मुरली सार:- ``मीठे बच्चे-डेड साइलेन्स में जाने का अभ्यास करो, बुद्धि बाप की तरफ रहे तो
प्रश्न:- तुम बच्चों को जब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है तो कौन-सा साक्षात्कार हो जाता है?
उत्तर:- सतयुग आदि से लेकर कलियुग अन्त तक हम कैसे-कैसे पार्ट बजाते हैं-यह सारा
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने सब हिसाब-किताब चुक्तू कर साइलेन्स वर्ल्ड में जाने की तैयारी करनी है। याद के
2) ज्ञान सागर के ज्ञान को स्वरूप में लाना है। विचार सागर मंथन कर अपना फैंसला आपेही
वरदान:- सर्व संबंधों की अनुभूति के साथ प्राप्तियों की खुशी का अनुभव करने वाले तृप्त आत्मा भव
जो सच्चे आशिक हैं वह हर परिस्थिति में, हर कर्म में सदा प्राप्ति की खुशी में रहते हैं। कई बच्चे
स्लोगन:- निमित्त बनो तो सेवा की सफलता का शेयर मिल जायेगा।
बाप भी तुम्हें अशरीरी बनने के लिए सकाश देंगे''
प्रश्न:- तुम बच्चों को जब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता है तो कौन-सा साक्षात्कार हो जाता है?
उत्तर:- सतयुग आदि से लेकर कलियुग अन्त तक हम कैसे-कैसे पार्ट बजाते हैं-यह सारा
साक्षात्कार हो जाता है। तुम सारे विश्व को आदि से अन्त तक जान जाते हो। जानने को ही
साक्षात्कार कहा जाता है। अभी तुम समझते हो कि हम दैवीगुणों वाले देवता थे। आसुरी
गुण वाले बने। अब फिर दैवी गुणों वाले देवता बन रहे हैं। अभी हम नई दुनिया, नये घर
में जायेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने सब हिसाब-किताब चुक्तू कर साइलेन्स वर्ल्ड में जाने की तैयारी करनी है। याद के
बल से आत्मा को सम्पूर्ण पावन बनाना है।
2) ज्ञान सागर के ज्ञान को स्वरूप में लाना है। विचार सागर मंथन कर अपना फैंसला आपेही
करना है। जीवनमुक्ति में श्रेष्ठ पद प्राप्त करने के लिए दैवीगुण धारण करने हैं।
वरदान:- सर्व संबंधों की अनुभूति के साथ प्राप्तियों की खुशी का अनुभव करने वाले तृप्त आत्मा भव
जो सच्चे आशिक हैं वह हर परिस्थिति में, हर कर्म में सदा प्राप्ति की खुशी में रहते हैं। कई बच्चे
अनुभूति करते हैं कि हाँ वह मेरा बाप है, साजन है, बच्चा है...लेकिन प्राप्ति जितनी चाहते हैं
उतनी नहीं होती। तो अनुभूति के साथ सर्व संबंधों द्वारा प्राप्ति की महसूसता हो। ऐसे प्राप्ति और
अनुभूति करने वाले सदा तृप्त रहते हैं। उन्हें कोई भी चीज़ की अप्राप्ति नहीं लगती। जहाँ प्राप्ति है
वहाँ तृप्ति जरूर है।
स्लोगन:- निमित्त बनो तो सेवा की सफलता का शेयर मिल जायेगा।