मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - किसी देहधारी से दैहिक लव न रख, एक बाप से लव रखो, अशरीरी बनने का पूरा-पूरा अभ्यास करो''
प्रश्न: रहमदिल बच्चों का कर्तव्य क्या है?
उत्तर: जब कोई फालतू बात करे तो उसकी फालतू बात न सुन उनके कल्याण अर्थ बड़ों को सुनाना - यह रहमदिल बच्चों का कर्तव्य है। जिनमें कोई पुरानी आदतें हैं उन्हें मिटाने में सहयोगी बनना ही रहमदिल बनना है।
प्रश्न:- कौन सा टाइटिल किसी देहधारी को नहीं दे सकते लेकिन ब्रह्मा बाप को दे सकते हैं?
उत्तर:- श्री का टाइटिल क्योंकि श्री अर्थात् श्रेष्ठ पवित्र को कहा जाता है। किसी देहधारी मनुष्य को यह टाइटिल दे नहीं सकते क्योंकि भ्रष्टाचार से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा बाप को श्री कहते क्योंकि इनका यह अलौकिक जन्म है।
गीत:- इस पाप की दुनिया से....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जो रत्न बाप के मुख से निकलते हैं वही अपने मुख से निकालने हैं। व्यर्थ बातें नहीं बोलनी हैं, न सुननी है। ज्ञान का ही शुर्मा पहनना है।
2) सभी से सच्ची मित्रता रखनी है। बहुत मीठे रूप में, हर्षितमुख हो बाप का परिचय देना है। अपकारी पर भी बाप समान उपकारी बनना है।
वरदान: चलन और चेहरे द्वारा पुरूषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराने वाले ब्रह्मा बाप समान भव
जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी सदा पुरूषोत्तम अनुभव होते थे। साधारण में पुरूषोत्तम की झलक देखी, ऐसे फालो फादर करो। कर्म भल साधारण हो लेकिन स्थिति महान हो। चेहरे पर श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव हो। जैसे लौकिक रीति में कई बच्चों की चलन और चेहरा बाप समान होता है, यहाँ चेहरे की बात नहीं लेकिन चलन ही चित्र है। हर चलन से बाप का अनुभव हो, ब्रह्मा बाप समान पुरूषोत्तम स्थिति हो-तब कहेंगे बाप समान।
स्लोगन: जो एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहता है-वही सच्चा तपस्वी है।
प्रश्न: रहमदिल बच्चों का कर्तव्य क्या है?
उत्तर: जब कोई फालतू बात करे तो उसकी फालतू बात न सुन उनके कल्याण अर्थ बड़ों को सुनाना - यह रहमदिल बच्चों का कर्तव्य है। जिनमें कोई पुरानी आदतें हैं उन्हें मिटाने में सहयोगी बनना ही रहमदिल बनना है।
प्रश्न:- कौन सा टाइटिल किसी देहधारी को नहीं दे सकते लेकिन ब्रह्मा बाप को दे सकते हैं?
उत्तर:- श्री का टाइटिल क्योंकि श्री अर्थात् श्रेष्ठ पवित्र को कहा जाता है। किसी देहधारी मनुष्य को यह टाइटिल दे नहीं सकते क्योंकि भ्रष्टाचार से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा बाप को श्री कहते क्योंकि इनका यह अलौकिक जन्म है।
गीत:- इस पाप की दुनिया से....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) जो रत्न बाप के मुख से निकलते हैं वही अपने मुख से निकालने हैं। व्यर्थ बातें नहीं बोलनी हैं, न सुननी है। ज्ञान का ही शुर्मा पहनना है।
2) सभी से सच्ची मित्रता रखनी है। बहुत मीठे रूप में, हर्षितमुख हो बाप का परिचय देना है। अपकारी पर भी बाप समान उपकारी बनना है।
वरदान: चलन और चेहरे द्वारा पुरूषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराने वाले ब्रह्मा बाप समान भव
जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी सदा पुरूषोत्तम अनुभव होते थे। साधारण में पुरूषोत्तम की झलक देखी, ऐसे फालो फादर करो। कर्म भल साधारण हो लेकिन स्थिति महान हो। चेहरे पर श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव हो। जैसे लौकिक रीति में कई बच्चों की चलन और चेहरा बाप समान होता है, यहाँ चेहरे की बात नहीं लेकिन चलन ही चित्र है। हर चलन से बाप का अनुभव हो, ब्रह्मा बाप समान पुरूषोत्तम स्थिति हो-तब कहेंगे बाप समान।
स्लोगन: जो एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहता है-वही सच्चा तपस्वी है।