Friday, July 27, 2012

Murli [27-07-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हारे सच्चे तीर्थ हैं - शान्तिधाम और सुखधाम, तुम्हें रूहानी पण्डा सत्य तीर्थ कराने आया है, तुम राजाई और घर को याद करो'' 
प्रश्न: तुम्हारी किस मेहनत को बाप ही जानते हैं? बाप ने उस मेहनत से छूटने की कौन सी युक्ति बताई है? 
उत्तर: बाप जानते हैं बच्चों ने आधाकल्प भक्ति मार्ग में दर-दर भटक कर बहुत ठोकरें खाई हैं। बहुत मेहनत करते भी प्राप्ति अल्पकाल क्षण-भंगुर की हुई। एकदम जंगल में जाकर फँस गये। विकारों रूपी डाकुओं ने लूट लिया। अब बाप इस मेहनत से छूटने की युक्ति बताते - बच्चे सिर्फ मुझे याद करो। मेरे से ही सच्ची सगाई करो, इस बेहद की सगाई में ही मज़ा है। देह-अभिमान रूपी बड़े डाकू से बचने के लिए अपने को इस देह से न्यारी आत्मा समझो। 
गीत:- ओम् नमो शिवाए.... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) अपनी बुद्धि को नॉलेज से सदा फुल रखना है। बाप से आशीर्वाद वा कृपा मांगने के बजाए पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे अपने ऊपर आपे ही कृपा करनी है। 
2) दु:खियों को सुखधाम का मालिक बनाने की सेवा करनी है। ऐसा सपूत, सर्विसएबुल बनना है जो बाप भी बलिहार जाये। 
वरदान: निश्चिंत स्थिति द्वारा यथार्थ जजमेंट देने वाले निश्चयबुद्धि विजयी-रत्न भव 
सदा विजयी बनने का सहज साधन है-एक बल, एक भरोसा। एक में भरोसा है तो बल मिलता है। निश्चय सदा निश्चिंत बनाता है और जिसकी स्थिति निश्चिंत हैं, वह हर कार्य में सफल होता है क्योंकि निश्चिंत रहने से बुद्धि जजमेंट यथार्थ करती है। तो यथार्थ निर्णय का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत। सोचने की भी आवश्यकता नहीं क्योंकि फालो फादर करना है, कदम पर कदम रखना है, जो श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना है। सिर्फ श्रीमत के कदम पर कदम रखते चलो तो विजयी रत्न बन जायेंगे। 
स्लोगन: मन में सर्व के प्रति कल्याण की भावना रखना ही विश्व कल्याणकारी बनना है।