Friday, September 28, 2012

Murli [28-09-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - इस दु:ख के घाट पर बैठ शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, इस दु:खधाम को भूल जाओ, यहाँ बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए'' 
प्रश्न: तुम्हारे पुरूषार्थ का आधार क्या है? 
उत्तर: निश्चय। तुम्हें निश्चय है-बाप नई दुनिया की सौगात लाये हैं, इस पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है। इस निश्चय से तुम पुरूषार्थ करते हो। अगर निश्चय नहीं है तो सुधरेंगे नहीं। आगे चल अखबारों द्वारा तुम्हारा मैसेज सबको मिलेगा, आवाज निकलेगा। तुम्हारा निश्चय भी पक्का होता जायेगा। 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) पढ़ाई को अच्छी तरह पढ़कर ऊंच पद पाना है। आफतें आने के पहले नई दुनिया के लिए तैयार होना है। 
2) अपने को सुधारने के लिए निश्चयबुद्धि बनना है। वाणी से परे वानप्रस्थ में जाना है इसलिए इस दु:खधाम को भूल शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है। 
वरदान: बड़ी दिल रख सेवा का प्रत्यक्षफल निकालने वाले विश्व कल्याणकारी भव 
जो बच्चे बड़ी दिल रखकर सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्षफल भी बड़ा निकलता है। कोई भी कार्य करो तो स्वयं करने में भी बड़ी दिल और दूसरों को सहयोगी बनाने में भी बड़ी दिल हो। स्वयं प्रति वा साथी सहयोगी आत्माओं प्रति संकुचित दिल नहीं रखो। बड़ी दिल रखने से मिट्टी भी सोना हो जाती है, कमजोर साथी भी शक्तिशाली बन जाते हैं, असम्भव सफलता सम्भव हो जाती है। इसके लिए मैं-मैं की बलि चढ़ा दो तो बड़ी दिल वाले विश्व कल्याणकारी बन जायेंगे। 
स्लोगन: कारण को निवारण में परिवर्तन करना ही शुभ-चिंतक बनना है।