Saturday, September 14, 2013

Murli[14-09-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - संगदोष से तुम्हें बहुत सम्भाल करनी है क्योंकि संगदोष में आने 
से ही उल्टे कर्म होते हैं, बाप की याद भूल जाती है'' 

प्रश्न:- किस फ़ज़ीलत (मैनर्स) के आधार पर तुम बच्चे अपनी अवस्था को आगे बढ़ा सकते हो? 
उत्तर:- अगर कभी कोई भूल हो जाती है तो बाप से क्षमा मांगने की भी फ़ज़ीलत चाहिए। 
बाप को कहना चाहिए आई एम सॉरी। इसमें जरा भी देह-अभिमान न आये, इससे अवस्था 
आगे बढ़ती रहेगी। चढ़ती कला का आधार है - बाप से सच्ची दिल। कभी भी अपने को मिया 
मिट्ठू नहीं समझना है। भूलें हर एक से हो सकती हैं क्योंकि अभी तक कोई परिपूर्ण नहीं बने हैं। 

गीत:- हमें उन राहों पर चलना है........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) रूहानी पण्डा बन सच्ची यात्रा करनी और करानी है। बुद्धियोग की बहुत सम्भाल करनी है। 
अपने ऊपर बहुत ख़बरदारी रखनी है। 

2) बाप के साथ सच्चा रहना है। कर्मातीत बनने का पुरूषार्थ करना है। जीते जी सब बाप के 
हवाले कर सफल कर लेना है। 

वरदान:- करनकरावनहार की स्मृति से विघ्नों के बीज को समाप्त करने वाले समर्थ आत्मा भव 

सर्व प्रकार के विघ्नों का बीज दो शब्दों में हैं: 1-अभिमान और 2-अपमान। सेवा के क्षेत्र में या तो 
अभिमान आता कि मैंने यह किया, मैं ही कर सकता...या तो मेरे को आगे क्यों नहीं रखा गया, 
मेरे को यह क्यों कहा गया, यह मेरा अपमान किया गया। यही भावना भिन्न-भिन्न विघ्नों के 
रूप में आती है। जब खुदाई खिदमतगार हैं, करनकरावनहार बाप है तो अभिमान कहाँ से आया, 
अपमान कहाँ से हुआ? इसलिए कम्बाइन्ड रूप की स्मृति द्वारा समर्थ आत्मा बनो तो विघ्नों 
का बीज सदा के लिए समाप्त हो जायेगा। 

स्लोगन:- ज्ञान स्वरूप बनना है तो बाप और पढ़ाई से समान प्यार हो।