Saturday, February 9, 2013

Murli [9-02-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - एक ईश्वर की मत ही श्रेष्ठ मत है, जिस मत पर चलने से ही तुम सच्चा सोना बनेंगे, बाकी सब मतें असत्य बनाने वाली हैं'' 
प्रश्न:- कौन सा पार्ट एक ज्ञान सागर बाप में भरा है, जो किसी मनुष्य-आत्मा में नहीं? 
उत्तर:- बाबा कहते - मुझ आत्मा में भक्तों की सम्भाल करने का, सबको सुख देने का पार्ट है। मैं ज्ञान सागर बाप सभी बच्चों पर अविनाशी ज्ञान की बरसात करता हूँ, जिन ज्ञान रत्नों का कोई मूल्य नहीं कर सकता। मैं लिबरेटर हूँ, रूहानी पण्डा बन तुम आत्माओं को वापिस शान्तिधाम ले जाता हूँ। यह सब मेरा पार्ट है। मैं किसी को दु:ख नहीं देता, इसलिए सब मुझे आंखों पर रखते हैं। रावण दुश्मन दु:ख देता है इसलिए उसकी एफ़ीजी जलाते हैं। 
गीत:- जो पिया के साथ है... 
धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) शरीर और आत्मा दोनों को पवित्र बनाने के लिए इस पुराने शरीर सहित सब कुछ भूलना है। देह सहित बाप पर पूरा बलि चढ़ फ्लैन्थ्रोफिस्ट (महादानी) बनना है। 
2) बाप की श्रीमत पर चल बेहद का सुख लेना है। यह शुद्ध लोभ रखना है, जिससे सारी विश्व सुखी बनें। बाकी अशुद्ध लोभ त्याग देना है। 
वरदान:- निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाले सफलतामूर्त भव 
सेवा में आगे बढ़ते हुए यदि निमित्त और नम्रचित की विशेषता स्मृति में रहती है तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे। जैसे सेवाओं की भाग-दौड़ में होशियार हो ऐसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो, इससे सेवा में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर, स्वयं को रूहानी सेवाधारी समझकर सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। 
स्लोगन:- जो बुद्धि द्वारा सदा ज्ञान रत्नों को धारण करते हैं वही सच्चे होलीहंस हैं।