Tuesday, March 25, 2014

Murli-[25-3-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - सारी दुनिया में तुहारे जैसा पद्मापद्म भाग्यशाली स्टूडेन्ट कोई नहीं, तुम्हें स्वयं ज्ञान 
सागर बाप टीचर बनकर पढ़ाते हैं'' 

प्रश्न:- कौन-सा शौक सदा बना रहे तो मोह की रगें टूट जायेंगी? 
उत्तर:- सर्विस करने का शौक बना रहे तो मोह की रगें टूट जायेंगी। सदा बुद्धि में याद रहे कि इन आंखों से जो 
कुछ देखते हैं यह सब विनाशी है। इसे देखते हुए भी नहीं देखना है। बाप की श्रीमत है-हियर नो ईविल, सी नो ईविल......। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ लेने के लिए बापदादा की आफ़रीन लेनी है। सर्विस करके दिखाना है। 
मोह की रगें तोड़ देनी हैं। 

2) ज्ञान सागर विदेही बाप स्वयं पढ़ाने आते हैं इसलिए रोज़ पढ़ना है। एक दिन भी पढ़ाई मिस नहीं करनी है। 
बाप समान विदेही बनने का पुरूषार्थ करना है। 

वरदान:- सेवा द्वारा मेवा प्राप्त करने वाले सर्व हद की चाहना से परे सदा सम्पन्न और समान भव 

सेवा का अर्थ है मेवा देने वाली। अगर कोई सेवा असन्तुष्ट बनाये तो वो सेवा, सेवा नहीं है। ऐसी सेवा 
भल छोड़ दो लेकिन सन्तुष्टता नहीं छोड़ो। जैसे शरीर की तृप्ति वाले सदा सन्तुष्ट रहते हैं वैसे मन की 
तृप्ति वाले भी सन्तुष्ट होंगे। सन्तुष्टता तृप्ति की निशानी है। तृप्त आत्मा में कोई भी हद की इच्छा, मान, 
शान, सैलवेशन, साधन की भूख नहीं होगी। वे हद की सर्व चाहना से परे सदा सम्पन्न और समान होंगे। 

स्लोगन:- सच्ची दिल से नि:स्वार्थ सेवा में आगे बढ़ना अर्थात् पुण्य का खाता जमा होना।