मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हें पढ़ाई में कभी थकना नहीं है, अथक बनना है, अथक बनना अर्थात् कर्मातीत अवस्था को पाना''
प्रश्न: तुम बच्चों ने अभी कौन सी प्रतिज्ञा की है और क्यों?
उत्तर: तुमने प्रतिज्ञा की है कि किसको भी दु:ख नहीं देंगे। सबको सुख का रास्ता बतायेंगे।
प्रश्न:- किन बच्चों की पालना यज्ञ से होती है?
उत्तर:- जो अपने को ट्रस्टी समझते हैं अर्थात् पूरा दिल से सब कुछ सरेन्डर करते हैं। वह रहते भी गृहस्थ व्यवहार में हैं, धन्धा भी करते हैं लेकिन ट्रस्टी हैं। तो जैसे शिवबाबा के खजाने से खाते हैं।
गीत:- तुम्हीं हो माता...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मात पिता को फालो करते हुए ज्ञान-योग से सबकी पालना करनी है। उसी पालना में रहना है। ज्ञान योग में तीखा जाना है।
2) पवित्र और योगिन के हाथ का भोजन खाना है। बुद्धि को शुद्ध बनाने के लिए भोजन की बहुत परहेज रखनी है।
वरदान: समर्पण भाव से सेवा करते सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
सच्चे सेवाधारी वह हैं जो समर्पण भाव से सेवा करते हैं। सेवा में जरा भी मेरे-पन का भाव न हो। जहाँ मेरापन है वहाँ सफलता नहीं। जब कोई यह समझ लेते हैं कि यह मेरा काम है, मेरा विचार है, यह मेरी फर्ज-अदाई है-तो यह मेरापन आना अर्थात् मोह उत्पन्न होना। लेकिन कहाँ भी रहते सदा स्मृति रहे कि मैं निमित्त हूँ, यह मेरा घर नहीं लेकिन सेवा-स्थान है तो समर्पण भाव से निर्माण और नष्टोमोहा बन सफलता को प्राप्त कर लेंगे।
स्लोगन: सदा अपने स्वमान की सीट पर रहो तो सर्व शक्तियां आर्डर मानती रहेंगी।
प्रश्न: तुम बच्चों ने अभी कौन सी प्रतिज्ञा की है और क्यों?
उत्तर: तुमने प्रतिज्ञा की है कि किसको भी दु:ख नहीं देंगे। सबको सुख का रास्ता बतायेंगे।
प्रश्न:- किन बच्चों की पालना यज्ञ से होती है?
उत्तर:- जो अपने को ट्रस्टी समझते हैं अर्थात् पूरा दिल से सब कुछ सरेन्डर करते हैं। वह रहते भी गृहस्थ व्यवहार में हैं, धन्धा भी करते हैं लेकिन ट्रस्टी हैं। तो जैसे शिवबाबा के खजाने से खाते हैं।
गीत:- तुम्हीं हो माता...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मात पिता को फालो करते हुए ज्ञान-योग से सबकी पालना करनी है। उसी पालना में रहना है। ज्ञान योग में तीखा जाना है।
2) पवित्र और योगिन के हाथ का भोजन खाना है। बुद्धि को शुद्ध बनाने के लिए भोजन की बहुत परहेज रखनी है।
वरदान: समर्पण भाव से सेवा करते सफलता प्राप्त करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
सच्चे सेवाधारी वह हैं जो समर्पण भाव से सेवा करते हैं। सेवा में जरा भी मेरे-पन का भाव न हो। जहाँ मेरापन है वहाँ सफलता नहीं। जब कोई यह समझ लेते हैं कि यह मेरा काम है, मेरा विचार है, यह मेरी फर्ज-अदाई है-तो यह मेरापन आना अर्थात् मोह उत्पन्न होना। लेकिन कहाँ भी रहते सदा स्मृति रहे कि मैं निमित्त हूँ, यह मेरा घर नहीं लेकिन सेवा-स्थान है तो समर्पण भाव से निर्माण और नष्टोमोहा बन सफलता को प्राप्त कर लेंगे।
स्लोगन: सदा अपने स्वमान की सीट पर रहो तो सर्व शक्तियां आर्डर मानती रहेंगी।