मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप से तुम बच्चों को जो अविनाशी ज्ञान रत्न मिलते हैं, उन ज्ञान रत्नों का दान करने की रेस करनी है''
प्रश्न: माला में नम्बर आगे वा पीछे होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: श्रीमत की पालना। जो श्रीमत को अच्छी तरह पालन करते वह नम्बर आगे आ जाते हैं और जो आज अच्छी पालना करते, कल देह-अभिमान वश श्रीमत में मनमत मिक्स कर देते वह नम्बर पीछे चले जाते। कायदे अनुसार श्रीमत पर चलने वाले बच्चे पीछे आते भी आगे नम्बर ले सकते हैं।
गीत:- रात के राही.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से अन्दर बाहर साफ रहना है। कोई भी भूल हो जाए तो फौरन क्षमा मांगना है। रूहानी जिस्मानी दोनों प्रकार की सेवा करनी है।
2) कभी भी ईष्या के कारण एक दो का परचिंतन नहीं करना है। कोई किसी के प्रति उल्टी सुल्टी बातें सुनायें तो सुनी अनसुनी कर देनी है। वर्णन करके किसी की दिल खराब नहीं करनी है।
वरदान: बहानेबाज़ी के खेल को समाप्त करने वाले मास्टर दातापन के स्वमानधारी भव
जिन बच्चों को बहानेबाजी का खेल आता है वह कहेंगे-ऐसे नहीं होता तो वैसा नहीं होता। इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश वा बात ही ऐसी थी....अब इस बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि ऐसा हो या वैसा लेकिन मुझे तो बाप जैसा बनना है। दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न बनूं, नहीं। इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। इस भावना से मास्टर दातापन के स्वमानधारी बन जायेंगे।
स्लोगन: जब मैं और मेरे पन के भावों से वैराग्य हो तब कहेंगे बेहद के वैरागी।
प्रश्न: माला में नम्बर आगे वा पीछे होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: श्रीमत की पालना। जो श्रीमत को अच्छी तरह पालन करते वह नम्बर आगे आ जाते हैं और जो आज अच्छी पालना करते, कल देह-अभिमान वश श्रीमत में मनमत मिक्स कर देते वह नम्बर पीछे चले जाते। कायदे अनुसार श्रीमत पर चलने वाले बच्चे पीछे आते भी आगे नम्बर ले सकते हैं।
गीत:- रात के राही.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से अन्दर बाहर साफ रहना है। कोई भी भूल हो जाए तो फौरन क्षमा मांगना है। रूहानी जिस्मानी दोनों प्रकार की सेवा करनी है।
2) कभी भी ईष्या के कारण एक दो का परचिंतन नहीं करना है। कोई किसी के प्रति उल्टी सुल्टी बातें सुनायें तो सुनी अनसुनी कर देनी है। वर्णन करके किसी की दिल खराब नहीं करनी है।
वरदान: बहानेबाज़ी के खेल को समाप्त करने वाले मास्टर दातापन के स्वमानधारी भव
जिन बच्चों को बहानेबाजी का खेल आता है वह कहेंगे-ऐसे नहीं होता तो वैसा नहीं होता। इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश वा बात ही ऐसी थी....अब इस बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि ऐसा हो या वैसा लेकिन मुझे तो बाप जैसा बनना है। दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न बनूं, नहीं। इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। इस भावना से मास्टर दातापन के स्वमानधारी बन जायेंगे।
स्लोगन: जब मैं और मेरे पन के भावों से वैराग्य हो तब कहेंगे बेहद के वैरागी।