Tuesday, September 4, 2012

Murli [4-09-2012]-Hindi


मुरली सार:- मीठे बच्चे-पहला निश्चय करो कि मैं आत्मा हूँ, प्रवृत्ति में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा और पौत्रा समझकर चलो, यही मेहनत है 
प्रश्न: तुम सब पुरूषार्थी बच्चे किस एक गुह्य राज़ को अच्छी तरह जानते हो? 
उत्तर: हम जानते हैं कि अभी तक 16 कला सम्पूर्ण कोई भी बना नहीं है, सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। मैं सम्पूर्ण बन गया हूँ-यह कहने की ताकत किसी में भी नहीं हो सकती, क्योंकि अगर सम्पूर्ण बन जायें तो यह शरीर ही छूट जाए। शरीर छूटे तो सूक्ष्मवतन में बैठना पड़े। मूलवतन में तो कोई जा नहीं सकता, क्योंकि जब तक ब्राइडग्रूम न जाये, तब तक ब्राइड्स कैसे जा सकेंगी। यह भी गुह्य राज़ है। 
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी..... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) साक्षात्कार आदि की आश न रख निश्चयबुद्धि बन पुरूषार्थ करना है। पहले-पहले निश्चय करना है कि मैं अति सूक्ष्म आत्मा हूँ। 
2) बीमारी आदि में बाप की याद में रहना है। यह भी कर्मभोग है। याद से ही आत्मा पावन बनेगी। पावन बनकर पावन दुनिया में चलना है। 
वरदान: मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी भव 
दुनिया वाले समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ हैं लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हैं। ऐसा कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त कर लेगा। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। लेकिन कर्म के साथ योग है माना मन और बुद्धि की एकाग्रता है तो सफलता बंधी हुई है। कर्मयोगी आत्मा को बाप की मदद भी स्वत: मिलती है। 
स्लोगन: बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए अन्दर से अनासक्त व मनमनाभव रहो।