मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मणों का यह नया झाड़ है, इसकी वृद्धि भी करनी है
प्रश्न:- ब्राह्मण झाड़ में निकले हुए पत्ते मुरझाते क्यों हैं? कारण और निवारण क्या है?
उत्तर:- बाप जो ज्ञान के वन्डरफुल राज सुनाते हैं वह न समझने के कारण संशय उत्पन्न
गीत:- प्रीतम आन मिलो........
1) दु:ख के समय अपार सुखों की जो लाटरी मिली है, एक बाप से सच्ची प्रीत हुई है,
2) बाप-दादा समान निराकारी और निरहंकारी बनना है। हिम्मत रख विकारों पर जीत
तो सम्भाल भी करनी है क्योंकि नये झाड़ को चिड़ियायें खा जाती हैं''
प्रश्न:- ब्राह्मण झाड़ में निकले हुए पत्ते मुरझाते क्यों हैं? कारण और निवारण क्या है?
उत्तर:- बाप जो ज्ञान के वन्डरफुल राज सुनाते हैं वह न समझने के कारण संशय उत्पन्न
होता है इसलिए नये-नये पत्ते मुरझा जाते हैं फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसमें समझाने वाले
बच्चे बहुत होशियार चाहिए। अगर कोई संशय उठता है तो बड़ों से पूछना चाहिए। उत्तर
नहीं मिलता तो बाप से भी पूछ सकते हैं।
गीत:- प्रीतम आन मिलो........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दु:ख के समय अपार सुखों की जो लाटरी मिली है, एक बाप से सच्ची प्रीत हुई है,
उसका सिमरण कर सदा खुशी में रहना है।
2) बाप-दादा समान निराकारी और निरहंकारी बनना है। हिम्मत रख विकारों पर जीत
पानी है। योगबल से बादशाही लेनी है।
वरदान:- अखण्ड योग की विधि द्वारा अखण्ड पूज्य बनने वाली श्रेष्ठ महान आत्मा भव
आजकल जो महान आत्मायें कहलाती हैं उन्हों के नाम अखण्डानंद आदि रखते हैं
लेकिन सबमें अखण्ड स्वरूप तो आप हो - आनंद में भी अखण्ड, सुख में भी अखण्ड...
सिर्फ संगदोष में न आओ, दूसरे के अवगुणों को देखते, सुनते डोंटकेयर करो तो इस
विशेषता से अखण्ड योगी बन जायेंगे। जो अखण्ड योगी हैं वही अखण्ड पूज्य बनते हैं।
तो आप ऐसी महान आत्मायें हो जो आधाकल्प स्वयं पूज्य स्वरूप में रहती हो और
आधाकल्प आपके जड़ चित्रों का पूजन होता है।
स्लोगन:- दिव्य बुद्धि ही साइलेन्स की शक्ति का आधार है।