मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - आत्मा और परमात्मा का यथार्थ ज्ञान तुम्हारे पास है,
प्रश्न:- सबसे ऊंची मंज़िल कौन सी है, जिसका ही तुम बच्चे पुरूषार्थ कर रहे हो?
उत्तर:- निरन्तर याद में रहना - यह है सबसे ऊंची मंजिल। याद से ही कर्मभोग चुक्तू
गीत:- किसने यह सब खेल रचाया.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठ कमाई जमा करनी है। अपने आप से बातें करनी हैं।
2) राजयोग, कर्मयोग सीखना और सिखलाना है। कभी भी तंग होकर पढ़ाई नहीं
वरदान:- व्यक्त भाव से ऊपर रह फरिश्ता बन उड़ने वाले सर्व बन्धनों से मुक्त भव
देह की धरनी व्यक्त भाव है, जब फरिश्ते बन गये फिर देह की धरनी में कैसे आ
स्लोगन:- असम्भव को सम्भव कर सफलता की अनुभूति करने वाले ही सफलता के सितारे हैं।
इसलिए तुम्हें ललकार करनी है, तुम हो शिव शक्तियां''
प्रश्न:- सबसे ऊंची मंज़िल कौन सी है, जिसका ही तुम बच्चे पुरूषार्थ कर रहे हो?
उत्तर:- निरन्तर याद में रहना - यह है सबसे ऊंची मंजिल। याद से ही कर्मभोग चुक्तू
हो कर्मातीत अवस्था होगी। जिस मात-पिता से अपार सुख मिल रहे हैं, उनके
लिये बच्चे कहते - बाबा, आपकी याद भूल जाती है! वन्डर है ना। देही-अभिमानी
रहने का पुरूषार्थ चलता रहे तो याद भूल नहीं सकती।
गीत:- किसने यह सब खेल रचाया.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठ कमाई जमा करनी है। अपने आप से बातें करनी हैं।
देही-अभिमानी रहना है।
2) राजयोग, कर्मयोग सीखना और सिखलाना है। कभी भी तंग होकर पढ़ाई नहीं
छोड़नी है। बाप का रिगार्ड जरूर रखना है।
वरदान:- व्यक्त भाव से ऊपर रह फरिश्ता बन उड़ने वाले सर्व बन्धनों से मुक्त भव
देह की धरनी व्यक्त भाव है, जब फरिश्ते बन गये फिर देह की धरनी में कैसे आ
सकते। फरिश्ता धरती पर पांव नहीं रखते। फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाले। उन्हें नीचे
की आकर्षण खींच नहीं सकती। नीचे रहेंगे तो शिकारी शिकार कर देंगे, ऊपर उड़ते
रहेंगे तो कोई कुछ नहीं कर सकता। इसलिए कितना भी कोई सुन्दर सोने का पिंजड़ा
हो, उसमें भी फंसना नहीं। सदा स्वतन्त्र, बंधनमुक्त ही उड़ती कला में जा सकते हैं।
स्लोगन:- असम्भव को सम्भव कर सफलता की अनुभूति करने वाले ही सफलता के सितारे हैं।