Saturday, September 1, 2012

Murli [1-09-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - बाप है गरीब-निवाज़, तुम गरीब बच्चे ही बाप से ज्ञान की मुट्ठी ले साहूकार बनते हो, बाप तुम्हें आप समान बनाते हैं'' 
प्रश्न: असुरों के विघ्न जो गाये हुए हैं वह इस रूद्र यज्ञ में कैसे पड़ते रहते हैं? 
उत्तर: मनुष्य तो समझते हैं असुरों ने शायद यज्ञ में गोबर आदि का किचड़ा डाला होगा-परन्तु ऐसा नहीं है। यहाँ जब किसी बच्चे को अहंकार आता है, कोई ग्रहचारी बैठती है तो जैसे किचड़ा बरसने लगता है, क्रोध में आकर मुख से जो फालतू बोल बोलते हैं, यही इस रूद्र यज्ञ में बहुत बड़ा विघ्न डालते हैं। कई बच्चे संगदोष में आकर अपना खाना खराब कर देते हैं। माया थप्पड़ मार इनसालवेन्ट बना देती है। 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) पहला अवगुण जो देह-अभिमान का है, उसे निकालकर पूरा-पूरा देही-अभिमानी बनना है। 
2) अविनाशी ज्ञान धन जो बाप से मिल रहा है, उसका दान करना है। बाप समान निरहंकारी बनना है। मुख से रत्न निकालने हैं। ईविल बातें नहीं सुननी है। 
वरदान: अकालतख्त पर बैठकर कर्मेन्द्रियों से सदा श्रेष्ठ कर्म कराने वाले कर्मयोगी भव 
कर्मयोगी वह है जो अकाल तख्तनशीन अर्थात् स्वराज्य अधिकारी और बाप के वर्से के राज्य-भाग्य अधिकारी है। जो सदा अकाल तख्त पर बैठकर कर्म करते हैं, उनके कर्म श्रेष्ठ होते हैं क्योंकि सभी कर्मेन्द्रियां लॉ और ऑर्डर पर रहती हैं। अगर कोई तख्त पर ठीक न हो तो लॉ और ऑर्डर चल नहीं सकता। तो तख्तनशीन आत्मा सदा यथार्थ कर्म और यथार्थ कर्म का प्रत्यक्षफल खाने वाली होती है, उसे खुशी भी मिलती है तो शक्ति भी मिलती है। 
स्लोगन: ब्रह्मा बाप के प्यारे वह हैं जिनका ब्राह्मण कल्चर से प्यार है।