Saturday, February 7, 2015

मुरली 07 फरवरी 2015

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - आत्मा रूपी ज्योति में ज्ञान-योग का घृत डालो तो ज्योत जगी रहेगी, 
ज्ञान और योग का कॉन्ट्रास्ट अच्छी रीति समझना है'' 

प्रश्न:- बाप का कार्य प्रेरणा से नहीं चल सकता, उन्हें यहाँ आना ही पड़े क्यों? 
उत्तर:- क्योंकि मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान है। तमोप्रधान बुद्धि प्रेरणा को कैच नहीं कर 
सकती। बाप आते हैं तब तो कहा जाता है छोड़ भी दे आकाश सिंहासन......। 

गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शीतल, शान्त बनाना है। फुल पास होने के लिए यथार्थ 
रीति बाप को याद कर पावन बनना है। 

2) उठते-बैठते बुद्धि में रहे कि अभी हम यह पुराना शरीर छोड़ वापस घर जायेंगे। जैसे बाप में 
सब ज्ञान है, ऐसे मास्टर ज्ञान सागर बनना है। 

वरदान:- क्यों, क्या के क्वेश्चन की जाल से सदा मुक्त रहने वाले विश्व सेवाधारी चक्रवर्ती भव
 
जब स्वदर्शन चक्र राइट तरफ चलने के बजाए रांग तरफ चल जाता है तब मायाजीत बनने के 
बजाए पर के दर्शन के उलझन के चक्र में आ जाते हो जिससे क्यों और क्या के क्वेश्चन की जाल 
बन जाती है जो स्वयं ही रचते और फिर स्वयं ही फंस जाते इसलिए नॉलेजफुल बन स्वदर्शन 
चक्र फिराते रहो तो क्यों क्या के क्वेश्चन की जाल से मुक्त हो योगयुक्त, जीवनमुक्त, चक्रवर्ती 
बन बाप के साथ विश्व कल्याण की सेवा में चक्र लगाते रहेंगे। विश्व सेवाधारी चक्रवर्ती राजा 
बन जायेंगे। 
स्लोगन:- प्लेन बुद्धि से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ तो सफलता समाई हुई है।