार:- “मीठे बच्चे - तुम्हें जो बाप सुनाते हैं वही सुनो, आसुरी बातें मत सुनो, मत बोलो, हियर नो इविल, सी नो इविल...”
प्रश्न:- तुम बच्चों को कौन-सा निश्चय बाप द्वारा ही हुआ है?
उत्तर:- बाप तुम्हें निश्चय कराते कि मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, सतगुरू भी हूँ, तुम पुरूषार्थ करो इस स्मृति में रहने का । परन्तु माया तुम्हें यही भुलाती है । अज्ञान काल में तो माया की बात नहीं ।
प्रश्न:- कौन-सा चार्ट रखने में विशाल बुद्धि चाहिए?
उत्तर:- अपने को आत्मा समझकर बाप को कितना समय याद किया-इस चार्ट रखने में बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए । देही- अभिमानी हो बाप को याद करो तब विकर्म विनाश हों ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. इस आसुरी छी-छी दुनिया से अपनी आँखें बन्द कर लेनी है । यह पुरानी दुनिया है, इससे कोई कनेक्शन नहीं रखना है, इसे देखते हुए भी नहीं देखना है ।
2. इस बेहद ड्रामा में हम पार्टधारी हैं, यह सेकेण्ड बाय सेकेण्ड रिपीट होता रहता है, जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा... यह स्मृति में रख हर बात में पास होना है । विशालबुद्धि बनना है ।
वरदान:- फरिश्तेपन की स्थिति द्वारा बाप के स्नेह का रिटर्न देने वाले समाधान स्वरूप भव !
फरिश्ते पन की स्थिति में स्थित होना-यही बाप के स्नेह का रिटर्न है, ऐसा रिटर्न देने वाले समाधान स्वरूप बन जाते हैं । समाधान स्वरूप बनने से स्वयं की वा अन्य आत्माओं की समस्यायें स्वत : समाप्त हो जाती हैं । तो अब ऐसी सेवा करने का समय है, लेने के साथ देने का समय है इसलिए अब बाप समान उपकारी बन, पुकार सुनकर अपने फरिश्ते रूप द्वारा उन आत्माओं के पास पहुंच जाओ और समस्याओं से थकी हुई आत्माओं की थकावट उतारो ।
स्लोगन:- व्यर्थ से बेपरवाह बनो, मर्यादाओं में नहीं ।