Wednesday, February 13, 2013

Murli [13-02-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मण अभी बहुत ऊंची यात्रा पर जा रहे हो, इसलिए तुम्हें डबल इंजन मिली है, दो बेहद के बाप हैं तो दो मां भी हैं'' 
प्रश्न:- संगमयुग पर कौन सा टाइटिल तुम बच्चे अपने ऊपर नहीं रखवा सकते? 
उत्तर:- हिज होलीनेस वा हर होलीनेस का टाइटिल तुम बी.के. अपने पर नहीं रखवा सकते या लिख सकते क्योंकि तुम्हारी आत्मा भल पवित्र बन रही है लेकिन शरीर तो तमोप्रधान तत्वों से बने हुए हैं। यह बड़ाई अभी तुम्हें नहीं लेनी है। तुम अभी पुरुषार्थी हो। 
गीत:- यह कहानी है दीवे और तूफान की..... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) सृष्टि चक्र के ज्ञान से स्वयं भी त्रिकालदर्शी और स्वदर्शन चक्रधारी बनना है और दूसरों को भी बनाने की सेवा करनी है। 
2) संगम पर शोक वाटिका से निकल सुख शान्ति की वाटिका में चलने के लिए पवित्र जरूर बनना है। 
वरदान:- अमृतवेले से लेकर रात तक मर्यादापूर्वक चलने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव 
संगमयुग की मर्यादायें ही पुरुषोत्तम बनाती हैं इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। तमोगुणी वायुमण्डल, वायब्रेशन से बचने का सहज साधन यह मर्यादायें हैं। मर्यादाओं के अन्दर रहने वाले मेहनत से बच जाते हैं। हर कदम के लिए बापदादा द्वारा मर्यादायें मिली हुई हैं, उसी प्रमाण कदम उठाने से स्वत: ही मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाते हैं। तो अमृतवेले से रात तक मर्यादापूर्वक जीवन हो तब कहेंगे पुरूषोत्तम अर्थात् साधारण पुरुषों से उत्तम आत्मायें। 
स्लोगन:- जो किसी भी बात में स्वयं को मोल्ड कर लेते हैं वही सर्व की दुआओं के पात्र बनते हैं।