मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - माया के प्रभाव से बचने के लिए तुम घड़ी-घड़ी अपने सच्चे प्रीतम को याद करो, प्रीतम आया है तुम सब प्रीतमाओं को अपने साथ वापस घर ले चलने''
प्रश्न: कौन सा राज़ जानने के कारण तुम बच्चे शान्ति वा सुख मांगते नहीं हो?
उत्तर: तुम ड्रामा के राज़ को जानते हो। तुम्हें पता है कि यह नाटक पूरा होगा। हम पहले शान्ति में जायेंगे फिर सुख में आयेंगे, इसलिए तुम शान्ति वा सुख मांगते नहीं, अपने शान्त स्वरूप में स्थित होते हो। मनुष्य तो अपने स्वधर्म को भी नहीं जानते और ड्रामा के राज़ को भी नहीं जानते इसलिए कहते हैं मेरे मन को शान्ति दो। अब शान्ति तो वास्तव में आत्मा को चाहिए, न कि मन को।
गीत:- प्रीतम आन मिलो....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक बाप से ही सुनना है और कोई से कोई बात नहीं सुननी है। ज्ञान ही मुख से रिपीट करना और कराना है।
2) बाप के साथ वापिस जाना है इसलिए पुराना कखपन दे बैग-बैगेज ट्रासंफर कर देना है। सबको बाप का परिचय मिल जाए - इसी एक चिंता में रहना है।
वरदान: ''नेचुरल अटेन्शन'' को अपनी नेचर (आदत) बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव
सेना में जो सैनिक होते हैं वह कभी भी अलबेले नहीं रहते, सदा अटेन्शन में अलर्ट रहते हैं। आप भी पाण्डव सेना हो इसमें जरा भी अबेलापन न हो। अटेन्शन एक नेचुरल विधि बन जाए। कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं। लेकिन टेन्शन की लाइफ सदा नहीं चल सकती, इसलिए नेचुरल अटेन्शन अपनी नेचर बनाओ। अटेन्शन रखने से स्वत: स्मृति स्वरूप बन जायेंगे, विस्मृति की आदत छूट जायेगी।
स्लोगन: स्वयं के स्वयं टीचर बनो तो सर्व कमजोरियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी।
प्रश्न: कौन सा राज़ जानने के कारण तुम बच्चे शान्ति वा सुख मांगते नहीं हो?
उत्तर: तुम ड्रामा के राज़ को जानते हो। तुम्हें पता है कि यह नाटक पूरा होगा। हम पहले शान्ति में जायेंगे फिर सुख में आयेंगे, इसलिए तुम शान्ति वा सुख मांगते नहीं, अपने शान्त स्वरूप में स्थित होते हो। मनुष्य तो अपने स्वधर्म को भी नहीं जानते और ड्रामा के राज़ को भी नहीं जानते इसलिए कहते हैं मेरे मन को शान्ति दो। अब शान्ति तो वास्तव में आत्मा को चाहिए, न कि मन को।
गीत:- प्रीतम आन मिलो....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक बाप से ही सुनना है और कोई से कोई बात नहीं सुननी है। ज्ञान ही मुख से रिपीट करना और कराना है।
2) बाप के साथ वापिस जाना है इसलिए पुराना कखपन दे बैग-बैगेज ट्रासंफर कर देना है। सबको बाप का परिचय मिल जाए - इसी एक चिंता में रहना है।
वरदान: ''नेचुरल अटेन्शन'' को अपनी नेचर (आदत) बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव
सेना में जो सैनिक होते हैं वह कभी भी अलबेले नहीं रहते, सदा अटेन्शन में अलर्ट रहते हैं। आप भी पाण्डव सेना हो इसमें जरा भी अबेलापन न हो। अटेन्शन एक नेचुरल विधि बन जाए। कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं। लेकिन टेन्शन की लाइफ सदा नहीं चल सकती, इसलिए नेचुरल अटेन्शन अपनी नेचर बनाओ। अटेन्शन रखने से स्वत: स्मृति स्वरूप बन जायेंगे, विस्मृति की आदत छूट जायेगी।
स्लोगन: स्वयं के स्वयं टीचर बनो तो सर्व कमजोरियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी।