मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - अन्तर्मुखी हो याद का अभ्यास करो, चेक करो कि आत्म-अभिमानी
प्रश्न:- जो बच्चे एकान्त में जाकर आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करते हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:- उनके मुख से कभी उल्टा-सुल्टा बोल नहीं निकलेगा। 2-भाई-भाई का आपस में बहुत लव होगा।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर विनाशी है, उससे प्यार निकाल अविनाशी आत्मा से प्यार रखना है। अविनाशी बाप को
2) विचार सागर मंथन कर अपनी ऐसी अवस्था बनानी है जो मुख से कभी कोई उल्टा-सुल्टा बोल
वरदान:- चलन और चेहरे से पवित्रता के श्रृंगार की झलक दिखाने वाले श्रंगारी मूर्त भव
पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रंगार है। हर समय पवित्रता के श्रंगार की अनुभूति चेहरे वा चलन से
स्लोगन:- व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क भी एकाउन्ट को खाली कर देता है इसलिए व्यर्थ को समाप्त करो।
और परमात्म-अभिमानी कितना समय रहते हैं''
प्रश्न:- जो बच्चे एकान्त में जाकर आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करते हैं उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:- उनके मुख से कभी उल्टा-सुल्टा बोल नहीं निकलेगा। 2-भाई-भाई का आपस में बहुत लव होगा।
सदा क्षीरखण्ड होकर रहेंगे। 3-धारणा बहुत अच्छी होगी। उनसे कोई विकर्म नहीं होगा। 4-उनकी दृष्टि
बहुत मीठी होगी। कभी देह-अभिमान नहीं आयेगा। 5-कोई को भी दु:ख नहीं देंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर विनाशी है, उससे प्यार निकाल अविनाशी आत्मा से प्यार रखना है। अविनाशी बाप को
याद करना है। आत्मा भाई-भाई है, हम भाई से बात करते हैं-यह अभ्यास करना है।
2) विचार सागर मंथन कर अपनी ऐसी अवस्था बनानी है जो मुख से कभी कोई उल्टा-सुल्टा बोल
न निकले। क़दम-क़दम पर अपना पोतामेल चेक करना है।
वरदान:- चलन और चेहरे से पवित्रता के श्रृंगार की झलक दिखाने वाले श्रंगारी मूर्त भव
पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रंगार है। हर समय पवित्रता के श्रंगार की अनुभूति चेहरे वा चलन से
औरों को हो। दृष्टि में, मुख में, हाथों में, पांवों में सदा पवित्रता का श्रंगार प्रत्यक्ष हो। हर एक वर्णन
करे कि इनके फीचर्स से पवित्रता दिखाई देती है। नयनों में पवित्रता की झलक है, मुख पर पवित्रता
की मुस्कराहट है। और कोई बात उन्हें नज़र न आये - इसको ही कहते हैं - पवित्रता के श्रंगार से
श्रंगारी हुई मूर्त।
स्लोगन:- व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क भी एकाउन्ट को खाली कर देता है इसलिए व्यर्थ को समाप्त करो।