Tuesday, February 3, 2015

मुरली 04 फरवरी 2015

“मीठे बच्चे - सत का संग ज्ञान मार्ग में ही होता है, अभी तुम सत बाप के संग में बैठे हो, बाप की याद में रहना माना सतसंग करना”    प्रश्न:-     सतसंग की आवश्यकता तुम बच्चों को अभी ही है - क्यों? उत्तर:- क्योंकि तमोप्रधान आत्मा एक सत बाप, सत शिक्षक और सतगुरू के संग से ही सतोप्रधान अर्थात् काले से गोरी बन सकती है । बिना सतसंग के निर्बल आत्मा बलवान नहीं बन सकती । बाप के संग से आत्मा में पवित्रता का बल आ जाता है, 21 जन्म के लिए उसका बेड़ा पार हो जाता है । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. तुम्हें जो इस देह का संग मिला है, इस संग से उपराम रहना है । सत के संग से पावन बनना है । 2. इस स्टूडेंट लाइफ में चलते फिरते बुद्धि में नॉलेज घूमती रहे । एम ऑज्जेक्ट को सामने रख पुरूषार्थ करना है । सच्ची दिल से बाप का मददगार बनना है । वरदान:- मन की स्वतन्त्रता द्वारा सर्व आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले मन्सा महादानी भव !    बांधेलियां तन से भल परतन्त्र हैं लेकिन मन से यदि स्वतन्त्र हैं तो अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा विश्व के वायुमण्डल को बदलने की सेवा कर सकती हैं । आजकल विश्व को आवश्यकता है मन के शान्ति की । तो मन से स्वतन्त्र आत्मा मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन फैला सकती है । शान्ति के सागर बाप की याद में रहने से आटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती हैं । ऐसे शान्ति का दान देने वाले ही मन्सा महादानी हैं । स्लोगन:-  स्नेह रूप का अनुभव तो सुनाते हो अब शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ ।      ओम् शांति |