Friday, February 8, 2013

Murli [8-02-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - तुम्हारी नज़र किसी भी देहधारी की तरफ नहीं जानी चाहिए, क्योंकि तुम्हें पढ़ाने वाला स्वयं निराकार ज्ञान सागर बाप है'' 
प्रश्न:- ऊंच पद के लिए कौन सी एक मेहनत तुम बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कर सकते हो? 
उत्तर:- गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ ज्ञान कटारी चलाओ। स्वदर्शन चक्रधारी बनो और शंख ध्वनि करते रहो। चलते-फिरते बेहद के बाप को याद करो और उसी सुख में रहो तो ऊंच पद मिल जायेगा। यही मेहनत है। 
प्रश्न:- योग से तुम्हें कौन सा डबल फ़ायदा होता है? 
उत्तर:- एक तो इस समय कोई विकर्म नहीं होता है, दूसरा पास्ट के किये हुए विकर्म विनाश हो जाते हैं। 
गीत:- माता तू है सबकी भाग्य विधाता... 
धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) शरीर से डिटेच हो, अशरीरी बन सच्ची शान्ति का अनुभव करना है। बाप की याद से स्वयं को विकर्माजीत बनाना है। 
2) अविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए अविनाशी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। उल्टी सब मतों को छोड़ एक बाप की सुल्टी मत पर चलना है। 
वरदान:- सहनशक्ति का कवच पहन, सम्पूर्ण स्टेज को वरने वाले विघ्न जीत भव 
अपनी सम्पूर्ण स्टेज को वरने अर्थात् प्राप्त करने के लिए अलबेलेपन के नाज़ नखरों को छोड़ सहनशक्ति में मजबूत बनो। सहनशक्ति ही सर्व विघ्नों से बचने का कवच है। जो यह कवच नहीं पहनते वह नाजुक बन जाते हैं। फिर बाप की बातें बाप को ही सुनाते हैं, कभी बहुत उमंग-उत्साह में रहते, कभी दिलशिकस्त हो जाते। अब इस उतरने चढ़ने की सीढ़ी को छोड़ सदा उमंग-उत्साह में रहो तो सम्पूर्ण स्टेज समीप आ जायेगी। 
स्लोगन:- याद और सेवा की शक्ति से अनेक आत्माओं पर रहम करना ही रहमदिल बनना है।