Monday, September 24, 2012

Murli [24-09-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - यह पूज्य और पुजारी, ज्ञान और भक्ति का वन्डरफुल खेल है, तुम्हें अब फिर से सतोप्रधान पूज्य बनना है, पतितपने की निशानी भी समाप्त करनी है'' 
प्रश्न: बाप जब आते हैं तो कौन सा एक तराजू बच्चों को दिखाते हैं? 
उत्तर: ज्ञान और भक्ति का तराजू। जिसमें एक पुर (पलड़ा) है ज्ञान का, दूसरा है भक्ति का। अभी ज्ञान का पुर हल्का है, भक्ति का भारी है। धीरे-धीरे ज्ञान का पुर भारी होता जायेगा फिर सतयुग में केवल एक ही पुर होगा। वहाँ इस तराजू की दरकार ही नहीं है। 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) यह जीवन बाप की सेवा में लगानी है। बहुत-बहुत सुखदाई बनना है। कोई उल्टा-सुल्टा बोले तो शान्त रहना है। बाप समान सबके दु:ख दूर करने हैं। 
2) अपने रजिस्टर की जाँच करनी है। दैवीगुण धारण कर चरित्रवान बनना है। अवगुण निकाल देने हैं। 
वरदान: मन से दृढ़ प्रतिज्ञा कर मनमनाभव के मन्त्र को यन्त्र बनाने वाले सदा शक्तिशाली भव 
जो बच्चे सच्चे मन से प्रतिज्ञा करते हैं तो मन मन्मनाभव हो जाता है और यह मन्मनाभव का मन्त्र किसी भी परिस्थिति को पार करने में यन्त्र बन जाता है। लेकिन मन में आये कि मुझे यह करना ही है। यही संकल्प हो कि जो बाप ने कहा वह हुआ ही पड़ा है इसलिए कोई भी प्रतिज्ञा मन से करो और दृढ़ करो तो शक्तिशाली बन जायेंगे। बार-बार अपने को चेक करो कि प्रतिज्ञा पावरफुल है या परीक्षा पावरफुल है? परीक्षा प्रतिज्ञा को कमजोर न कर दे। 
स्लोगन: जो स्वमान में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हैं उन्हें अपमान की फीलिंग नहीं आ सकती।