Saturday, March 22, 2014

Murli-[22-3-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - बाप और बच्चों की एक्टिविटी में जो अन्तर है उसे पहचानो, 
बाप तुम बच्चों के साथ खेल सकता, खा नहीं सकता'' 

प्रश्न:- सत का संग तारे, कुसंग बोरे - इसका भावार्थ क्या है? 
उत्तर:- तुम अभी सत का संग करते हो अर्थात् बाप से बुद्धियोग लगाते हो तो पार हो जाते 
हो। फिर धीरे-धीरे कुसंग अर्थात् देह के संग में आते हो तो उतरते जाते हो क्योंकि संग का 
रंग लगता है इसलिए कहा जाता-सत का संग तारे, कुसंग बोरे। तुम देह सहित देह के सब 
सम्बन्धों को भूल बाप का संग करो अर्थात् बाप को याद करो तो बाप समान पावन बन 
जायेंगे। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) एक बाप को साथी बनाकर तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से सुनूँ, तुम्हीं से खाऊं.... यह अनुभव 
करना है। कुसंग छोड़ सत के संग में रहना है। 

2) कर्मों का हिसाब-किताब याद की यात्रा और कर्मभोग से चुक्तू कर सम्पूर्ण पावन बनना है। 
संगमयुग पर स्वयं को पूरा ट्रांसफर करना है। 

वरदान:- रूहानी माशूक की आकर्षण में आकर्षित हो मेहनत से मुक्त होने वाले रूहानी आशिक भव 

माशूक अपने खोये हुए आशिकों को देख खुश होते हैं। रूहानी आकर्षण से आकर्षित हो अपने 
सच्चे माशूक को जान लिया, पा लिया, यथार्थ ठिकाने पर पहुंच गये। जब ऐसी आशिक आत्मायें 
इस मोहब्बत की लकीर के अन्दर पहुंचती हैं तो अनेक प्रकार की मेहनत से छूट जाती हैं क्योंकि 
यहाँ ज्ञान सागर के स्नेह की लहरें, शक्ति की लहरें... सदा के लिए रिफ्रेश कर देती हैं। यह मनोरंजन 
का विशेष स्थान, मिलने का स्थान आप आशिकों के लिए माशूक ने बनाया है। 

स्लोगन:- एकान्तवासी बनने के साथ-साथ एकनामी और एकॉनामी वाले बनो।