Thursday, September 26, 2013

Murli[26-09-2013]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - सार्विस का शौक रखो, विशाल बुद्धि बन सार्विस की भिन्न-भिन्न 
युक्तियां निकालो, जो बातें बिगर अर्थ हैं, उन्हें करेक्ट करो'' 

प्रश्न:- आत्मा जो अजामिल जैसी गंदी बन गई है उसको साफ करने का साधन क्या है? 
उत्तर:- उसे ज्ञान मान सरोवर में डुबो दो, अगर ज्ञान सागर में डूबे रहे तो आत्मा की मैल 
साफ हो जायेगी। 

प्रश्न:- ब्राह्मणों के लिए सबसे बड़ा पाप कौनसा है? 
उत्तर:- ब्राह्मण अगर बाप की आज्ञा न मानें तो यह बहुत बड़ा पाप है। बाप की पहली आज्ञा है 
तुम मुझे निरन्तर याद करो लेकिन बच्चे इसमें ही फेल हो जाते हैं। फिर माया कोई न कोई 
विकर्म करा देती है। 

गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...... 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) 5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने के लिए सर्जन की राय लेते रहना है। आत्मा पर कोई 
बीमारी न लगे, इसकी सम्भाल करनी है। 

2) सच्ची कमाई करनी और करानी है। कोई भी बेकायदे चलन नहीं चलनी है। राहू की दशा 
कभी न बैठे इसके लिए बाप के फ़रमान पर सदा चलना है। 

वरदान:- अपने पन के अधिकार की अनुभूति द्वारा अधीनता को समाप्त करने वाले सर्व अधिकारी भव
 
बाप को अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना। जहाँ अधिकार है वहाँ न तो स्व 
के प्रति अधीनता है, न सम्बन्ध-सम्पर्क में आने की अधीनता है, न प्रकृति और परिस्थितियों 
में आने की अधीनता है। जब इन सब प्रकारों की अधीनता समाप्त हो जाती है तब सर्व अधिकारी 
बन जाते। जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वही महान हैं और अधिकारी हैं।
 
स्लोगन:- अपने संस्कार वा गुणों को सर्व के साथ मिलाकर चलना - यही विशेष आत्माओं की विशेषता है।