Wednesday, September 18, 2013

Murli[18-09-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - अब नाटक पूरा होता है, घर चलना है इसलिये इस शरीर 
रूपी कपड़े को भूलते जाओ, अपने को अशरीरी आत्मा समझो'' 

प्रश्न:- कौनसा वन्डरफुल खेल संगम पर ही चलता है, दूसरे युगों में नहीं? 
उत्तर:- फारकती दिलाने का। राम, रावण से फारकती दिलाते हैं। रावण फिर राम से 
फारकती दिला देते। यह बड़ा वन्डरफुल खेल है। बाप को भूलने से माया का गोला 
लग जाता है इसीलिये बाप शिक्षा देते हैं - बच्चे, अपने स्वधर्म में टिको, देह सहित 
देह के सब धर्मों को भूलते जाओ। याद करने का खूब पुरूषार्थ करते रहो। देही-अभिमानी बनो। 

गीत:- जो पिया के साथ है........ 

धारणा के लिये मुख्य सार :- 

1) रोज़ ज्ञान अमृत के मान-सरोवर में स्नान कर आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाना है। 
माया की मत छोड़ बाप की मत पर चलना है। 

2) यह अमूल्य संगम का समय है, इस समय श्रीमत पर चल सार्विस करनी है। सच्चा
व्यास बन सच्ची गीता सुननी और सुनानी है। रूप-बसन्त बनना है। 

वरदान:- प्रवृत्ति में रहते भी समर्पित हो सेवा की धुन में रहने वाले बापदादा के दिलतख्तनशीन भव 

जो बच्चे प्रवृत्ति में रहते भी समर्पित हैं उनके सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। 
उनका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिलने से अच्छा फल 
निकलता है ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत होता है। ऐसे सेवा की धुन 
में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में रहते समर्पित हो चलने वाले बच्चे बापदादा के दिल तख्तनशीन बनते हैं। 

स्लोगन:- कम से कम समय में संकल्पों को मोड़ने और ब्रेक लगाने की युक्ति सीख लो तो बुद्धि 
की शक्ति व्यर्थ नहीं जा सकती।