मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान-रत्न तुम्हें राव (राजा) बनाते हैं, यह बेहद का स्कूल है,
प्रश्न:- कौन-से बच्चे सभी को प्यारे लगते हैं? ऊंच पद के लिये किस पुरूषार्थ की जरूरत है?
उत्तर:- जो बच्चे अपनी झोली भरकर बहुतों को दान करते हैं वह सभी को प्यारे लगते हैं। ऊंच पद
धारणा के लिये मुख्य सार:-
1) अपनी पढ़ाई और दैवी गुणों का रजिस्टर ठीक रखना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है।
2) सर्व का प्यार वा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये ज्ञान-रत्नों से अपनी झोली भरकर दान करना है।
वरदान:- सेवा में विघ्नों को उन्नति की सीढ़ी समझ आगे बढ़ने वाले निर्विघ्न, सच्चे सेवाधारी भव
सेवा ब्राह्मण जीवन को सदा निर्विघ्न बनाने का साधन भी है और फिर सेवा में ही विघ्नों का पेपर
स्लोगन:- विघ्न रूप नहीं, विघ्न-विनाशक बनो।
तुम्हें पढ़ना और पढ़ाना है, ज्ञान-रत्नों से झोली भरनी है''
प्रश्न:- कौन-से बच्चे सभी को प्यारे लगते हैं? ऊंच पद के लिये किस पुरूषार्थ की जरूरत है?
उत्तर:- जो बच्चे अपनी झोली भरकर बहुतों को दान करते हैं वह सभी को प्यारे लगते हैं। ऊंच पद
के लिये बहुतों की आशीर्वाद चाहिये। इसमें धन की बात नहीं लेकिन ज्ञान धन से अनेकों का
कल्याण करते रहो। खुशमिजाज और योगी बच्चे ही बाप का नाम निकालते हैं।
धारणा के लिये मुख्य सार:-
1) अपनी पढ़ाई और दैवी गुणों का रजिस्टर ठीक रखना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है।
हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं-इस नशे में रहना है।
2) सर्व का प्यार वा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये ज्ञान-रत्नों से अपनी झोली भरकर दान करना है।
बहुतों के कल्याण के निमित्त बनना है।
वरदान:- सेवा में विघ्नों को उन्नति की सीढ़ी समझ आगे बढ़ने वाले निर्विघ्न, सच्चे सेवाधारी भव
सेवा ब्राह्मण जीवन को सदा निर्विघ्न बनाने का साधन भी है और फिर सेवा में ही विघ्नों का पेपर
भी ज्यादा आता है। निर्विघ्न सेवाधारी को सच्चा सेवाधारी कहा जाता है। विघ्न आना यह भी ड्रामा
में नूंध है। आने ही हैं और आते ही रहेंगे क्योंकि यह विघ्न वा पेपर अनुभवी बनाते हैं। इसको विघ्न
न समझ, अनुभव की उन्नति हो रही है - इस भाव से देखो तो उन्नति की सीढ़ी अनुभव होगी
और आगे बढ़ते रहेंगे।
स्लोगन:- विघ्न रूप नहीं, विघ्न-विनाशक बनो।