मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - इस शरीर का भान भूलते जाओ, अशरीरी बनने की मेहनत करो, क्योंकि अब घर चलना है''
प्रश्न: तुम आस्तिक बच्चे ही कौन सा शब्द बोल सकते हो?
उत्तर: भगवान हमारा बाप है, यह आस्तिक बच्चे ही बोल सकते हैं क्योंकि उन्हें ही बाप का परिचय है। नास्तिक तो जानते ही नहीं। आस्तिक बच्चे ही कहेंगे - मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई।
प्रश्न:- तीव्र पुरुषार्थी बनने के लिए कौन सी स्थिति चाहिए?
उत्तर:- साक्षी स्थिति। साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखते पुरुषार्थ करते रहो।
गीत:- मरना तेरी गली में....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह और देह के सम्बन्धों को भूल पूरा बेगर बनना है, मेरा कुछ नहीं। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। किसी के नाम रूप में नहीं अटकना है।
2) ड्रामा में होगा तो पुरुषार्थ कर लेंगे, ऐसा सोचकर पुरुषार्थ-हीन नहीं बनना है। साक्षी हो दूसरों के पुरुषार्थ को देखते तीव्र पुरुषार्थी बनना है।
वरदान: बालक सो मालिक की सीढ़ी चढ़ने और उतरने वाले बेफिक्र, डबल लाइट भव
सदा यह स्मृति रहे कि मालिक के साथ बालक भी हैं और बालक के साथ मालिक भी हैं। बालक बनने से सदा बेफिक्र, डबल लाइट रहेंगे और मालिक अनुभव करने से मालिकपन का रूहानी नशा रहेगा। राय देने के समय मालिक और जब मैजारिटी फाइनल करते हैं तो उस समय बालक, यह बालक और मालिक बनने की भी एक सीढ़ी है। यह सीढ़ी कभी चढ़ो, कभी उतरो, कभी बालक बन जाओ, कभी मालिक बन जाओ तो किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रहेगा।
स्लोगन: जो पुरूष (आत्मा) समझ, रथ (शरीर) द्वारा कार्य कराते हैं वही सच्चे पुरूषार्थी हैं।
प्रश्न: तुम आस्तिक बच्चे ही कौन सा शब्द बोल सकते हो?
उत्तर: भगवान हमारा बाप है, यह आस्तिक बच्चे ही बोल सकते हैं क्योंकि उन्हें ही बाप का परिचय है। नास्तिक तो जानते ही नहीं। आस्तिक बच्चे ही कहेंगे - मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई।
प्रश्न:- तीव्र पुरुषार्थी बनने के लिए कौन सी स्थिति चाहिए?
उत्तर:- साक्षी स्थिति। साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखते पुरुषार्थ करते रहो।
गीत:- मरना तेरी गली में....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह और देह के सम्बन्धों को भूल पूरा बेगर बनना है, मेरा कुछ नहीं। देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। किसी के नाम रूप में नहीं अटकना है।
2) ड्रामा में होगा तो पुरुषार्थ कर लेंगे, ऐसा सोचकर पुरुषार्थ-हीन नहीं बनना है। साक्षी हो दूसरों के पुरुषार्थ को देखते तीव्र पुरुषार्थी बनना है।
वरदान: बालक सो मालिक की सीढ़ी चढ़ने और उतरने वाले बेफिक्र, डबल लाइट भव
सदा यह स्मृति रहे कि मालिक के साथ बालक भी हैं और बालक के साथ मालिक भी हैं। बालक बनने से सदा बेफिक्र, डबल लाइट रहेंगे और मालिक अनुभव करने से मालिकपन का रूहानी नशा रहेगा। राय देने के समय मालिक और जब मैजारिटी फाइनल करते हैं तो उस समय बालक, यह बालक और मालिक बनने की भी एक सीढ़ी है। यह सीढ़ी कभी चढ़ो, कभी उतरो, कभी बालक बन जाओ, कभी मालिक बन जाओ तो किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रहेगा।
स्लोगन: जो पुरूष (आत्मा) समझ, रथ (शरीर) द्वारा कार्य कराते हैं वही सच्चे पुरूषार्थी हैं।