Wednesday, September 25, 2013

Murli[25-09-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - ज्ञान को अग्नि नहीं कहा जाता, योग अग्नि है, योग 
में रहने से ही तुम्हारे पाप भस्म होंगे, तुम स्वच्छ गोरा बन जायेंगे'' 

प्रश्न:- किन बच्चों की बुद्धि रूपी तरकस में ज्ञान बाण सदा भरे रहते हैं? 
उत्तर:- जो रोज़ पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं उनकी बुद्धि रूपी तरकस में 
ज्ञान वाण भरे रहते हैं। वही मात-पिता के समान कांटों को कली और कलियों को 
फूल बनाने की सेवा कर सकते हैं। जो अच्छी तरह पढ़ते और पढ़ाते हैं वही ऊंच पद पाते हैं। 

गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे........ 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) पढ़ाई पढ़कर स्वयं पर आपेही कृपा करनी है। बाप से कृपा मांगनी नहीं है। श्री श्री 
की श्रीमत पर चलते रहना है। 

2) स्वदर्शन चक्रधारी बन मायाजीत जगतजीत बनना है। माया से डरना वा घबराना 
नहीं है। अशरीरी होने का अभ्यास करना है। 

वरदान:- एक ही समय मन-वाणी और कर्म द्वारा साथ-साथ सेवा करने वाले सफलता सम्पन्न भव 

जब भी किसी स्थान की सेवा शुरू करते हो तो एक ही समय पर सर्व प्रकार की सेवा करो। 
मन्सा में शुभ भावना, वाणी में बाप से सम्बन्ध जुड़वाने की शुभ कामना के श्रेष्ठ बोल और 
सम्बन्ध-सम्पर्क में आने से स्नेह और शान्ति के स्वरूप से आकार्षित करो। ऐसे सर्व प्रकार 
की सेवा साथ-साथ करने से सफलता सम्पन्न बनेंगे। सेवा के हर कदम में सफलता समाई 
हुई है - इसी निश्चय के आधार पर सेवा करते चलो। 

स्लोगन:- शुद्ध संकल्पों को अपने जीवन का अमूल्य खजाना बना लो तो वही संकल्प उठेंगे 
जिसमें अपना और दूसरों का कल्याण समाया है।