मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - बाप आये हैं कलियुग की महिफल में, यह बहुत बड़ी महफ़िल है,
प्रश्न:- यदि बच्चों का पुरूषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?
उत्तर:- कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान
गीत:- महफ़िल में जल उठी शमा......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरूषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।
2) पुरूषार्थ कर सार्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है - धारण करने के लिए।
वरदान:- प्रवृत्ति में रहते एक बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने वाले देह के संबंधों से निवृत्त भव
प्रवृत्ति में अगर पवित्र प्रवृत्ति का पार्ट बजाना है तो देह के संबंधों से निव्रृत रहो। मैं पुरूष हूँ,
स्लोगन:- सदा सन्तुष्ट और सदा खुश रहने वाले ही खुशनसीब, तीव्र पुरूषार्थी हैं।
इस महफ़िल में तुम परवाने शमा पर फ़िदा हो पावन बनते हो''
प्रश्न:- यदि बच्चों का पुरूषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?
उत्तर:- कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान
से पकड़ लेती है इसलिए पुरूषार्थ आगे नहीं बढ़ता। चींटी मार्ग का ही रह जाता है। बच्चों को
मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। सुनकर औरों को सुनाना है। रिज़ल्ट देनी है। जो बच्चे मुरली
मिस करते हैं, जिन्हें पढ़ाई का कदर नहीं, वह कभी बख्तावर नहीं बन सकते।
गीत:- महफ़िल में जल उठी शमा......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरूषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।
2) पुरूषार्थ कर सार्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है - धारण करने के लिए।
एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है।
वरदान:- प्रवृत्ति में रहते एक बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने वाले देह के संबंधों से निवृत्त भव
प्रवृत्ति में अगर पवित्र प्रवृत्ति का पार्ट बजाना है तो देह के संबंधों से निव्रृत रहो। मैं पुरूष हूँ,
यह स्त्री है-यह भान स्वप्न में भी नहीं आना चाहिए। आत्मा भाई-भाई है तो स्त्री पुरूष कहाँ
से आये। युगल तो आप और बाप हो। यह तो निमित्त मात्र सेवा अर्थ है, बाकी कम्बाइन्ड रूप
में आप और बाप हो। ऐसा समझकर चलो तब कहेंगे हिम्मतवान विजयी आत्मा।
स्लोगन:- सदा सन्तुष्ट और सदा खुश रहने वाले ही खुशनसीब, तीव्र पुरूषार्थी हैं।