मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - अभी तुम्हारी ज्योति जगी है, ज्योति जगना अर्थात् बृहस्पति की दशा बैठना,
प्रश्न:- सतयुग में हर घर की विशेषता क्या होगी, कलियुग में हर घर क्या बन गये हैं?
उत्तर:- सतयुग में हर घर में खुशियां होंगी। सबकी ज्योति जगी हुई होगी। कलियुग में तो घर-घर में ग़मी,
गीत:- माता ओ माता........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं में ज्ञान का घृत डालते सदा जागती ज्योत रहना है। बाप की याद में रह राहू का ग्रहण उतार देना है।
2) रूहानी और जिस्मानी दो बाप हैं, यह पहचान हर एक को देकर बेहद के वर्से का अधिकारी बनाना है।
वरदान:- ट्रस्टी बन लौकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए अथक रहने वाले डबल लाइट भव
लौकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए सेवा की भी जिम्मेवारी निभाना इसका डबल लाभ मिलता है।
स्लोगन:- सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहो तो भाग्य रूपी परछाई आपके साथ रहेगी।
बृहस्पति की दशा बैठने से तुम विश्व के मालिक बन जाते हो''
प्रश्न:- सतयुग में हर घर की विशेषता क्या होगी, कलियुग में हर घर क्या बन गये हैं?
उत्तर:- सतयुग में हर घर में खुशियां होंगी। सबकी ज्योति जगी हुई होगी। कलियुग में तो घर-घर में ग़मी,
चिंता है। हर घर में अंधियारा है। आत्मा की ज्योति उझाई हुई है। बाप आये हैं अपनी ज्योति से सबकी
ज्योति जगाने, जिससे फिर घर-घर में दीवाली होगी।
गीत:- माता ओ माता........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं में ज्ञान का घृत डालते सदा जागती ज्योत रहना है। बाप की याद में रह राहू का ग्रहण उतार देना है।
2) रूहानी और जिस्मानी दो बाप हैं, यह पहचान हर एक को देकर बेहद के वर्से का अधिकारी बनाना है।
वरदान:- ट्रस्टी बन लौकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए अथक रहने वाले डबल लाइट भव
लौकिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए सेवा की भी जिम्मेवारी निभाना इसका डबल लाभ मिलता है।
डबल जिम्मेवारी है तो डबल प्राप्ति है। लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट रहने के लिए स्वयं
को ट्रस्टी समझकर जिम्मेवारी सम्भालो तो थकावट का अनुभव नहीं होगा। जो अपनी गृहस्थी,
अपनी प्रवृत्ति समझते हैं उन्हें बोझ का अनुभव होता है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का।
स्लोगन:- सदा ज्ञान सूर्य के सम्मुख रहो तो भाग्य रूपी परछाई आपके साथ रहेगी।