मुरली सार:- 'मीठे बच्चे - आपस में मिलकर इस कलियुगी दुनिया से दु:ख के छप्पर को उठाना है, बाप को याद करने का पुण्य करना है'
प्रश्न: ज्ञान की अविनाशी प्रालब्ध होते हुए भी कई बच्चों के पुण्य का खाता जमा होने के बजाए खत्म क्यों हो जाता है?
उत्तर: क्योंकि पुण्य करते-करते बीच में पाप कर लेते। ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हुए संगदोष में आकर कोई पाप किया तो उस पाप के कारण किये हुए पुण्य खत्म हो जाते हैं। 2- बाप का बनकर काम विकार की चोट खाई, बाप का हाथ छोड़ा तो वह पहले से भी अधिक पाप आत्मा बन जाते। उसे कुल-कलंकित कहा जाता है। वह बहुत कड़ी सज़ा के भागी बन जाते हैं। सतगुरू की निंदा कराने के कारण उन्हें ठौर मिल नहीं सकता।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप बिन्दी है, इस बात को यथार्थ समझकर बाप को याद करना है। बिन्दी-बिन्दी कहकर मूँझना नहीं है। सर्विस पर तत्पर रहना है।
2) सच्ची गीता सुननी और सुनानी है। सच्चा ब्राह्मण बनने के लिए पवित्र रहना है। रेगुलर पढ़ाई जरूर करनी है।
वरदान: ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त भव
ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट करे लेकिन आपको क्रोध न आये। रोब दिखाना भी क्रोध का ही अंश है। ऐसे नहीं क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा। आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है इसलिए इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझकर मायाजीत, क्रोध मुक्त बनो।
स्लोगन: अपनी वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो अनेक आत्मायें आपकी वृत्ति से योग्य और योगी बन जायें।
प्रश्न: ज्ञान की अविनाशी प्रालब्ध होते हुए भी कई बच्चों के पुण्य का खाता जमा होने के बजाए खत्म क्यों हो जाता है?
उत्तर: क्योंकि पुण्य करते-करते बीच में पाप कर लेते। ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हुए संगदोष में आकर कोई पाप किया तो उस पाप के कारण किये हुए पुण्य खत्म हो जाते हैं। 2- बाप का बनकर काम विकार की चोट खाई, बाप का हाथ छोड़ा तो वह पहले से भी अधिक पाप आत्मा बन जाते। उसे कुल-कलंकित कहा जाता है। वह बहुत कड़ी सज़ा के भागी बन जाते हैं। सतगुरू की निंदा कराने के कारण उन्हें ठौर मिल नहीं सकता।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप बिन्दी है, इस बात को यथार्थ समझकर बाप को याद करना है। बिन्दी-बिन्दी कहकर मूँझना नहीं है। सर्विस पर तत्पर रहना है।
2) सच्ची गीता सुननी और सुनानी है। सच्चा ब्राह्मण बनने के लिए पवित्र रहना है। रेगुलर पढ़ाई जरूर करनी है।
वरदान: ब्राह्मण जीवन में सदा सुख का अनुभव करने वाले मायाजीत, क्रोधमुक्त भव
ब्राह्मण जीवन में यदि सुख का अनुभव करना है तो क्रोधजीत बनना अति आवश्यक है। भल कोई गाली भी दे, इनसल्ट करे लेकिन आपको क्रोध न आये। रोब दिखाना भी क्रोध का ही अंश है। ऐसे नहीं क्रोध तो करना ही पड़ता है, नहीं तो काम ही नहीं चलेगा। आजकल के समय प्रमाण क्रोध से काम बिगड़ता है और आत्मिक प्यार से, शान्ति से बिगड़ा हुआ कार्य भी ठीक हो जाता है इसलिए इस क्रोध को बहुत बड़ा विकार समझकर मायाजीत, क्रोध मुक्त बनो।
स्लोगन: अपनी वृत्ति को ऐसा पावरफुल बनाओ जो अनेक आत्मायें आपकी वृत्ति से योग्य और योगी बन जायें।