Tuesday, December 17, 2013

Murli-[17-12-2013]- Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - मैं तुम्हें फिर से राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ, 
इस `फिर से' शब्द में ही सारा चक्र समाया हुआ है'' 

प्रश्न:- बाप भी प्रबल है तो माया भी? दोनों की प्रबलता क्या है? 
उत्तर:- बाप तुम्हें पतित से पावन बनाते, पावन बनाने में बाप प्रबल है इसलिए बाप को 
पतित-पावन सर्व-शक्तिमान कहा जाता है। माया फिर पतित बनाने में प्रबल है। सच्ची कमाई 
में गृहचारी ऐसी बैठती है जो फायदे के बदले घाटा हो जाता है, विकारों के पीछे माया तवाई 
बना देती है इसलिए बाबा कहते - बच्चे, देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करो। 

गीत:- हमें उन राहों पर चलना है........ 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) बुद्धि की लाइन सदा क्लीयर रहे इसके लिए देही-अभिमानी रहना है। सच्ची कमाई में 
माया किसी प्रकार से घाटा न डाल दे - यह सम्भाल करनी है। 

2) कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नहीं करना है। इन्श्योर करने के बाद सार्विस भी जरूर करनी है। 

वरदान:- ``मेरा बाबा'' के स्मृति स्वरूप द्वारा समर्थियों का अधिकार प्राप्त करने वाले समर्थ आत्मा भव 

कल्प पहले की स्मृति आते ही बच्चे कहते तुम मेरे हो और बाप कहते तुम मेरे हो। इस मेरे-पन 
की स्मृति से नया जीवन, नया जहान मिल गया और सदा के लिए ``मेरा बाबा'' इस स्मृति 
स्वरूप में टिक गये। इसी स्मृति के रिटर्न में समर्था स्वरूप बन गये, जो जितना स्मृति में रहते 
हैं उतना उन्हें समर्थियों का अधिकार प्राप्त होता है। जहाँ स्मृति है वहाँ समर्थी है ही। थोड़ी भी 
विस्मृति है तो व्यर्थ है इसलिए सदा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप बनो। 

स्लोगन:- हार्ड वर्कर के साथ-साथ स्थिति में भी सदा हार्ड (मजबूत) बनो।