Monday, February 18, 2013

Murli [18-02-2013]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - सदा अपने को राजॠषि समझकर चलो तो तुम्हारे सब दिन सुख से बीतेंगे, माया के घुटके से बचे रहेंगे'' 
प्रश्न:- कौन सा चांस तुम्हें अभी है फिर नहीं मिलेगा? 
उत्तर:- अभी थोड़ा समय है जिसमें पुरुषार्थ कर पढ़ाई से ऊंच पद पा सकते हो फिर यह चांस नहीं मिलेगा। यह जीवन बड़ा दुर्लभ है इसलिए कभी यह ख्याल नहीं आना चाहिए कि जल्दी मरें तो छूटें। यह ख्याल उन्हें आता जिन्हें माया तंग करती है या कर्मभोग है। तुम्हें तो बाप की याद से मायाजीत बनना है। 
गीत:- धीरज धर मनुआ... 
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) बाप ने जो मनुष्य को देवता बनाने का हुनर सिखाया है, उसमें ही लगना है। 
2) श्रीमत पर चलने में गफलत वा बहाना नहीं करना है। कर्मबन्धनों से छूटने के लिए याद में रहना है।
वरदान:- प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी द्वारा बाप के समीप आने वाले देही-अभिमानी भव 
जैसे शरीर की पर्सनैलिटी आत्माओं को देहभान में लाती है, ऐसे प्युरिटी की पर्सनैलिटी देही-अभिमानी बनाए बाप के समीप लाती है। प्युरिटी की पर्सनैलिटी आत्माओं को प्युरिटी की तरफ आकर्षित करती है, प्युरिटी की रॉयल्टी धर्मराजपुरी की रायेलिटी (दण्ड) से छुड़ा देती है। इसी रायॅल्टी अनुसार भविष्य रायॅल फैमली में आ सकेंगे। देही-अभिमानी बच्चे इस पर्सनैलिटी द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाले रूहानी दर्पण बन जाते हैं। 
स्लोगन:- हरेक की विशेषता को देखने का चश्मा सदा लगा रहे तो विशेष आत्मा बन जायेंगे।