Wednesday, July 18, 2012

Murli [18-07-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - अमृतवेले उठ बाप की याद का घृत रोज़ डालो, तो आत्मा रूपी ज्योति सदा जगी रहेगी'' 
प्रश्न: कौन सा एक कर्तव्य बच्चों का है, बाप का नहीं? 
उत्तर: बच्चे कहते हैं बाबा फलाने सम्बन्धी की बुद्धि का ताला खोलो... बाबा कहते यह धन्धा मेरा नहीं। यह तो तुम बच्चों का कर्तव्य है। तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है तो तुम औरों का भी ताला खोल स्वर्ग में चलने के लायक बनाओ अर्थात् सबको मुक्ति और जीवनमुक्ति की राह बताओ। 
गीत:- जाग सजनियां जाग.... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) याद का अभ्यास बढ़ाना है। इस यात्रा में कभी थकना वा बहाना नहीं देना है। याद का पूरा-पूरा चार्ट रखना है। भोजन भी शिवबाबा की याद में बनाना वा खाना है। 
2) बुद्धि से बेहद का सन्यास करना है। इस छी-छी दुनिया को बुद्धि से त्याग देना है। बाप द्वारा जो मन्त्र मिला है वही सबको देना है। जगे हैं तो जगाना भी है। 
वरदान: अपनी आकर्षणमय स्थिति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले रूहानी सेवाधारी भव 
रूहानी सेवाधारी कभी यह नहीं सोच सकते कि सेवा में वृद्धि नहीं होती या सुनने वाले नहीं मिलते। सुनने वाले बहुत हैं सिर्फ आप अपनी स्थिति रूहानी आकर्षणमय बनाओ। जब चुम्बक अपनी तरफ खींच सकता है तो क्या आपकी रूहानी शक्ति आत्माओं को नहीं खींच सकती! तो रूहानी आकर्षण करने वाले चुम्बक बनो जिससे आत्मायें स्वत: आकर्षित होकर आपके सामने आ जायें, यही आप रूहानी सेवाधारी बच्चों की सेवा है। 
स्लोगन: समाधान स्वरूप बनना है तो सबको स्नेह और सम्मान देते चलो।