दूसरे से मिल नहीं सकता। बुद्धि में है सब दिन होत न एक समान... 5000 वर्षो के ड्रामा में दो दिन भी एक जैसे नहीं हो सकते हैं। यह ड्रामा अनादि बना हुआ है जो हूबहू रिपीट होता है। ड्रामा की सदा स्मृति रहे तो चढ़ती कला होती रहेगी।
गीत:- महफिल में जल उठी शमा...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) फूल बनकर सबको सुख देना है। किसी को कांटा नहीं लगाना है। कभी भी बाप की अवज्ञा नहीं करनी है, रूठना नहीं है।
2) कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलना है। अपनी मत नहीं चलानी है। देह-अभिमान में आकर नाफरमानबरदार नहीं बनना है।
वरदान: प्रत्यक्षता और प्रतिज्ञा के बैलेन्स द्वारा सर्व को बाप की ब्लैसिंग प्राप्त कराने वाले विजयी रत्न भव
प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने के लिए दृढ़ता सम्पन्न प्रतिज्ञा करो। प्रतिज्ञा करना माना जान की बाज़ी लगा देना। जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जा सकती। दृढ़ प्रतिज्ञा वाले कैसी भी परिस्थिति में हार नहीं खा सकते, वह गले का हार अर्थात् विजयी रत्न बन जाते हैं। तो जब ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा करो तब प्रत्यक्षता हो। प्रत्यक्षता और प्रतिज्ञा-इन दोनों का बैलेन्स ही सर्व आत्माओं को बापदादा द्वारा ब्लैसिंग प्राप्त होने का आधार है।
स्लोगन: लवलीन स्थिति का अनुभव करो तो स्मृति-विस्मृति के युद्ध में समय नहीं जायेगा।