Saturday, March 1, 2014

Murli-[1-3-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हें गुप्त खुशी होनी चाहिए कि हम परमात्मा बाप की युनिवर्सिटी के स्टूडेन्ट हैं, 
भविष्य नई दुनिया का वर्सा पाने के लिए पढ़ रहे हैं'' 

प्रश्न:- किस स्मृति में सदा रहो तो दैवीगुण धारण होते रहेंगे? 
उत्तर:- हम आत्मा शिवबाबा की सन्तान हैं, बाबा हमें कांटों से फूल बनाने आये हैं-यही स्मृति सदा रहे तो 
दैवीगुण धारण होते रहेंगे। पढ़ाई और योग पर पूरा ध्यान रहे, विकारों से नफ़रत हो तो दैवीगुण आते जायेंगे। 
जिस समय कोई विकार वार करे तो समझना चाहिए-मैं कांटा हूँ, मुझे तो फूल बनना है। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) किसी की दिल को दु:खी नहीं करना है। अन्दर कोई भी भूत है तो जांच करके उसे निकालना है, 
फूल बन सबको सुख देना है। 

2) हम ज्ञान सागर के बच्चे हैं तो अन्दर ज्ञान की लहरें सदा उठती रहें। सर्विस की युक्तियां रचनी हैं, 
ट्रेन में भी सर्विस करनी है। साथ-साथ पावन बनने के लिए याद की यात्रा पर भी रहना है। 

वरदान:- अपवित्रता का अंश आलस्य और अलबेलेपन का त्याग करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी भव 

दिनचर्या के कोई भी कर्म में नीचे ऊपर होना, आलस्य में आना या अलबेला होना - यह विकार का अंश है, 
जिसका प्रभाव पूज्यनीय बनने पर पड़ता है। यदि आप अमृतवेले स्वयं को जागृत स्थिति में अनुभव 
नहीं करते, मजबूरी से वा सुस्ती से बैठते हो तो पुजारी भी मजबूरी वा सुस्ती से पूजा करेंगे। तो आलस्य 
वा अलबेलेपन का भी त्याग कर दो तब सम्पूर्ण निर्विकारी बन सकेंगे। 

स्लोगन:- सेवा भले करो लेकिन व्यर्थ खर्च नहीं करो।