Wednesday, September 4, 2013

Murli[4-09-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, रूद्र शिवबाबा तुम्हें जो 
सुनाते हैं वह सुनकर दूसरों को जरूर सुनाना है'' 

प्रश्न:- बाप ने भी यज्ञ रचा है और मनुष्य भी यज्ञ रचते हैं - दोनों में कौन सा मुख्य अन्तर है? 
उत्तर:- मनुष्य रूद्र यज्ञ रचते हैं कि शान्ति हो अर्थात् विनाश न हो लेकिन बाप ने रूद्र 
यज्ञ रचा है कि इस यज्ञ से विनाश ज्वाला निकले और भारत स्वर्ग बनें। बाप के इस 
रूद्र ज्ञान यज्ञ से तुम नर से नारायण अर्थात् मनुष्य से देवता बन जाते हो। उस यज्ञ 
से तो कोई भी प्राप्ति नहीं होती है। 

गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है...... 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) अर्पण होने के साथ-साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है। ऊंच पद के लिए अच्छी 
रीति धारणा करनी और करानी है। 

2) बाप समान निरहंकारी बनना है। अहंकार छोड़ बाप से अति लव वा रिगार्ड रखना है। 
देह-अभिमान में नहीं आना है। 

वरदान:- किलयुगी वायुमण्डल में रहते हुए उसके वायब्रेशन से सेफ रहने वाले स्वराज्य अधिकारी भव

स्वराज्य अधिकारी उसे कहा जाता जिसे कोई भी कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ आकार्षित न करे, 
सदा एक बाप की तरफ आकार्षित रहे। किसी भी व्यक्ति व वस्तु की तरफ आकर्षण न जाए। 
ऐसे राज्य अधिकारी ही तपस्वी हैं, वही हंस, बगुलों के कलियुगी वायुमण्डल में रहते हुए 
सदा सेफ रहते हैं। जरा भी दुनिया के वायब्रेशन, उन्हें आकार्षित नहीं करते। सब कम्प्लेन 
समाप्त हो जाती हैं। 

स्लोगन:- बुरे को अच्छे में बदल देना ही ऊंच ब्राह्मणों की श्रेष्ठ शक्ति है।